Thursday, April 30, 2015

जीवन -मृत्यु


बचपन,जवानी ,और बुढ़ापा जीवन के ये तीन हिस्से माने गए हैं ,बचपन में बेफिक्री जवानी में करियर और बुढ़ापा मतलब जिन्दगी की शाम पर जीवन में एक वक्त ऐसा आता है जब
न बचपने जैसी बेफिक्री रहती है न जवानी में करियर जैसा कुछ  बनाने की चिंता और न ही अभी जिन्दगी की शाम हुई होती है यानि बुढ़ापा |शायद यही है अधेड़ावस्था जब जिन्दगी में एक ठहराव होता है पर यही उम्र का वो मुकाम है जब मौत सबसे ज्यादा डराती है |मैं भी इसी कश्क्मकश से गुजर रहा हूँ |
उम्र के इस  पड़ाव पर जो कभी हमारे बड़े थे धीरे धीरे सब जा रहे हैं और हम बड़े होते जा रहे हैं पर मुझे इतना बड़प्पन नहीं चाहिए कि हमारे ऊपर कोई हो ही न मौत किसे नहीं डराती पर जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है जब मौत के वाकये से आप रोज दो चार होने लगते हैं , मुझे अच्छी तरह याद है बचपन के दिन जब मैंने होश सम्हाला ही था कितने खुशनुमा थे बस थोड़ा बहुत इतना ही पता था कि कोई मर जाता है पर उसके बाद कैसा लगता है उसके अपनों को ,कितना खालीपन आता है जीवन में इस तरह के न तो कोई सवाल जेहन में आते थे और न ही कभी ये सोचा कि एक दिन हमको और हमसे  जुड़े लोगों को मर जाना है  हमेशा के लिए, मम्मी पापा का साथ दादी बाबा  का सानिध्य,लगता था जिन्दगी हमेशा ऐसी ही रहेगी|सब हमारे साथ रहेंगे और हम सोचते थे कि जल्दी से बड़े हो जाएँ सबके साथ कितना मजा आएगा पर बड़ा होने की कितनी बड़ी कीमत हम सबको चुकानी पड़ेगी इसका रत्ती भर अंदाज़ा नहीं था |दिन बीतते रहे और हम बड़े होते रहे |मौत से पहली बार वास्ता पड़ा 1989 में बाबा जी का देहांत हुआ हालांकि वह ज्यादातर वक्त हम लोगों के साथ ही रहा करते थे पर अपनी मौत के वक्त गाँव चले गये थे मैं और पिताजी उनको देखने गाँव गये थे और तय यह हुआ था की दो तीन दिन में किसी गाडी की व्यवस्था करके उन्हें लखनऊ बुला लिया जायेगा पर ऐसा हो न सका,उनकी मौत की खबर आयी,गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं | उस वक्त तुरंत तो  मुझे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा,घर के सभी लोग गाँव के लिए रवाना हो गए ,और घर पर मैं अपने भाइयों के साथ रह गया पर जैसे जैसे समय बीतता गया मुझ पर उदासी छाने लगी सोच में बस यही था कि अब मैं बाबा को कभी देख नहीं पाऊंगा और बरबस मैंने अकेले रोना शुरू कर दिया काफी देर रोने के बाद अपने आप चुप हो गया लेकिन पहली बार किसी के जाने के खालीपन को महसूस किया शायद यह मेरे बड़े होने की शुरुआत थी |
                    उस वक्त मैं आठवीं का विद्यार्थी था|जल्दी ही हम सब अपनी जिन्दगी में रम गए|मैं लखनऊ से उदयपुर पहुँच गया जिन्दगी अपनी गति से चलती रही तीन साल बाद फिर गर्मी की छुट्टियों में दादी की मौत देखी वह भी अपनी आँखों के सामने |मुझे अच्छी तरह से याद है वह गर्मियों की अलसाई दोपहर थी उस सुबह ही जब मैं सुबह की सैर के लिए निकल रहा था दादी अपने कमरे में आराम से सो रही थीं ,मुझे बिलकुल अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह वह अपने बिस्तर पर नहीं बर्फ की सिल्लियों पर लेटी होंगीं ,सुबह से उनकी तबियत ठीक नहीं लग रही थी मैं पिता जी को फोन करने घर से एक किलोमीटर दूर पीसीओ की तरफ भागा छोटा भाई डॉक्टर की तलाश में निकला और जब हम घर लौटे तो सब कुछ बदल चुका था | जीवन की क्षण भंगुरता का सच में पहली बार एहसास हुआ दादी के साथ चुहल करना ,गाँव की कहानियां सुनना उनका कमरे उनका आख़िरी दिन कई महीनों तक जेहन में छाया रहा पर जिन्दगी बहुत क्रूर होती है |दादी जल्दी ही यादों का हिस्सा बन गयीं |हम भी आगे बढ़ चले |जिन्दगी खुल रही थी ,भविष्य ,करियर ,परिवार के कई पड़ाव पार करते हुए जिन्दगी को समझते हुए बीच के कुछ साल फिर ऐसे आये जब हम भूल गए कि मौत सबकी होनी है |जिन्दगी में अजब इत्तेफाक होते हैं नौकरी के सिलसिले में पहुंचे जौनपुर ,मैंने जिस मकान को अपना आशियाना बनाया वहां हाल ही में मकान मालिक की  मौत हुई थी और घर में सन्नाटा पसरा रहता था,कुछ दिन में वहां खुशियाँ लौटीं ,मेरे दोस्त शाम को उस घर में महफ़िल सजाने लगे और हंसी कहकहों का दौर शुरू हो गया जल्दी ही मकान मालिक के बेटे बेटी की शादी हुई पर मेरे और  बड़े होने की शुरुवात होनी थी,कुछ साल बाद उस घर की बहू की एक छोटी सी बीमारी के बाद मृत्यू हो गयी एक बार फिर जिन्दगी अपने क्रूर रूप में मेरे सामने थी मेरी आँखों के सामने जिस लडकी को हम नाचते गाते विदा करके लाये थे |आज उसकी अर्थी सजते हुए देख रहा था |इस हादसे के पांच महीने के बाद मैंने उस घर और जौनपुर को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया पर मैं आज भी सोचता हूँ उस घर में दो मौतों के बीच रहा जब मैं उस घर में रहने पहुंचा था तो मकान मालिक की मौत के पांच महीने गुजरे थे और जब मैं घर छोड़ रहा था तो घर की बहू की मृत्यु हुए पांच महीने बीते थे |
                          जौनपुर से लौटने के कुछ सालों बाद अपने सबसे अजीज दोस्त  में से एक पंकज को खोया,बाबा की मौत के बाद से किसी अपने के जाने से उपजा खालीपन लगातार बढ़ता रहा, बचपने के दिन बीते  हम जवान से अधेड़ हो गए और माता पिता जी बूढ़े जिन्दगी थिरने लग गयी अब नया ज्यादा कुछ नहीं जुड़ना है अब जो है उसी को सहेजना है पर वक्त तो कम है आस पास से अचानक मौत की ख़बरें मिलने बढ़ गईं हैं पड़ोस के शर्मा जी हों या रिश्तेदारी में दूर के चाचा- मामा जिनके साथ हम खेले कूदे बड़े हुई धीरे धीरे सब जा रहे हैं सच कहूँ तो उम्र के इस पड़ाव पर अब मौत ज्यादा डराती है

