Saturday, December 3, 2016

मोरक्को छोडिये ,भारत भी अपवाद नहीं

मोरक्को  के सरकारी टेलिविजन चैनल 2M को मेकअप पर एक प्रोग्राम दिखाना भारी पड़ गया है. इस प्रोग्राम में दिखाया गया के कैसे मेकअप के जरिए महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा के निशानों को कैसे छुपाया जा सकता है|इस कार्यक्रम के प्रसारित होने के बाद इसे लेकर काफी विवाद खड़ा हो गया और बड़ी संख्या में लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी. सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर लोगों ने बहुत नाराजगी जताई. इतनी आलोचनाओं के बाद टीवी चैनल को  दर्शकों से माफी मांगनी पडी |इस तरह के कार्यक्रमों का बनना और प्रसारित होना यह साफ़ बताता है कि दुनिया के तमाम अल्पविकसित देश महिलाओं और घरेलु हिंसा के प्रति क्या सोच रखते हैं |भारत भी इसमें अपवाद नहीं है |घरेलू हिंसा कानून लागू होने से पहले यह माना ही नहीं जाना जाता था कि घरों में भी हिंसा होती है और इसका सबसे ज्यादा शिकार महिलायें होती हैं वो चाहे विवाहित हों या अविवाहित|26 अक्टूबर 2006 को जब से यह कानून लागू हुआ तब से लेकर आज तक घरेलू हिंसा से होने वाले नुकसान का आंकलन विभिन्न शोधों से लगातार किया जा रहा है इन शोधों से प्राप्त आंकड़े डराते  हैं|एसेक्स यूनिवर्सिटी  की शोध छात्रा सुनीता मेनन द्वारा किये गए शोध से पता चलता है कि भारत में होने वाली कुल बाल मौतों के दसवें हिस्से का कारण घरेलू हिंसा है |इस शोध का आधार नेशनल फैमली एंड हेल्थ सर्वे 2007 का वह आंकड़ा है जिसमें सोलह से उनचास वर्ष की 124,385 महिलाओं का साक्षात्कार किया गया था|शोध में शामिल किये गए सैम्पल को अगर सिर्फ ग्रामीण जनसँख्या तक सीमित कर दिया जाये तो यह आंकड़ा दुगुना होकर हर पांच में से एक पर जा सकता है | महिलाओं को अधिकारों की सुरक्षा को अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दशक (1975-85) के दौरान एक पृथक पहचान मिली थी। सन् 1979 में संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में इसे अंतर्राष्‍ट्रीय कानून का रूप दिया गया था। विश्‍व के अधिकांश देशों में पुरूष प्रधान समाज है। पुरूष प्रधान समाज में सत्‍ता पुरूषों के हाथ में रहने के कारण सदैव ही पुरूषों ने महिलाओं को दोयम दर्जे का स्‍थान दिया है। यही कारण है कि पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं के प्रति अपराध, कम महत्‍व देने तथा उनका शोषण करने की भावना बलवती रही है।राष्ट्रीय अपराध रिकोर्ड ब्यूरो के 2014 आंकडो के अनुसार पति और सम्बन्धियों द्वारा महिलाओं के प्रति किये जाने वाली क्रूरता में साढ़े सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है |घरेलू हिंसा अधिनियम भारत का  पहला ऐसा कानून है जो भारतीय महिलाओं को उनके घर में सम्मानजनक एवं गरिमापूर्ण तरीके से रहने के अधिकार को सुनिश्चित करता है |प्रचलित अवधारणा के विपरीत समाजशास्त्रीय नजरिये से हिंसा का मतलब सिर्फ शारीरिक हिंसा नहीं है इसलिए घरेलू हिंसा अधिनियम में महिलाओं को सिर्फ शारीरिक हिंसा से बचाव का अधिकार नहीं दिया गया  है बल्कि इसमें  मानसिक ,आर्थिकएवं यौन हिंसा भी शामिल हैं | पुरुष प्रधान भारतीय समाज में महिलाओं को दिवीतीय दलित की संज्ञा दी जा सकती है जो सामाजिक ,आर्थिक और राजनैतिक दृष्टि से शोषित की भूमिका में हैं |हिंसा कैसी भी हो वह महिलाओं के मनोविज्ञान को प्रभावित करती है |
