Tuesday, March 25, 2014

गंदी बात का भी बने मुद्दा

भाई जमाना कितनी तेजी से बदल रहा है .हम जब छोटे थे तो हमें बताया जाता था. पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे होगे खराब”,पता नहीं कितना सच था कितना झूठ पर आजकल एक गाना सुन रहा हूँ ए बी सी डी पढ़ ली बहुत अच्छी बातें कर लीं बहुत अब करूँगा तेरे साथ गंदी गंदी बाततो आज मेरा आपसे कुछ गंदी बात करने का मन कर रहा है.अरे भाई बुरा मत मानिए मुझे पता है आपको गंदी बात करना पसंद नहीं है पर मैंने कहीं सुना था बात से बात निकलती है और बात करने से ही  बात बनती है तो भाई हमारे आस पास बहुत कुछ गन्दा है और अगर इसकी सफाई करनी है तो उन गंदी चीजों पर बात तो करनी पड़ेगी न पर आपको थोडा धीरज रखना पड़ेगा.आपने ट्रेन से सफर तो जरुर किया होगा कुछ याद कीजिये आप सुबह सुबह ट्रेन में सोकर उठे अपने स्टेशन पर उतरने के लिए पर ये क्या पटरियों के अगल बगल बहुत से लोग फारिग हो रहे हैं कैसा लगता है आपको ये सब देखकर.अब आप फिर कहेंगे कि मैं गंदी बात कर रहा हूँ पर इस गंदगी को साफ़ तभी किया जा सकता है जब हम इन गंदे मुद्दों पर बात करेंगे लोगों को अवेयर करेंगे आपको पता है भारत दुनिया का सबसे बड़े  खुले  शौचालय वाला देश है और हमारी ट्रेन में आज भी खुले शौचालय हैं.हमारे यहाँ  दुनिया के लगभग साठ प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं और उनके  मल के उचित प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं है.देश के गाँव अभी  भी खुले में शौच के लिए अभिशप्त है और तो और बांग्लादेश,नेपाल ,पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देश भी खुले शौचालय के मामले में हमसे बेहतर स्थिति में है.शौचालयों के न होने का मतलब है  खुले में शौच .जिससे बच्चों में जीवाणु संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, जो छोटी आंतों को नुकसान पहुंचा सकता है इससे  बच्चों के बढ़ने, विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को लेने  की क्षमता या तो कम हो जाती है या रुक जाती है, तो  इससे कोई असर  नहीं पड़ता कि उन्होंने कितना और कैसा खाना खाया है.आंकड़ों की बात तो हो गयी पर ये तस्वीर बदलेगी तभी जब हम अपनी सोच को शौच से जोड देंगे यानि अब वक्त है गंदी बात को अच्छी बात में बदलने का.चुनाव आ रहे हैं और हर पॉलीटिकल पार्टी का अपना एजेंडा है जिसके मूल में रोटी कपडा और मकान जैसी बातें पर कभी आपने सोचा कि आपका मकान ऐसी जगह हो जहाँ गंदगी का अम्बार लगा हो जो रोटी आप खा रहे हैं उसके आस पास कीटाणु हों कैसा लगा, गन्दा लगा न अभी तो मैंने कपड़ों की बात की ही नहीं तो क्या मेरी ये गंदी बात क्या चुनावी मुद्दा नहीं होना चाहिए. दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स के एक अतिथि प्रोफेसर डीन स्पीयर्स की रिसर्च के  मुताबिक जिन भारतीय ज़िलों में शौचालय हैं, वहां बौने बच्चों की संख्या कम है.2011 के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि जिन भारतीय बच्चों को दस्त लगे हैं, उनमें करीब अस्सी प्रतिशत  शौच करने के बाद साबुन से हाथ साफ नहीं करते. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत  कि पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों के कुपोषित होने की मुख्य वजह दस्त है। विश्व में प्रत्येक वर्ष इस उम्र वर्ग के 800,000 से ज्यादा बच्चों की दस्त से मृत्यु होती है,और  इनमें से एक चौथाई मौतें भारत में होती हैं. बचपने में टीवी पर एक प्रोग्राम आता था जान है तो जहान है तब मतलब नहीं समझ पाते थे.जानते हैं क्यूँ गंदी बात करने की मनाही थी .आज भी  छोटे बच्चों को कहीं भी खड़ा कर दिया जाता है जा बेटा निपट ले और हम भी तो बस मौके की तलाश में ही रहते हैं.आज भी  लोकल ट्रेन में शौचालय नहीं होते हैं कभी आपने सोचा उस ट्रेन में ट्रेवल करने वाली महिलायें क्या कुछ झेलती होंगी.गाँवों की हालत तो और भी खराब है.पुरुष तो कहीं भी फारिग हो सकता है इसमें किसी को कल्चरल शोक नहीं लगता पर यही काम कोई फीमेल करे तो सभ्यता संस्कृति और न जाने क्या खतरे में पड़ जाता है.मेरे डूड भाई बहन लोग दुनिया सोशल नेटवर्किंग साईट्स और चैटिंग एप्स से अलग है  जब हमारे आस पास की दुनिया साफ़ सुथरी होगी तो गंदी बात भी नहीं होगी तो सोच क्या रहे हैं लोगों को अवेयर कीजिये और खुद भी अवेयर होईये क्यूंकि जान है तो जहान है इस गंदी बात को मुद्दा बनाइये क्यूंकि एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है.रोटी कपडा और मकान तो चाहिए पर साफ़ सुथरे माहौल में.इंतज़ार किस बात का जरा एक स्टेट्स अपडेट कीजिये और गंदी बात को अच्छी बात बनाइये क्यूंकि हम हैं नए तो अंदाज़ क्यूँ हो पुराना.कुछ समझे क्या .
आई नेक्स्ट में 25/03/14 को प्रकाशित 