जनसत्ता में 30/04/15 को प्रकाशित 

Wednesday, April 29, 2015

एंड्रॉयड का सफर

2008 से अब तकयानी की सिर्फ 7 साल। 7 साल में एक बिलियन लोगों की हाथों में एंड्रॉइड फोन पहुँच चुका है।साल 2014 में हुए एक सर्वे के आंकड़ों की मानें तो ये पूर्वानुमान लगाया गया था कि साल के खत्म होते होते एंड्रॉयड इस्तेमाल करने वालों की संख्या एक बिलियन पार कर जाएगी।महज 7 सालों में करीब 85 फीसदी मोबाईल फोन पर कब्जा करनाइसी से एंड्राइड की लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है कि हर पांच में से चार स्मार्ट फोनएंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम पर चल रहा है. हर दिन 15 लाख से ज्यादा लोग नया एंड्रॉयड डिवाइस खरीद रहे हैं. इसी साल एंड्रायडएक ऐसे आंकड़े को छू लेगा जिसके आसपास पहुंचना किसी भी कंपनी के लिए एक सपना होता है|बाजार में आने वाला पहला एंड्रॉयड फोन एचटीसी ड्रीम था जिसे 22 अक्टूबर 2008 को लांच किया गया था। तब से अबतक कई बार इन संस्करणों को उन्नत (अपग्रेड) किया गया और हर बार इनका नामकरण किसी न किसी खाद्य केक पेस्ट्री के नाम पर किया गया - कपकेकडोनट एक्लेयरजिंजरब्रेडआइसक्रीम सैंडविच,हनीकामजेली बिन आदि नामो से किया गया|ये मीठे का सिलसिला अब लौली पॉप  तक आ पहुंचा है. क्या आपने गौर किया कि हर वर्जन का नाम alphabetical order में आगे बढ़ रहा है. C, D, E, F...तो आप से शुरू होने वाली मीठी चीजों के बारे में सोचें जो एंड्रॉयड के अगले वर्जन में आ जायेगी |

इसकी कुछ खासियतों ने इसे दुनियाभर के स्मार्टफोन में छा दिया है।इतना ही नहींवो दिन अब ज्यादा दूर नहीं जब लगभग हर चीजे एंड्राइड से ही चलेगी।
एंड्राइड फोन की सबसे बड़ी खासियत उसका कस्टमाइजेशन प्रोसेस है। इसे अपने सहूलियत के हिसाब से सेट किया जा सकता है। ऐसी छूट दूसरे ऑपरेटिंग सिस्टम वाले फोन नहीं देते। दूसरी खासियत ये है कि हर बजट में एंड्राइड फोन अवेलबल है। गूगल मोबाईल फोन कंपनियों को एंड्राइड सॉफ्टवेयर मुफ्त में प्रोवाइड कराता हैयही कारण है कि एंड्राइड फोन की भरमार है और हर बजट में मिल जायेंगे। लगभग हर बड़ी ब्रांड्स एंड्राइड फोन बना रही है।इसमें लगभग दस लाख से ज्यादा एप्स अवेलबल हैं जिसमें अधिकतर एप्स को फ्री में डाउनलोड किया जा सकता है।अगर आप सपना देख रहे कि आप अपने फोन को बोलकर इंस्ट्रक्शंस दें और वो उसे समझकर फॉलो करें तो ऐसा सपना एंड्राइड ही पूरा कर सकता है।एंड्राइड फोन में गूगल नाऊ का ऑप्शन है जिसमें आप अपने फोन से इंसानों की तरह बातचीत कर सकते हैं।जिस बारे में भी आप सुचना  चाहते हैंउसे बोलकर बताइयेवो उसे पढ़  करके फ़ौरन जानकारी दे देगा। इतना ही नहीं एंड्राइड टेक्स्ट को आवाज में भी बदल देता है।ओपन सोर्स प्लेटफोर्म पर होने के कारण कोई भी अपना एप बना कर गूगल प्ले पर डाल सकता है और लोग अपनी जरुरत के मुताबिक़ इन एप में से चुनाव कर सकते हैं ये एप बात करने से लेकर हेल्थ या फिटनेस और  खेल आदि तक कुछ भी हो सकता है |
  
एंड्राइड फोन का इतिहास
अक्टूबर २००३ में अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया राज्य के पालो आल्टो नामक नगर में एंडी रूबीन (संस्थापक डेन्जर)रिच माइनर (संस्थापक वाइल्ड फायर कम्युनिकेसन)निक सियर्स तथा क्रिस ह्वाइट (डिजान तथा इन्टरफेस बिकास प्रमुख) एण्ड्राइड इनकार्पोरेशन की स्थापना की। एण्डी रूबीन के ही शब्दों में उनका उद्देश्य था
ऐसा चतुर मोबाइल उपकरण जो अपने प्रयोगकर्ता की प्राथमिकताओं  को तथा उसके ठिकानों को पहचाने।बाद मे17 अगस्त 2005 को गूगल द्वारा इस का अधिग्रहण कर इसे गूगल के अधीन कम्पनी के रूप में रखा गया और मूल कम्पनी एण्ड्राइड इनकार्पोरेशन" के एंडी रूबीनरिच माइनरतथा क्रिस ह्वाइट यहाँ कम्पनी के कर्मचारियों  के रूप में काम करते रहे।
गूगल द्वारा बाजार में आने के बारे में सोचने के बाद रूबीन के नेतृत्व में लाइनक्स कर्नेल पर आधारित मोबाइल उपकरण प्लेटफार्म को विकसित  किया गया गूगल ने इस प्लेटफार्म की मार्केटिग इस वायदे  के साथ कीकि हैण्ड सेट निर्माताओ तथा संचार कंपनियों के बीच इस प्लेट फ़ार्म को लचीला (फ्लेक्सिबल) रखा जाएगा  और अपग्रेड करने की सुविधा उपलब्ध करता रहेगा |
वर्ष २००८ में इसका प्रथम संस्करण  निकाला गया तब से अबतक कई बार इन संस्करणों को उन्नत (अपग्रेड) किया जा चुका है | २००८ के कप केक संस्करण की विशेषता थी स्क्रीन को घुमाने की सुविधास्क्रीन पर कुंजीपटल तथा टेक्स्ट का अनुँमान लगाने की सुविधा |इसके बाद डोनटफ्रोयो एक्लेयर आदि संस्करणों में और अधिक सुविधाए प्रदान की गयी इनमे से सबसे महत्वपूर्ण विशेषता थी लेख (टेक्स्ट) को आवाज में बदलने के सुविधा |क्लाउड से मोबाइल या टैबलेट में डाऊनलोड की सुविधा बही मेमोरी कार्ड पर अनुप्रयोगों को डाऊनलोड कर इस्तेमाल की सुविधा |
इसके बाद हनीकाम टेबलेट पर प्रयोग के लिये विकसित किया गया और इसमे पाई गयी कमियों को अगले संस्करण आइसक्रीम सैंडविच में दूर किया गया नवीनतम संस्करण जेली बीन के द्वारा यू .एस .बी .आडियो आउट पुट की सुविधा प्रदान की गयी |
क्या होता है ऑपरेटिंग सिस्टम(ओएस )

ऑपरेटिंग सिस्टम एक सिस्टम सॉफ्टवेयर हैजो हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच सेतु  का काम करता है इसका काम हार्डवेयर के रिसोर्सेस को सही ढंग से मैनेज करने का होता है मेमोरीप्रोसेसर और अन्य  इनपुट और आउटपुट डिवाइस को सुव्यवस्थित ढंग से करने का काम ओएस यानी ऑपरेटिंग सिस्टम करता है ओएस के बिना स्मार्टफोन कुछ भी नहीं है फाइल को रिनेम करनाउनकी सेविंग का प्रोसेसप्रिंटिंग का काम ओएस ही देता है। मल्टी प्रोग्रामिंग के लिये ओएस का बहुत अहम रोल होता हैमल्टी प्रोग्रामिंग यानी एक ही समय पर दो से अधिक प्रक्रियाओं का एक दूसरे पर प्रचालन होना । स्मार्टफोन पर मल्टीटास्किंग का काम भी ओएस के जरिये ही होता है मल्टीटास्किंग का अर्थ है एक ही वक्त में फोन की कई सारी एप्लीकेशन से काम लेना जैसे फोन पर बात करते हुए सोशल नेटवर्किंग साईट्स का इस्तेमाल या संदेशों का आदान प्रदान यह सुविधा एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम से पहले नहीं थी |
क्यों है एंड्रॉयड जरा हट के
·         फोन को जैसा चाहें वैसा इस्तेमाल के लायक बनायें
फोन में अपने हिसाब से बदलाव करने की आजादी एंड्रॉयड की सबसे बड़ी खासियत है. फोन की सेटिंग  में जाकर हर फीचर को अपने हिसाब से सेट करना चाहते हैंतो एंड्रॉयड जैसी छूट कोई दूसरा फोन आपको नहीं देगा| ब्लैकबेरीआईफोन और विंडोज आपको ऐसी छूट नहीं देते.