घरेलू हिंसा अपने आप में एक ऐसी हिंसा जिनसे व्यवहारिक दृष्टि से सामाजिक रूप से मान्यता मिली हुई है यानि घर में हुई हिंसा को हिंसा की श्रेणी में नहीं माना जाता है ऐसी स्थिति में घर की लड़कियां ,महिलाएं उसे अपनी नियति मान लेती हैं |महिलाओं के नजरिये से उनके प्रति हुई हिंसा इसलिए ज्यादा गंभीर हैं क्योंकि वे जननी होती हैं ,देश का भविष्य उनके गर्भ में ही पलता है |गर्भवस्था के दौरान हुई हिंसा का असर महिला के बच्चे पर भी पड़ता है|मोरिसन और ओरलेंडो के एक शोध के अनुसार विकासशील देशों में महिलाओं के साथ हुई   हिंसा में कैंसर ,मलेरिया,ट्रैफिक एक्सीडेंट और युद्ध में हुई मौतों के मुकाबले ज्यादा मौत होती है |दुनिया की ज्यादातर सभ्यताओं में लिंग आधारित हिंसा पाई जाती है पर भारतीय स्थतियों में ज्यादातर ऐसी हिंसा को सामाजिक व्यवहार,सामूहिक मानदंडों और धार्मिक विश्वास का आधार मिल जाता है जिससे स्थिति काफी जटिल हो जाती है |दूसरे घरेलू हिंसा का साथ अपने सगे सम्बन्धियों से होता है इसलिए इसमें निजता और शर्म का घालमेल हो जाता है |इस विषय पर बात करना मुनासिब नहीं समझा जाता है और लोग खुल कर बोलने से कतराते हैं जिससे इस समस्या से संबंधित व्यवस्थित आंकड़े नहीं उपलब्ध हो पाते हैं |जागरूकता की कमी,सामाजिक रूप से बहिष्कृत किये जाने का डर समस्या को और विकराल बनाता है शहरों की हालात से ग्रामीण इलाकों की स्थिति का महज अंदाजा लगाया जा सकता है जहां जागरूकता और शिक्षा की खासी कमी है |इससे यह बात सिद्ध होती है कि घरेलू हिंसा के दर्ज कराये जा रहे आंकड़े और घरेलू हिंसा की वास्तविक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर हैघरेलू हिंसा से महिलाओं  की सार्वजनिक भागीदारी में बाधा होती है उनकी कार्य क्षमता घटती है, और वे  डरी-डरी भी रहती है। परिणामस्‍वरूप प्रताडि़त महिला मानसिक रोगी बन सकती  है जो कभी-कभी पागलपन की हद तक पहुंच जाती है। यह तो स्थापित तथ्य है कि महज कानून बनाकर किसी सामाजिक समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है |महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा का सीधा संबंध उनकी वित्तीय आत्मनिर्भरता से जुड़ा हुआ है |वह महिलायें ज्यादा प्रताड़ित होती हैं जो वित्तीय रूप से किसी और संबंधी पर निर्भर हैं |वित्तीय आत्मनिर्भरता का सीधा संबंध शिक्षा से है जैसे –जैसे भारतीय महिलायें शिक्षित होती जायेंगी वे अपने अधिकार के लिए लड़ पाएंगी|घरेलू हिंसा का शिकार होने पर उन्हें पता होगा कि उन्हें क्या करना है |
नवोदय टाईम्स में 03/12/16 को प्रकाशित लेख 

2 comments:

Unknown said...

The irony, they can telecast it but can't help them.

Unknown said...

The irony, they telecast about them but can't help them.

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