Tuesday, March 11, 2014

क्यूंकि फर्क तो पड़ता है ...

आजकल नेट डाइटिंग पर चल रहा हूँ अरे भाई वर्च्युल रहने के चक्कर में रीयल को खो रहा था सोचा क्यूँ न एक ब्रेक लिया जाए.इस दौर में मैंने देखा कि लत कोई भी हो छोडी जा सकती है पर जो चीज छूट्ती है याद भी आती है. भले ही वो सोशल नेटवर्किंग साईट्स ही क्यूँ न हो तो मुझे अपना फेसबुक अकाउंट याद आता है वो दोस्त याद आते हैं जिनकी फीड पर मेरी लगातर नजर रहती थी.जिनके स्टेटस को मैं पढने का इच्छुक रहा करता था .आजकल सब छोड़कर जिन्दगी को करीब से महसूस कर रहा हूँ.अब तक आपके दिमाग की बत्ती जल चुकी होगी कि मेरे फेसबुक छोड़ने या न छोड़ने के किस्से को आप क्यूँ झेलें.आप अपनी जगह एकदम सही हैं. मैं इतना इम्पोर्टेंट तो हूँ नहीं और आप सोशल नेटवर्किंग साईट्स यूजर अभी हैं तो मामला ये है कि इस चुनावी मौसम में जब मौसम में गर्मी बढ़ रही है और देश का सियासी पारा भी गर्मा रहा हैऔर आपकी फीड पोलिटिकल कैम्पेन से भरी हुई है तो आप पौलीटिक्स से बच  नहीं सकते हैं. वैसे भी पोलीटिकल पार्टीस को कोसना आसान है पर चेंज लाना मुश्किल तो हर एक वोट की अहमियत है .मैं फेसबुक और तमाम सोशल नेटवर्किंग साईट्स के यूजर की नजर से आपको वोटिंग बिहैवियर समझाने जा रहा हूँ. 
आपका भी फेसबुक एकाउंट होगा और उसमें ढेर सारे दोस्त भी होंगे.अब इसमें कौन सी बड़ी बात है सबके होते हैं.अरे मामला यही से शुरू होता आपने कभी गौर किया कि आपकी फीड पर क्या होता है मुझे पता है पौलीटिक्स आपको बोर करती है तो पौलीटिक्स की इस  भारी बात को हलके तरीके से समझाना चाहता हूँ क्यूंकि गूगल की इस दुनिया में ज्ञान यूँ ही कोई लेना नहीं चाहता तो मैं बात करता हूँ वोटिंग बीहैवियर की. जैसे  फेसबुक दोस्त कई तरह के होते उसी तरह वोटर भी कई तरह के होते हैं.कुछ ऐसे जो सोचते हैं कि हमारे एक वोट से क्या होता है सरकार किसी की भी बने वो किसी को भी वोट देते हैं.