·         गूगल का साथी है  एंड्रॉयड
गूगल के बिना आज इंटरनेट की दुनिया के बारे में सोचना भी मुश्किल है|
 गूगल के तमाम ऐपलिकेश्न्स जैसे सर्चगूगल मैपयू-ट्यूब चलते तो तमाम दूसरे फोन्स में भी हैंलेकिन गूगल की कोई भी नयी एप्लीकेशन आपको एंड्रॉयड में ही मिलेगी |
·         'Google Now'  है चमत्कारी
लंबे समय से स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने वालों की इच्छा थी  कि उनका फोन उनसे बात करेउनकी बात सुने और समझे| किसी इंसान की तरहबातचीत की भाषा में| Google Now ने इस सपने को साकार कर दिया है. ये वो जादू है जो बिना पूछे ही समझ जाता है कि किस वक्त आपको क्या जानकारी चाहिए और आपके सामने वही चीज पेश  करता रहता है - ये आपको बता देगा कि जिस रास्ते आप अपने घर  जाने वाले हैं उस पर इस समय ट्रैफिक का क्या हाल है , Google Now सिर्फ एंड्रॉयड 4.1 या उससे ऊपर के वर्जन में उपलब्ध है. |
·         ऐप्स का असीमत भण्डार 
गूगल प्ले स्टोर में दस लाख से ज्यादा ऐप्स हैं और उनकी संख्या निरंतर  बढ़ रही है| इसे आप  यूं समझ सकते हैं कि अगर आप  हर ऐप को डाउनलोड करके पांच मिनट के लिए आजमाना चाहें तो आपको दस साल से ज्यादा का वक्त  लग जाएगा | दुनिया में हर तरह की पसंदहर तरह की जरूरत के लिए ऐप यहां मौजूद है. अगर आप कोई ऐप खरीदना भी नहीं भी चाहें तो मुफ्त के ही इतने ऐप्स हैं कि आपको अपने अमीर न होने का दुःख नहीं होगा |
·         हर कीमत में दर्जनों फोन
पैसे की कमी  होना  कभी भी एंड्रॉयड फोन खरीदने के रास्ते में बाधा  नहीं बन सकता| गूगल अनेकों  फोन कंपनियों को एंड्रॉयड सॉफ्टवेयर मुफ्त में उपलब्ध  कराता है इसलिए एंड्रॉयड फोन बनाने वाली कंपनियों की भरमार है| सस्ते देसी ब्रांड से लेकर महंगे विदेशी ब्रांड तक |
सब कुछ अच्छा है एंड्रॉयड फोन में ऐसा भी नहीं

·         पूरी तरह सुरक्षित नहीं  है
एंड्रॉयड सॉफ्टवेयर 'ओपेन सोर्सहै यानि कोई भी इसके लिए ऐप बना सकता है. यही बात एंड्रॉयड को सुरक्षा के लिहाज से कमजोर बनाती है| किसी भी हैकर के लिए एंड्रॉयड फोन को हैक करना किसी और फोन के मुकाबले आसान है. मालवेयर हो या घटिया नकली ऐप्सगूगल प्ले स्टोर सबका गढ़  है| एप को गूगल प्ले में उतारने से पहले उसको पर्याप्त रूप से जांचने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है |

·         बार –बार वर्जन अपडेट का झंझट
एंड्रायड सॉफ्टवेयर तो गूगल बना कर कंपनियों को मुहैया कराता है लेकिन हर फोन कंपनी अपने फोन को अलग दिखाने के लिएउसकी अलग पहचान बनाने के लिएएंड्रॉयड सॉफ्टवेयर के साथ कुछ बदलाव करके उसे अपने फोन्स में डालती है. नतीजा ये होता है कि जब गूगल एंड्रॉयड सॉफ्टवेयर का नया और बेहतर वर्जन लांच करता है तो आप सीधे उसे अपने फोन में इसे डाउनलोड नहीं कर सकते. जब तक की आपकी मोबाईल फोन कंपनी इसे आपको उपलब्ध न कराये आपको पुराने वर्जन से काम चलाना पड़ेगा |कई बार कम्पनियां अपडेटेड वर्जन उपलब्ध ही नहीं कराती हैं |
आपको इंतजार करना होगा कि आपकी फोन कंपनी आपके फोन के मॉडल के हिसाब इस वक्त एंड्रॉयड सॉफ्टवेयर का सबसे नया वर्जन लॉलीपॉप  है|
·         बैट्री जल्दी डिस्चार्ज होने की समस्या
एंड्रॉयड फोन में बैटरी की समस्या  सबसे ज्यादा है क्योंकि एंड्रॉयड एक बेहद ही शक्तिशाली सॉफ्टवेयर है जिसे मल्टीटास्किंग के लिए बनाया गया है और इसमें बैटरी की खपत ज्यादा होती है |
·         बार फोन का हैंग और क्रैश होने की समस्या
एंड्रायड फोन में यह समस्या आम है जिसमें फोन बार बार हैंग होता है और थोडा पुराना होने पर ओ एस क्रैश भी हो जाता है |

क्या है एंड्रायड का बिजनेस मॉडल
एंड्राइड मुक्त बिज़नस मॉडल पर काम करता हैं एंड्राइड 47 तकनीकी  और मोबाइल कंपनियों द्वारा मिल कर एक मुक्त हैंडसेट अलायन्स के  रूप में प्रस्तुत किया गया हैं जिनकी  आमदनी  बहुत अधिक हैं जिसके कारण पैसा कमाना इनका मुख्य उद्देश्य नहीं हैं बल्कि एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम तैयार करना जिसके आधार पर व्यवसाय  का और तेजी से  विकास किया जाए इस बाजार  का बहुत तेजी से  बढ़ने का अनुमान हैं अभी एंड्राइड मार्किट 25 डॉलर लेता है रजिस्टर्ड डेवलपर बनने के लिए और पेड एप्स के लिए रेवेनुए शेयरिंग मॉडल पर  काम करता है अभी गूगल एंड्राइड बाजार से केवल 10% का मुनाफा कमा  पाती हैं जबकि बाकी का पैसा वो विज्ञापन  से  कमाती हैI जैसे जैसे एंड्राइड मोबाईल उपभोक्ता बढ़ेंगे इनका मुनाफा और बढेगा |

स्मार्ट फोन में प्रयुक्त होनेवाले दुनिया के प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम
एंड्रॉइड
ये एक तरह का ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसकी शुरुआत 2008 में गूगल ने की थी। इसकी खासियत ने इसे हर स्मार्टफोन का शहंशाह बना दिया। महज 6 साल में करीब एक बिलियन लोगों के हाथों का शान बन चुका एंड्राइड फोन 85फीसदी मोबाइल पर कब्जा कर चुका है।इतना ही नहींवो दिन अब ज्यादा दूर नहीं जब लगभग हर चीजे एंड्राइड से ही चलेगी।
आईओएस
ये ऑपरेटिंग सिस्टम सिर्फ एपल के सेट्स में ही काम करता है।2007 में इसकी शुरुआत आईफोन से हुई थी।शुरुआती दौर में इसमें तकरीबन 500 एप्लिकेशंस थे। एक साल के अंदर ही एक बिलियन एप्लिकेशंस डाउनलोड किये गए थे वहीँ 2014 के बीच में 75 बिलियन डाउनलोड पाये गए थे। 2015 के शुरुआत में आये आंकड़ों की मानें तो एपल ने करीब एक बिलियन डिवाइस बेंचने का दावा किया है।

