Friday, March 30, 2018

रिश्ते का इतिहास बन जाना

मेरे एक खुशमिजाज मित्र थे.’थे’ इसलिए लिख रहा हूँ कि अब उनसे बात नहीं होती है पर एक वक्त ऐसा भी गुजरा है कि जब  हम बेमतलब की ढेर सारी बातें किया करते थे. फिर हम दोनों के रिश्तों में समस्या आयी क्योंकि उनकी प्राथमिकता बदलने लग गयी थी लेकिन  उस दौर में जब बात करने के सिलसिले काफी कम हो गए  थे .जब कभी उनसे बात होती  थी तो वो  मुझसे कहते थे कि काश सब पहले जैसा हो जाए और मैं अक्सर ये सोचा करता था कि क्या सब पहले जैसा हो सकता है ?इस प्रश्न का जवाब  कभी मिला  नहीं क्योंकि  ज़िन्दगी की कहानी बदल चुकी थी और हमारी दोस्ती इतिहास हो गयी .
वैसे  आपने भी  ज़िन्दगी के किसी न किसी मोड़ पर कोई कहानी जरुर पढी या सुनी होगी. ज़िन्दगी के साथ साथ हमारे साथ चलने वाली कहानियों के नायक नायिका बदलते जाते हैं पर हर कहानी में एक चीज समान  रहती है.वह  यह कि हर कहानी में ‘था’ या ‘थी’ शब्द की भरमार होती है यानि कहानी में जो कुछ भी होता है वो बीत चुका होता है पर उन कहानियों के माध्यम से हम इंसानी रिश्तोंसंघर्षों,तकलीफों को समझ कर आने वाले कल को बेहतर करने की कोशिश कर सकते  हैं.
 जब सवाल  कहानियों का हो तो इतिहास का जिक्र आना स्वाभाविक है .बात कहानी से शुरू हुई तो बगैर रिश्ते के कोई कहानी नहीं बनती और हर इतिहास की अपनी एक  कहानी होती है,मतलब कहानी ,रिश्ते और इतिहास तीनों एक दूसरे से जुड़े  हैं. इतिहास आम लोगों की नजर में से दुनिया का सबसे बोरिंग विषय हो सकता  है  पर असल में ऐसा है नहीं  इतिहास को समझे बगैर हम जिन्दगी और रिश्तों की कहानी नहीं समझ सकते .क्या समझे ? समय अच्छा हो या बुरा बीतने को  तो बीत जाता है पर अपने बीतने के निशान जरुर छोड़ जाता है हम कभी सोचते ही नहीं  जो कुछ ‘था’ या ‘थे’ हो जाता है वो सब इतिहास की कहानी बन जाता है. बगैर इतिहास की नींव के हम भविष्य की ईमारत तो नहीं खडी कर सकते .
बात इतिहास की हो रही हैतो   देखिये न हर रिश्ते का एक इतिहास होता है पर जबतक रिश्ते सामान्य रहते हैं हम इस इतिहास पर ध्यान ही  नहीं देते कि ये रिश्ता कैसे बना,कैसे कोई पति ,दोस्त रिश्तेदार बन जाता है  पर जब रिश्ते बिगड़ते हैं तब हम सोचते हैं ऐसा क्यूँ हुआ.जो अपनी गलती से सबक सीख लेते हैं वो इतिहास बना देते हैं  और जो नहीं सीखते हैं वो दूसरों के इतिहास को रटते हैं.कभी बचपने में पढ़ा था की इतिहास अपने आप को दोहराता है पर उसका दुहराव हर बार अलग तरीके से होता है.कहानियां हम सब पढ़ते ,सुनते हैं कुछ सच्ची होती हैं कुछ काल्पनिक पर उनसे सीख क्या लेते हैं ये ज्यादा महत्वपूर्ण है,रिश्ते बनाना इंसानी फितरत है पर रिश्ते निभाना सबको नहीं आता है . इसको सीखना पड़ता है.रिश्ते प्यार की नींव,अपनेपन के एहसास और समर्पण की ऊर्जा से चलते हैं. अगर इनमें कमी आती है तो रिश्तों का इतिहास बनते देर नहीं लगती .
प्रभात खबर में 30/03/18 को प्रकाशित 

2 comments:

Russi said...

Kuch bhi kahiye sir par maza aata hai history padne or btane mein.

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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