Monday, April 13, 2015

वर्जित क्षेत्र में पुरुष वर्चस्व को चुनौती

सूचना क्रांति के इस युग में इस बदलती दुनिया को परखने का बड़ा माध्यम आंकड़े बन रहे हैं और जब आंकड़े मिल जाते हैं तो समस्या को समझना और उसका समाधान करना थोडा आसान हो जाता है |इंटरनेट आंकड़े इकठ्ठा करने और उनका विश्लेषण करने का बड़ा जरिया बन रहा है |ऐसा ही एक आंकड़ा अभी जारी हुआ है जो भारत में पोर्न देखने वालों की स्थिति को बता रहा है |देश में जहां पॉर्न देखना सामाजिकसांस्कृतिक एवं विधिक आधार पर  निषिद्ध है वहां हकीकत  में आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं दुनिया भर में ऑन लाइन पोर्न सामग्री पर नजर रखने वाली संस्था पोर्न हब के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014में सबसे ज्यादा इंटरनेट पॉर्न देखने वालों की संख्या के मामले में भारतीय चौथे स्थान पर थे। इस आंकड़े में चौकाने वाली बात यह है कि भारत में कुल पोर्न देखने वाले लोगों की संख्या का 25 प्रतिशत महिलाओं का है|जो मोबाईल फोन पर पोर्न देख रही हैं |
दिलचस्प बात यह है कि यह आंकड़ा विश्व के औसत आंकड़े से लगभग दो प्रतिशत ज्यादा है जो कि भारत जैसे देश के संदर्भ में और भी आश्चर्यचकित करने वाला है जहाँ  आमतौर पर यहाँ महिलाओं को ऐसे  विषयों के बारे में बात तक करने की  सामाजिक मान्यता नहीं है वहां महिलाओं द्वारा  पोर्न सामग्री का इस्तेमाल कई सवाल खड़े करता हैसाथ ही यह भी  बताता है कि दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तरह इस क्षेत्र में भी पुरुष वर्चस्व टूट रहा है भले ही यह एक वर्जित विषय हो और मोबाईल एक ऐसे व्यक्तिगत माध्यम के रूप में उभर रहा है जो उन क्षेत्रों में भी पुरुष वर्चस्व को तोड़ रहा है जहाँ महिलाओं का प्रवेश वर्जित है  |  हमारा समाज बच्चे को पुरुष बनाता है और बच्ची को स्त्री,इस तरह का सामजिक विभाजन जहाँ यौन विषयों पर पुरुषों के लिए समाज का नजरिया अलग हो  और स्त्रियों के लिए अलग| पुरुषों के लिए पोर्न देखना स्वीकार्य है वहीं स्त्रियों के लिए यह एक गन्दा विषय रहा है |पारम्परिक रूप से हमारे समाज में यौन विषयों पर बात करना हमेशा से वर्जित रहा है यह साफ़ इंगित करता है कि ऐसे मुद्दों को लेकर हमारी दोहरी सोच रही है जिसमें पुरुष मानसिकता हावी रही है यानि पोर्न सामग्री भी संतुलित नहीं है उसमें भी पुरुषों का नजरिया हावी रहा है  |पोर्न को लेकर भारतीय समाज  हमेशा नकारात्मक रहा है पर तथ्य यह भी है कि कोणार्क और खजुराहो जैसे अनेक मंदिरों की दीवारों पर जो कुछ उत्कीर्ण है वह किसी भी पोर्न फिल्म से कम नहीं है |इन प्रश्नों की तलाश अभी भी जारी है कि खजुराहो और कोणार्क में इस तरह के कामोतेज्ज्क चित्र क्यों और किन परिस्थितियों में उकेरे गए क्योंकि परम्परागत रूप में यौन जैसे विषयों के संदर्भ में भारतीय समाज एक बंद समाज रहा है |सामजिक रूप से इन विषयों को कभी सार्वजनिक रूप से कथ्य का विषय नहीं बनाया गया | फिर इन सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे चित्रों का औचित्य क्या है |