विंडोज
विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम साल 2010 में लांच हुआ।साल 2014 में विंडोज ने अपना लेटेस्ट वर्जन विंडोज 8.1 लांच किया। हालाँकि कुछ लोग अधिक तकनीकी होने के कारण विंडोज फोन से दूर भागते हैं पर जो लोग एक बार इसकी फंक्शनिंग समझ जाते हैंवो इसे बहुत पसंद करते हैं।एंड्राइड और आईओएस के बाद ही इसका नंबर आता है।

ब्लैकबेरी
ब्लैकबेरी ओएस खास ब्लैकबेरी स्मार्टफोन के लिए बनाया गया है। इसमें कई तरह के एप्लिकेशंस है और कई स्पेशल इनपुट डिवाइसेस भी हैं। ट्रैकपैड और टचस्क्रीन हाल ही में लांच हुआ है।माना जाता है कि अधिकतर गवर्नमेंट एम्प्लॉयीज इसे रखते हैं। वक्त के साथ ब्लैकबेरी के फ़ंक्शंस में भी तेजी से बदलाव आ रहा है और  तेजी से नए एप्लिकेशंस लांच हो रहे हैं।

फायरफॉक्स
फायरफॉक्स मोजिला द्वारा बनाया गया एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम है जो एपल के आईओएस और गूगल के एंड्राइड को तेजी से टक्कर दे रहा है।2 जुलाई 2013 को पहला फायरफॉक्स ओएस लांच किया गया। 2014 में दुनिया के 28 देशों में इसकी पहुँच हो गयी | सर्च फायरफॉक्‍स ओएस की एक ओर खासबात है इसमें दिया गया सर्च ऑप्‍शन जो ऐप्‍स और मोबाइल साइट में फर्क नहीं करता फिर अगर आप मोबाइल में फेसबुक खोलना चाहते हैं तो वो ऐप के द्वारा खुल जाएगा फिर चाहे उसे आप ब्राउजर में ही क्‍यों न खोले |
प्रभात खबर में 29/04/15 को प्रकाशित 

Friday, April 24, 2015

बदलते वक्त के साथ स्मार्ट हो गयी रिस्ट वाच

वक्त रुकता नहीं लगातार चलता रहता है ,हाँ भाई मुझे पता है ये ज्ञान आप सबको पता है आप भी सोच रहे होंगे कि सुबह सुबह ये समय जैसी गंभीर बात क्यों कर रहा हूँ,तो बात कुछ यूँ है कि पिछले दिनों एक रिस्ट वाच भेंट में  मिली यूँ तो घड़ियाँ लोग एक दूसरे को भेंट दिया करते हैं पर ये एक स्मार्ट वाच थी.अपनी कलाई में  बांधे इस घड़ी के स्मार्ट फंक्शन को देखकर मेरे दिमाग में ख्याल आया कि वक्त कितना बदल गया है और घड़ियाँ भी.नहीं समझे अरे भाई वक्त का लेख-जोखा रखने वाली घड़ियाँ वक्त के साथ-साथ ही काफी आगे बढ़ गयीं हैं| अब ये घड़ियाँ सिर्फ वक्त का हिसाब-किताब न रखकर और भी बहुत कुछ करने लगी हैं| एप्पल जैसी कम्पनियाँ जो लगातार बाजार में तकनीक से लबरेज़ नए-नए उत्पाद उतारने के लिए मशहूर हैं अब  तकनीकी रूप से अत्यधिक उन्नत घड़ियाँ बाजार में पेश कर रही हैं जो की  जनसंचार के सन्दर्भ में हमारी समझ में नए आयाम जोड़ रहीं हैं| घड़ियाँ अब सिर्फ समय बताने या जानने का जरिया भर नहीं रह गयी हैं .अब देखिये न
औटोमेटिक घड़ियों ने हाथ से चाभी भरने वाली घड़ियों को चलन से बाहर कर दिया फिर आया मोबाईल का जमाना और ये माना जाने लग गया था कि हाथ पर बंधने वाली घड़ियों का समय अब गया क्योंकि कलाई घड़ियाँ सिर्फ समय बताने का काम करती हैं जबकि मोबाईल समय बताने के साथसाथ बात करने में भी मददगार हैं .तो समय ही नहीं बदल रहा है इस बदलते समय के साथ हमारे हाथ पर बंधने वाली घड़ियाँ भी तेजी से बदल रही हैं तो स्मार्ट वाच के कॉन्सेप्ट ने सारा नजारा ही बदल दिया यानि अब घड़ी पर टाईम देखने के साथ साथ आप ई मेल चेक कर सकते हैं कम्प्यूटर से फाईलों का लेना देना कर सकते हैं और बात भी कर सकते हैं .
हो सकता है आपको मेरी घड़ियों की कहानी समझ में न आ रही हो तो इसे समझने के लिए आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी .वैसे भी बात ज्यादा पुरानी भी नहीं है लगभग पंद्रह साल पहले भारी भरकम  ब्लैक एंड व्हाईट मोबाईल रईसों का शौक हुआ करते थे वो भी पुश बटन वाले और आज हर हाथ में टच स्क्रीन स्मार्ट फोन है तो तकनीक बहुत तेजी से हमारे जीवन में छाती जा रही है वो भी सस्ती कीमत पर .ऐसा ही कुछ स्मार्ट वाच के साथ भी होगी .ये स्मार्ट वाच जो अभी एक्का दुक्का हाथों में दिखती हैं .कुछ ही सालों में हर कलाई की शोभा बढ़ाएंगी क्योंकि ये सिर्फ घड़ियाँ नहीं होंगी ये हर वो काम करेंगी जो आज का मोबाईल कर रहा है .ये घड़ियाँ आने वाले समय में समाचार एवं सूचनाओं के प्रसारण में इस्तेमाल होने वाले शब्दों की संख्या इतनी कम कर देंगी ट्वीट में इस्तेमाल होने वाले शब्द भी बहुत ज्यादा लगने लगेंगे. एप्पल की स्मार्टवाच की लगभग एक करोड से भी अधिक की बिक्री होने के अनुमान लगाये जा रहे हैं.  किसी भी गजेट के बाजार में आने के वक्त की ग्राहक संख्या से उसके भविष्य का अंदाजा लगाना काफी कठिन होता है.भारत इस मामले में अपवाद हो सकता है जिस तरह सस्ते स्मार्ट फोन से भारत के बाजार पट गये हैं ऐसा ही कुछ इन स्मार्ट वाच के साथ होगा. एप्पल की स्मार्टवाच के बाजार में आने के साथ ही इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के तेज होने की उम्मीद है. यह प्रतिस्पर्धा बाजार में सस्ते एंड्रोइड पर आधारित सस्ती स्मार्टवाच के पदार्पण का रास्ता खोल देगी और इन सस्ती स्मार्टवाच का बाज़ार उसी तेज़ी से बढ़ने की संभावना जताई जा रही है जैसे कि सस्ते स्मार्टफोन के बाजार में हुआ है.
 स्मार्टवाच के पहले उपभोक्ता भारत के युवा होंगे जो बदलती तकनीक के साथ कदमताल करना जानते हैं जो जिन्दगी बिताने में नहीं जीने में भरोसा करते हैं और हो भी क्यों न भारत दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश है जहाँ सबसे तेजी से स्मार्ट फोन यूजर्स बढ़ रहे हैं . यदि ऐसा होता है तो आने वाले कुछ वक्त में ही यह स्मार्टवाच के उपभोक्ताओं की संख्या काफी बढ़ जायेगी और इनके लिए सूचनाओं एवं मनोरंजन आधारित सामग्री का उत्पादन करना संचार कंपनियों के लिए फायदे का सौदा बन जाएगा|
स्मार्टवाच उन लोगों के होने की आशा है जो अपनी सेहत का काफी ख्याल रखते हैं| ये स्मार्टवाच दौड़नेतैरनेकसरत करते वक्त दुनिया से जुड़े रहने  में कोई रूकावट नहीं डालेंगी और इनमें लगी एप्प्स इन्हें पहनने वाले व्यक्ति को लगातार उसकी दिल की धडकननब्ज़ब्लड-सुगररक्तचाप आदि की जानकारी भी देती रहेंगी| बदलते वक्त के साथ ये बदलती हुई घड़ियों की कहानी आपको कैसी लगी बताइयेगा जरुर .
आई नेक्स्ट में 24/04/15 को प्रकाशित 

Sunday, April 19, 2015

बदल गयी संवाद की भाषा

संवाद के लिए हमेशा भाषा पर ज्यादा निर्भरता रही और भाषा के लिए लिपि जानने की अनिवार्यता यनी आपको कोई नयी भाषा सीखनी है तो पहले आपको उसकी लिपि सीखनी होगी पर क्या वास्तव में ऐसा है |कम से कम आज की इस बदलती दुनिया में ऐसा नहीं है | इंटरनेट के आगमन और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते चलन ने संचार के चलनों को कई तरह से प्रभावित किया है  जिसमें चिन्हों  और चित्र का इस्तेमाल संवाद का नया माध्यम बन रहा है इसके पहले उपभोक्ता और प्रयोगकर्ता देश के युवा बन रहे हैं |
बात को कुछ यूँ समझिये तकनीकी चिन्ह में हैशटैग सबसे आगे है जो अपनी बात को कहने का एकदम नया जरिया है तो दूसरा तरीका है द्रश्यों के सहारे अपनी बात कहना जल्दी ही वह समय  इतिहास हो जाने वाला है जब आपको कोई एसएमएस मिलेगा कि क्या हो रहा है और आप लिखकर जवाब देंगे। अब समय दृश्य संचार का है। आप तुरंत एक तस्वीर खींचेंगे या वीडियो बनाएंगे और पूछने वाले को भेज देंगे या एक स्माइली भेज देंगे। फोटो या छायाचित्र बहुत पहले से संचार का माध्यम रहे हैंपर सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटरनेट के साथ ने इन्हें इंस्टेंट कम्युनिकेशन मोड (त्वरित संचार माध्यम) में बदल दिया है। अब महज शब्द नहींभाव और परिवेश भी बोल रहे हैं। इस संचार को समझने के लिए न तो किसी भाषा विशेष को जानने की अनिवार्यता है और न ही वर्तनी और व्याकरण की बंदिशें। तस्वीरें पूरी दुनिया की एक सार्वभौमिक भाषा बनकर उभर रही हैं। एसी नील्सन के नियंतण्र मीडिया खपत सूचकांक 2012 से पता चलता है कि एशिया (जापान को छोड़कर) और ब्रिक देशों में इंटरनेट मोबाइल फोन पर टीवी व वीडियो देखने की आदत पश्चिमी देशों व यूरोप के मुकाबले तेजी से बढ़ रही है। मोबाइल पर लिखित एसएमएस संदेशों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। वायरलेस उद्योग की अंतरराष्ट्रीय संस्था सीटीआईए की रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 में 2.19 ट्रिलियन एसएमएस संदेशों का आदान-प्रदान पूरी दुनिया में हुआजो2011 की तुलना में भेजे गए संदेशों की संख्या से पांच प्रतिशत कम रहा। वहीं मल्टीमीडिया मेसेज (एमएमएस) जिसमें फोटो और वीडियो शामिल हैंकी संख्या साल 2012 में 41 प्रतिशत बढ़कर 74.5 बिलियन हो गई। एक साधारण तस्वीर से संचारशब्दों और चिह्नों के मुकाबले कहीं आसान है। फेसबुक पर लोग प्रतिदिन 300 मिलियन चित्रों का आदान-प्रदान कर रहे हैं और साल भर में यह आंकड़ा 100 बिलियन का है। चित्रों का आदान-प्रदान करने वाले लोगों में एक बड़ी संख्या स्मार्टफोन प्रयोगकर्ताओं की है जो स्मार्टफोन द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल करते हैं तथ्य यह भी है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते इस्तेमाल में संचार के पारंपरिक तरीकेजिसका आधार भाषा हुआ करती थीवह कुछ निश्चित चिह्नों/प्रतीकों में बदल रही है। इसे हम इमोजीस या फिर इमोटिकॉन के रूप में जानते हैं जो चेहरे की अभिव्यक्ति जाहिर करते हैं। 1982 में अमेरिकी कंप्यूटर विज्ञानी स्कॉट फॉलमैन ने इसका आविष्कार किया था। स्कॉट फॉलमैन ने जब इसका आविष्कार किया थातब उन्होंने नहीं सोचा था कि एक दिन ये चित्र प्रतीक मानव संचार में इतनी बड़ी भूमिका निभाएंगे। सिस्को के अनुसार वर्ष 2016 में दुनिया भर में दस अरब मोबाइल फोन काम कर रहे होंगे। गूगल के एक सर्वे के मुताबिकभारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद फिलहाल अमेरिका के 24.5 करोड़ स्मार्टफोन धारकों के आधे से भी कम हैपर उम्मीद है कि 2016 तक मोबाइल फोन इंटरनेट तक पहुंचने का बड़ा जरिया बनेंगे और 350 करोड़ संभावित इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में से आधे से ज्यादा मोबाइल के जरिये ही इंटरनेट का इस्तेमाल करेंगे और निश्चय ही तब छायाचित्र संचार का दायर और बढ़ जाएगा वहीं  हैश टैग सोशल (#) मीडिया में अपनी बात को व्यवस्थित तरीके से कहने का नया तरीका  बन रहा है| जागरूकता के निर्माण के अलावा यह उन संगठनों के लिए वरदान है जिनके पास लोगों को संगठित करने के लिए विशाल संसाधन नहीं है | मूल रूप से यह दुनिया की किसी भी प्रचलित भाषा का शब्द या प्रतीक नहीं , मूलतः यह एक तकनीकी चिन्ह पर सब इसे धीरे धीरे अपना रहे हैं | कंप्यूटर और सोशल मीडिया लोगों को एक नयी भाषा दे रहा है | हैशटैग के पीछे नेटवर्क नहीं विचारों का संकलन तर्क शामिल है इससे जब आप किसी हैशटैग के साथ किसी विचार को आगे बढाते हैं तो वह इंटरनेट पर मौजूद उस विशाल जनसमूह का हिस्सा बन जाता है जो उसी हैश टैग के साथ अपनी बात कह रहा है |वहीं तस्वीरें और द्रश्य संवाद पर भाषा की निर्भरता को खत्म कर रहे हैं |
हिन्दुस्तान युवा में 19/04/15 को प्रकाशित 