महिलाओं का मोबाईल पर पोर्न देखना समाज शासत्रीय नजरिये से  शायद उन्हे अपनी नई नई मिली आर्थिक एवं सामाजिक स्वतन्त्रता का उपभोग करने का एक जरिया भी हो सकता है |भारतीय समाज महिलाओं के नजरिये से एक  बंद समाज रहा है जिसकी जड़ में है इसका सामन्ती ढांचा और पित्र सत्तात्मक सोच पर खुलती अर्थव्यवस्था,शिक्षा का विस्तार  और अपने शरीर और उससे जुड़े सुख को लेकर स्वायत्तता का बोध अब महिलाओं में भी बढ़ रहा है | मोबाईल इंटरनेट अब कोई विलासिता की चीज नहीं रहा गयी है ये हर हाथ में है और यही  उनकी दबी हुई इच्छायों को आवाज दे रहा है |पर यह अलग बात है कि तकनीक से अब कुछ भी छुपाना मुश्किल है|इनटर्नेट पर आप जो कुछ भी कर रहे हैं वह आंकड़ों के रूप में दर्ज हो रहा है |
भले ही पोर्न देखना भारत में प्रतिबंधित है पर आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि भारत में पोर्न देखा जा रहा है और खूब देखा जा रहा है | पोर्न हब के आंकड़े सिर्फ इंटरनेट पर देखे जा रहे पोर्न की तस्दीक कर रहे हैं पर हर गली मोहल्ले में मोबाईल रिप्येरिंग की दुकानों पर चोरी छिपे पोर्न क्लिप और अश्लील सी डी का व्यवसाय चल रहा है |इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता और इस तरह कितने लोग पोर्न देख रहे हैं इस बात का कोई आधिकारिक आंकड़ा अभी भी उपलब्ध नहीं है पर इस तरह पोर्न देखने वालों में ज्यादा हिस्सा पुरुषों का ही है |महिलायें अगर पोर्न देखना भी चाहती हैं तो सामजिक और अन्य  दबाओं के चलते इसका हिस्सा नहीं बन पातीं हैं |इस बात पर पर्याप्त बहस की जा सकती है कि पोर्न देखना सही है या गलत पर जब पोर्न देखा जा रहा है तो इसका समाज शास्त्रीय विश्लेषण होना जरुरी है कि पोर्न क्यों और कैसे देखा जा रहा है |इस विषय पर शुतुरमुर्गी रवैया समस्या को और बढ़ाएगा |
भारत में पोर्न के प्रति महिलाओं का बढ़ता रुझान एक नयी प्रवृत्ति है या उनके आर्थिक रूप से सम्रध होने की निशानी है या कोई अन्य कारण  इसका विश्लेषण होना नितांत आवशयक है |
 कानूनी द्र्ष्टि से भारत में पोर्न सामग्री देखने पर प्रतिबन्ध है पर इंटरनेट अपवाद हैइंटरनेट पर मौजूद समस्त पोर्न सामग्री पर रोक लगाना विश्व की किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है |इंटरनेट इंस्टेंट फ्रीडम तो दे रहा है पर पोर्न मूलतः स्त्री विरोधी है जिसमें स्त्रियों को महज एक उपभोग की वस्तु समझा जाता है और पोर्न सामग्री का ज्यादातर हिस्सा पुरुषों के नजरिये से प्रेरित होता है|पर्याप्त सेक्स शिक्षा का अभाव और जागरूकता की कमी तथा इंटरनेट पर बहुतायत पोर्न सामग्री की सर्वसुलभता और सस्ते स्मार्ट फोन|यह सब मिलकर एक ऐसा दुश्चक्र रच रहे हैं जिससे पूरा समाज प्रभावित हो रहा है |भारत में यह विचार अभी तक जड़ें नहीं जमा पाया कि पोर्न सामग्री में स्त्री पुरुष दोनों का नजरिया  समान रूप से होना चाहिए |अमेरिका जैसे देश में  जहाँ पोर्न सामग्री देखना अपराध नहीं है वे इस प्रवृति को दूसरे तरह से देखते हैं उनका मानना है कि महिलाओं के पोर्न देखने से पॉर्न के महिला उपभोक्ताओं के रूप में उनकी ताकत बढ़ेगी तब  शायद जो पॉर्न बाज़ार में उपलब्ध होगा वह उतना अप्राकृतिक नहीं होगा जितना अभी है। साथ ही ऐसी पॉर्न सामाग्री के अधिक संतुलित होने की आशा की जा सकती है।अमेरिका और कुछ अन्य विकसित देशों में महिलाओं के लिए बनने वाले पॉर्न की संख्या काफी ज्यादा है।पोर्न के इस अमेरिकी नजरिये से भारत कितना प्रभावित होगा और आगे किस राह जाएगा इसका फैसला अभी होना है |
 राष्ट्रीय सहारा में 13/04/15 को प्रकाशित 

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