Friday, April 17, 2015

बड़ा खतरा बन गया है ई -कचरा

तकनीकी के इस ज़माने में हर उस शब्द जिसके कि साथ 'जुड़ जाता है प्रगति का पर्याय  बन जाता है. इस समय  इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। मोबाइल,कम्प्युटरलैपटॉपटैबलेटआदि अब आधुनिक उपकरण हमारे  जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं।तकनीक की इस आपा धापी में हम कभी इस विषय की ओर नहीं सोचते कि जब इन उपकरणों की उपयोगिता खत्म हो जायेगी तब इनका क्या किया जाएगा | ई-कचरे के अंतर्गत वे सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आते हैं जिनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। ई-कचरा या ई वेस्ट एक ऐसा शब्द है जो तरक्की के इस प्रतीक के दूसरे पहलू की ओर इशारा करता है वह पहलू है पर्यावरण की बर्बादी ।
 संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न संस्थाओंउद्योग जगतविभिन्न देशों की सरकारों एवं वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार वर्ष २०१७ विश्व भर में उत्पन्न होने वाले ई-कचरे की कुल मात्रा साढ़े छह करोड़ टन के लगभग पहुँच जाएगी. ई-कचरे का सबसे अधिक उत्सर्जन विकसित देशों द्वारा किया जाता है जिसमे अमेरिका अव्वल है. विकसित देशों में पैदा होने वाला अधिकतर ई-कचरा प्रशमन के लिए  एशिया और पश्चिमी अफ्रीका के गरीब अथवा अल्प-विकसित देशों में भेज दिया जाता है |यह ई-कचरा इन देशों के लिए भीषण मुसीबत का रूप लेता जा रहा है. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग ४ लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है. राज्यसभा सचिवालय द्वारा  'ई-वेस्ट इन इंडियाके नाम से प्रकाशित एक दस्तावेज के अनुसार भारत में उत्पन्न होने वाले कुल ई-कचरे का लगभग सत्तर प्रतिशत केवल दस  राज्यों और लगभग साठ प्रतिशत कुल पैंसठ शहरों से आता है. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में ई-कचरे के उत्पादन में मामले में महाराष्ट्र और तमिल नाडु जैसे समृृद्ध राज्य और मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर अव्वल हैं. एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार देश का लगभग ९० प्रतिशत ई-कचरा असंगठित क्षेत्र केअप्रशिक्षित लोगों द्वारा निस्तारित किया जाता है. इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग इस कार्य के लिए आवश्यक सुरक्षा मानकों से अनभिज्ञ हैं.  एक अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार इस वक़्त देश में लगभग १६ कम्पनियाँ ई-कचरे के प्रशमन के काम में लगी हैं. इनकी कुल क्षमता साल में लगभग ६६,००० टन ई-कचरे को निस्तारित करने की है जो कि देश में पैदा होने वाले कुल ई-कचरे के दस  प्रतिशत से भी काम है.
विगत कुछ वर्षों में ई-कचरे की मात्रा में लगातार तीव्र वृद्धि हो रही है और प्रतिवर्ष लगभग 20 से 50 मीट्रिक टन ई-कचरा विश्व भर फेंका जा रहा है। ग्रीनपीस संस्था के अनुसार ई-कचरा विश्व भर में उत्पन्न होने वाले ठोस कचरे का लगभग पाँच प्रतिशत है। साथ ही विभिन्न प्रकार के ठोस कचरे में सबसे तेज़ वृद्धि दर ई-कचरे में ही देखी जा रही है क्योंकि लोग अब अपने टेलिविजन,कम्प्युटरमोबाइलप्रिंटर आदि को पहले से अधिक जल्दी बदलने लगे है। इनमें सबसे ज्यादा दिक्कत पैदा हो रही है कम्प्युटर और मोबाइल से क्योंकि इनका तकनीकी विकास इतनी तीव्र गति से हो रहा है कि ये बहुत ही कम समय में पुराने हो जाते हैं और इन्हें जल्दी बदलना पड़ता है। भविष्य में ई-कचरे की समस्या कितनी विकराल हो सकती है इस बात का अंदाज़ा इन कुछ तथ्यों के माध्यम से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में विकसित देशों में कम्प्युटर और मोबाइल उपकरणों की औसत आयु घट कर मात्र दो  साल रह गई है। घटते दामों और बढ़ती क्र्य शक्ति के फलस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे मोबाइलटीवीकम्प्युटरआदि की संख्या और प्रतिस्थापना दर में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है|जिससे निकला ई कचरा सम्पूर्ण विश्व में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है|भारत जैसे देश में जहाँ शिक्षा और जागरूकता का अभाव है वहां सस्ती तकनीक ई कचरे जैसी समस्याएं ला रही है|
घरेलू ई-कचरे जैसे अनुपयोगी टीवी और रेफ्रिजरेटर में लगभग एक हजार विषैले पदार्थ होते हैं जो मिट्टी एवं भू-जल को प्रदूषित करते हैं। इन पदार्थों के संपर्क में आने पर सरदर्दउल्टी , मतलीआँखों में दर्द जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। ई-कचरे का पुनर्चक्रण एवं निस्तारण अत्यंत ही महत्वपूर्ण विषय है जिसके बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। भारत सरकार ने ई-कचरे के प्रबंधन के लिए विस्तृत नियम बनाए हैं जो कि 1 मई 2012 से प्रभाव में आ गए हैं। ई-कचरा (प्रबंधन एवं संचालन नियम) 2011 के अंतर्गत ई-कचरे के पुनर्चक्रण एवं निस्तारण के लिए विस्तृत निर्देश दिये गए हैं। हालांकि इन दिशा निर्देशों का पालन किस सीमा तक किया जा रहा है यह कह पाना कठिन है। जानकारी के अभाव में ई-कचरे के शमन में लगे लोग कई  प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त  हो रहे हैं। अकेले दिल्ली में ही एशिया का लगभग 85 प्रतिशत ई-कचरा शमन के लिए आता है परंतु इसके निस्तारण के लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है। आवश्यक जानकारी एवं सुविधाओं के अभाव में न केवल ई-कचरे के निस्तारण में लगे लोग न केवल अपने स्वास्थ्य को  नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि पर्यावरण को भी दूषित कर  रहे हैं। ई-कचरे में कई जहरीले और खतरनाक रसायन तथा अन्य पदार्थ जैसे सीसाकांसापारा,कैडमियम आदि शामिल होते हैं जो  उचित शमन प्रणाली के अभाव में पर्यवरण के लिए काफी खतरा पैदा करते हैं। एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने ई-कचरे के केवल 5 प्रतिशत का ही पुनर्चक्रण कर पाता है।
ई-कचरे के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी उत्पादकउपभोक्ता एवं सरकार की सम्मिलित हिस्सेदारी होनी चाहिए । उत्पादक की ज़िम्मेदारी है कि वह कम से कम हानिकारक पदार्थों का प्रयोग करें एवं ई-कचरे के प्रशमन का उचित प्रबंधन करें,उपभोक्ता की ज़िम्मेदारी है कि वह ई-कचरे को इधर उधर न फेंक कर उसे पुनर्चक्रण के लिए उचित संस्था को दें तथा सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह ई-कचरे के प्रबंधन के ठोस और व्यावहारिक नियम बनाए और उनका पालन सुनिश्चित करे.
 नवभारत टाईम्स में 17/04/15 को  प्रकाशित लेख 

Thursday, April 16, 2015

टेलीकॉम कम्पनियों के नए कदम से नेट न्यूट्रैलिटी को चुनौती

मानव सभ्यता के इतिहास को तीन चीजों ने हमेशा के लिए बदल दिया |वह हैं आग पहिया और इंटरनेट |जिसमें इंटरनेट का सबसे क्रांतिकारी असर पूरी दुनिया पर हुआ जिसने दुनिया और दुनिया को देखने का नजरिया बदल दिया हैबात चाहे ख़बरों की हो,ऑनलाइन शॉपिंग या सोशल नेटवर्किंग साईट्स सब इंटरनेट पर निर्भर है|इंटरनेट ने हमारे जीवन को कितना आसान बना दिया है वो चाहे टिकट का आरक्षण हो या किसी बिल का भुगतान सब कुछ माउस की एक क्लिक पर, लेकिन यह सब इस बात पर  निर्भर करेगा कि सबको इंटरनेट की पहुंच समान रूप से उपलब्‍ध होयानी वे जो चाहें इंटरनेट पर खोज सकेंदेख सकें वह भी बिना किसी भेदभाव के या कीमतों में किसी अंतर केयहीं से इंटरनेट निरपेक्षता’  यानि नेट न्यूट्रैलिटी का सिद्धांत निकला हैमुख्य तौर  पर यह इंटरनेट की आजादी या बिना किसी भेदभाव के इंटरनेट तक पहुंच की स्‍वतंत्रता का मामला है| संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार इन्टरनेट सेवा से लोगों को वंचित करना और ऑनलाइन सूचनाओं के मुक्त प्रसार में बाधा पहुँचाना मानवाधिकारों के उल्लघंन की श्रेणी में माना जाएगा संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि फ़्रैंक ला रू ने ये रिपोर्ट विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रसार  और संरक्षण के अधीन तैयार की है|यानि हम कह सकते हैं कि इन्टरनेट आने वाले समय में संविधान सम्मत और मानवीय अधिकारों का एक प्रतिनिधि बन कर उभरेगा इसी कड़ी में फिनलैंड ने विश्व के सभी देशों के समक्ष एक उदहारण पेश करते हुए इन्टरनेट को मूलभूत कानूनी अधिकार में शामिल कर लिया | इंटरनेट के प्रसार व उपभोग बढने के साथ ही इसकी आजादी का मुद्दा समय समय पर उठता रहा है| इंटरनेट के विकास और व्यवसाय  को वास्तविक गति मोबाईल और एप ने दी है|एप से तात्पर्य  किसी कंप्यूटर वेबसाईट का लघु मोबाईल स्वरुप जो सिर्फ मोबाईल पर ही चलता है |एप ने इंटरनेट के बाजार को ख़ासा प्रभावित किया है |एप के आने के पहले इंटरनेट का इस्तेमाल विभिन्न वेबसाईट का इस्तेमाल सिर्फ कंप्यूटर पर ही किया जा सकता है |एंड्राइड मोबाईल के विकास और गूगल प्ले स्टोर पर मुफ्त उपलब्ध एप ने इंटरनेट के प्रयोग को खासी गति दे दी है|कंपनियां इस पर तरह तरह के रोक लगाना चाहती हैं|
नेट न्यूट्रैलिटी का इतिहास
इस शब्‍द का सबसे पहले इस्‍तेमाल साल 2003 में  कोलंबिया विश्‍वविद्यालय में  मीडिया लॉ के  प्रोफेसर टिम वू (Tim Wu) ने किया थाइसे नेटवर्क तटस्‍थता  (network neutrality), इंटरनेट न्‍यूट्रालिटी (Internet neutrality), तथा नेट समानता (net equality) भी कहा जाता है| नेट न्‍यूट्रालिटी का मतलब होता है हम जो भी इंटरनेट सेवा या एप इस्तेमाल करें वह हमें हर इंटरनेट सेवा प्रदाता से एक स्पीड और एक ही मूल्य पर मिलें | इंटरनेट सेवा मुहैया करवाने वाली टेलीकॉम कंपनियों  को लोगों को उनकी डाटा खपत के हिसाब से मूल्य वसूलना  चाहिए| चिली विश्व का सबसे पहला देश है जिसने नेटन्‍यूट्रालिटी को लेकर 2010 में अधिनियम पारित किया है.  
नेट न्‍यूट्रालिटी का अर्थ
आसान शब्दों में यदि हम इस शब्द को समझें तो इसका अर्थ यह होता है कि इंटरनेट पर उपलब्ध हर एक साइट पर हम बराबरी से पहुँच स्थापित कर पायेंहर एक वेबसाइट एक किलोबाइट या मेगाबाइट की प्रति पैसा दर बराबर रखेकिसी विशिष्ट वेबसाइट की गति/स्पीड अधिक अथवा कम न हो.किसी भी तरह के गेटवे जैसे एयरटेल वन टच इंटरनेटडेटा वैल्यू एडेड सर्विसेजइंटरनेट डॉट ओआरजी आदि न होंकोई भी वेबसाइट जीरो रेटिंग” न हो या कुछ वेबसाइटों को दूसरे के मुक़ाबले मुफ़्त ना बना दिया जाये
भारत में विवाद
भारत में यह मुद्दा पिछले साल अगस्त महीने में एयरटेल द्वारा उछाला गया थाटेलीकॉम कंपनियों ने टेलीकॉम अथॉरिटी के सामने यह मुद्दा रखा था कि फ्री वोइस कालिंग ओर मल्टीमीडिया संदेशों की वजह से एसएमएस ओर मोबाइल कालिंग में भारी गिरावट आती जा रही है इस कारण उन्हें सालाना 5000करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा हैइंटरनेट की सुलभता और बिना किसी खर्च के आसानी से मोबाइल पर उपलब्ध हो जाने वाले एप्स इसका मुख्य कारण हैभारत की सबसे बड़ी मोबाईल  कंपनी भारती एयरटेल ने एक ऐसा मोबाइल इंटरनेट प्लान लॉन्च किया है जिसमें  कुछ ऐप्स उपभोक्ताओं को मुफ़्त दिए जाएंगे,शेष के लिए कम्पनी उपभोक्ताओं से शुल्क वसूलेगी |अब अगर आप एयरटेल उपभोक्ता हैं तो इसका सीधा मतलब ये है कि आपके बजाय अब एयरटेल ये फ़ैसला करेगा कि आप कौन-कौन से ऐप्स का इस्तेमाल मुफ़्त कर सकते हैं,जबकि इससे पूर्व आप गूगल प्ले स्टोर पर किसी भी एप को डाउनलोड कर सकते थे और मोबाईल कम्पनी सिर्फ इस्तेमाल किये गए डाटा का शुल्क ही आप से वसूलेगी |यदि एप मुफ्त नहीं है तो भी एप का शुल्क एप उपलब्ध कराने वाली कंपनी को मिलेगा न की मोबाईल कम्पनी को पर अब मुफ्त एप के लिए भी कम्पनी आपसे शुल्क वसूलेगी |एयरटेल ज़ीरोनाम के इस प्लान की सोशल मीडिया पर काफ़ी आलोचना हुई है |विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसी योजनाओं से नेट न्यूट्रैलिटी’ यानी इंटरनेट के निष्पक्ष स्वरूप पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा|
मोबाईल कम्पनियां व्हाट्स एप ,फेसबुक और दूसरे मेसेजिंग एप के आने के कारण चिंतित हैं क्योंकि इन मेसेजिंग एप से उनके व्यवसाय प्रभावित हो रहा है |एस एम् एस को इन चैटिंग ने लगभग समाप्त कर दिया है |अब ऐसे अधिकतर एप्स में वायस कॉलिंग सुविधा के आ जाने से  है उन्हें कॉल से मिलने वाली आय भी प्रभावित होते दिख रही है |
नेट न्यूट्रैलिटी के समर्थन में जोरदार बहस चल पडी है और ऑन लाइन दुनिया में एक पिटीशन भी शुरू की गयी है और इसके पक्ष में जनसमर्थन जुटाने के लिए ट्विटर पर #NetNeutrality नाम से एक हैश टैग भी चल रहा है जिसमें डेढ़ लाख लोगों से ज्यादा लोग अपने विचार रख चुके हैं |
लोग यह चाहते हैं कि इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए उपयोग में लाने वाले डाटा पैक अलग अलग न हों |सभी ट्रैफिक के एक ही डाटा पैक हों यानि गूगल वेबसाईट इस्तेमाल करने पर कोई दुसरी स्पीड और स्काईप इस्तेमाल करने के लिए कोई दुसरी नेट स्पीड न मिले भारत में इंटरनेट न्यूट्रैलिटी का मुद्दा अभी एकदम नया  है और  इंटरनेट निष्पक्षता से जुड़ा कोई क़ानून फिलहाल अभी तक बना  नहीं है और जानकारों का कहना है कि मोबाइल कंपनियां इसका फ़ायदा मुनाफ़ा बनाने के लिए कर रही हैं|नेट न्यूट्रैलिटी’ के हिसाब से ब कोई उपभोक्ता कोई भी डेटा प्लान ख़रीदता है तो उसे हक है कि उस प्लान में दी गई इंटरनेट स्पीड हर ऐप या वेबसाइट के लिए एक समान रहे|एक समय में अमरीका में भी इस मुद्दे पर बहस हुई थी और वहां फ़ैसला उपभोक्ताओं के पक्ष में लिया गया था|दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राईने इस विषय पर सेवाओं के नियमन से जुड़े बीस सवालों पर जनता से राय माँगी है |कम्पनियां 24 अप्रैल और आम जनता मई तक इस मुद्दे पर अपने सुझाव दे सकते हैं |यह राय advqos@trai.gov.in पर दी जा सकती है |
कैसे खत्म हो रही है नेट न्यूट्रैलिटी
टेलीकॉम कम्पनियां न केवल नेट न्यूट्रैलिटी को खत्म करने की मांग कर रही हैं वरन उन्होंने धीरे धीरे इसे ख़त्म करना शुरू भी कर दिया है|एयर टेल के अलावा रिलायंस ने फेसबुक के साथ मिलकर ऐसा ही इंटरनेट प्रोग्राम डॉट ओर्ग की शुरुवात की है |इसमें आप सर्च इंजन बिंग तो मुफ्त में इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन गूगल के प्रयोग के लिए आपको कीमत देनी होगी |नौकरी खोजने वाली वेबसाईट बाबा जॉब फ्री में उपलब्ध है लेकिन नौकरी डॉट कॉम के लिए शुल्क अदा करना पड़ेगा |
 तो क्या अब एप्स के लिए भी चार्ज देना होगा??
दुनिया को जोड़ने वालाइंटरनेट। एक क्लिक पर सवाल के तमाम जवाब देने वालाइंटरनेट। घर बैठे शॉपिंग और फिर घर बैठे ही डिलीवरी करने वालाइंटरनेट। आमजनों की जरुरत सा बन चुका है इंटरनेट। पर अगर आपको पता चले कि कुछ ही दिनों में शॉपिंग साइट एप्सचैट एप्स एक्सेस करने पर आपको चार्ज करना पड़ेगा तोखबर है कि टेलीकॉम कम्पनी एयरटेल अब तय करेगी कि किस एप को फ्री करना है और किस एप के लिए उपभोगताओं से पैसे चार्ज करना है।  इसका सीधा सा मतलब ये है कि जो मोबाइल ऐप एयरटेल को पैसा देगीउसे कंपनी मुफ़्त में उपभोक्ताओं तक पहुंचाएगी।  इस स्कीम को एयरटेल के जीरो स्कीम के नाम से जाना जाएगा। हालाँकि ये स्कीम इंटरनेट न्यूट्रैलिटी का उलंघन कर रही है और सोशल साइट्स पर इंटरनेट यूजर्स इसका जमकर विरोध भी कर रहे हैं। नेट न्यूट्रैलिटी’ का मतलब है कि इंटरनेट पर हर ऐपहर वेबसाइट और हर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म बराबर हैं।  इंटरनेट फैसिलिटी प्रोवाइड करवाने वाली टेलीकॉम कंपनी को लोगों को उनकी डेटा यूसेज के हिसाब से चार्ज करना चाहिए।  एयरटेल की ये स्कीम इंटरनेट के रूल्स के खिलाफ है।  इसका सीधा सा मतलब ये है कि हो सकता है एयरटेल सिर्फ उन्हीं एप्स को प्राथमिकता दें जिससे उसकी डील हो।  वैसे खबर ये भी है कि वॉट्सएप भी अब सालाना 60 रुपये चार्ज करने वाला है।  इसके कम्पटीशन में रिलायंस ने जिओ नाम के एप की शुरुआत की है जो तेजी से डाउनलोड किया जा रहा है।  इसमें वीडियोकॉलिंग की फैसिलिटी के साथ साथ 100 मैसेज भी फ्री दे रहे। 
 नेट न्यूट्रालिटी के पक्ष-
·          नेट न्यूट्रालिटी उपभोगताओं से सिर्फ उनके डेटा यूसेज के हिसाब से ही चार्ज करती है। इसके अतिरिक्त उनसे अन्य खर्च नहीं लिया जाता। इस कारण उपभोक्ता बिना सोचे जरुरत के हिसाब से एप्स डाउनलोड करते हैं।
·          उपभोगताओं द्वारा किसी भी डेटा प्लान खरीदने पर इंटरनेट स्पीड हर एप और सभी वेबसाइट के लिए सामान रहती है। इसका सीधा सा मतलब ये  है कि इंटरनेट सर्विस प्रदान करने वाली कंपनियां इंटरनेट पर हर तरह के डाटा को एक जैसा दर्जा देती है। इस कारण यूजर्स एक साथ कई टैब्स खोलकर चीजे सर्च कर लेते हैं।  उपभोक्ता जो चाहें इंटरनेट पर खोज सकतेदेख सकते हैं वह भी बिना किसी भेदभाव के या कीमतों में किसी अंतर के।
·          ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ के चलते किसी भी एप को यूज करने के लिए अलग से डेटा पैक की जरुरत नहीं होती। मतलब एक बार डेटा पैक रिचार्ज कराने पर खुलकर इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। आशय यह है कि कोई खास वेबसाइट या इंटरनेट आधारित सर्विस के लिए नेटवर्क प्रवाइडर आपको अलग से चार्ज नहीं कर सकता।
·          एक बार डेटा पैक कराने के बाद फेसबुकटि्वटर जैसे सोशल मीडिया साइट्स,मेसेजिंग या कॉल सर्विस जैसे वॉट्सऐप,स्काइप,गूगल हैंगआउट से लाइव बातचीतकई तरह की ईमेल सर्विसेजन्यूज से जुड़ी साइट्स पर ऐक्सेस आसानी से फ्री में किया जा सकता है। इसके लिए अतिरिक्त कोई चार्ज नहीं देना होता है।
·          नेट न्यूट्रालिटी इंटरनेट की आज़ादी को बढ़ावा देता हैसाथ ही इंटरनेट के प्रचार प्रसार के किये बहुत  उपयोगी है।
नेट न्यूट्रालिटी के विपक्ष
·          नेट न्यूट्रालिटी से उपभोक्ताओं को तो फायदा होता है पर इससे कम्पनीज को कुछ हद तक घाटा होता है।
·          अधिक इंटरनेट के इस्तेमाल पर आईएसपी(इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरअतिरिक्त पैसे चार्ज कर सकती है। नेट न्यूट्रालिटी का प्रावधान है कि एक बार डेटा पैक कराने के बाद  अलग से एप आदि का चार्ज नहीं करेगा। पर इसके अतिरिक्त  उपभोक्ता जरुरत से अधिक इंटरनेट का इस्तेमाल करता हैतो आईएसपी  उससे चार्ज ले सकता है।
·          आईएसपी के पास अधिकार है कि जिस कंटेंट को न दिखाना,चाहे  उसे ब्लॉक कर सकता है। अर्थात सेंसरशिप लगाने का पूरा अधिकार आईएसपी के पास है।
·          अधिक फाइल ट्रांसफर करने पर इंटरनेट स्पीड स्लो हो  सकती है। जीमेल हॉटमेल के मुकाबले तेज काम करता है। स्पीड ट्रांसफर रेट पर निर्भर करती है।
·          नेट न्यूट्रालिटी हटने के बाद हो सकता है कि कम्पनीज को फायदा ही और वो  कस्टमर्स को बेहतर सर्विस मुहैय्या कराये। जिससे एक तरह से उपभोक्ताओं को ही फायदा होगा।
भारत में नेट न्यूट्रालिटी से जुड़े प्रमुख कानूनी प्रावधान
एयरटेल का जीरो स्कीम नेट न्यूट्रिलिटी के खिलाफ है लेकिन इसके लिए कोई कानून नहीं होने से इसे गैर कानूनी नहीं कहा जा सकता है।जानकारों की मानें तो जल्द ही इसके खिलाफ  प्रावधान बनाया जाएगा। देश में फिलहाल नेट न्यूट्रालिटी के लिए अभी कोई कानून नहीं है।
सम्बंधित तकनीकी शब्दावली
वी ओ आई पी :- वोइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल जिससे के माध्यम से आप दुनिया में कहीं भी सस्ती इंटरनेट डेटा दर या फ्री वोइस कॉल कर सकते हैं जैसे कि व्हाट्स एपस्काइप या व्हाईबर इत्यादि.
ओ टी टी :- ओवर दा टॉप या मूल्य वर्धित सेवाए जैसे की विडियो कालिंगइंटरनेट टीवी(आई पी टीवी), स्ट्रीमिंग मल्टीमीडिया सन्देशजिसके कारण टेलिकॉम कम्पनियों सालाना 5000 करोड़ का नुखसान हो रहा हैं I

प्रभात खबर में 16/04/15 को प्रकाशित 

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