हमारे कुछ फेसबुक दोस्त में से भी कुछ प्रोफेशनल लाइकर्स होते हैं आप कुछ भी शेयर कीजिये वो आयेंगे और लाईक करके चले जायेंगे आप भी ऐसे दोस्तों को धीरे धीरे सीरियसली नहीं लेते और  नए लाइकर्स पर ध्यान देते हैं पर ये  प्रोफेशनल लाइकर्स आपकी फीड पर लाईक बढ़ा देते हैं. भले ही आपकी शेयरिंग इस लायक न हो तो वोट करते वक्त सिलेक्टिव बनिए क्यूंकि यूँ ही किसी को भी वोट देने से जैसे बेकार फीड हिट हो जाती है उसी तरह गलत आदमी चुनाव जीत जाता है तो डूड आपके एक लाईक और एक वोट से फर्क  पड़ता है.वोटिंग के दिन कुछ लोग छुट्टी मनाते हैं और वोट देने नहीं जाते अब जरा अपने फेसबुक के मित्रों को याद करिए उनमें से कुछ ऐसे होंगे जिन्होंने जो सबकी फीड पर नजर तो रखते हैं पर न तो लाईक करते हैं और न ही कमेन्ट ऐसे ही लोग वोटिंग के दिन वोट नहीं करते सबकुछ जानते समझते हुए भी वे  अपनी जिम्मेदारियां नहीं समझते अगर आपका फेसबुक एकाउंट बनाया है तो कुछ एक्टीविटी भी करिए और वोटिंग लिस्ट में आपका नाम है तो वोट देने जरुर जाइए.बात धीरे फ़ैल रही है कि छोटी छोटी बातें कितना बड़ा असर रखती हैं.आपने गौर किया होगा जब आप कुछ शेयर करते हैं तो कुछ लोग पब्लिकली उस स्टेटस अपडेट को न तो लाईक करते हैं न कमेन्ट पर मेसेज बॉक्स में आ के बड़ी मीठी मीठी बातें करते हैं आपकी चैट की बत्ती जली नहीं कि इनका हेलो हाय शुरू हो गया.आप भी जल्दी जान जाते हैं कि इनकी मीठी मीठी बातों का मकसद आपसे कोई काम निकलवाना होता पर ये पब्लिकली बताना नहीं चाहते कि वो आपसे जुड़े हुए हैं .आप खुद सोचिये आप क्या इतने फ्री हैं कि यूँ ही किसी से चैट करते हैं और अगर करते हैं तो आप इमोशनली कमज़ोर हैं. मैं सही कह रहा हूँ न ऐसे लोग उन नेताओं की तरह होते हैं जो डबल फेस्ड होते हैं इन्हें आपसे तबतक मतलब होता है जब तक इलेक्शन नहीं होते उसके बाद छू मंतर तो किसी भी पोलीटिकल पार्टी की झूटे वायदों पर यूँ ही आँख मूँद कर भरोसा मत कीजिये थोडा अपनी अक्ल लगाइए क्यूँकि बात करना  और अपनी बात पर खरा उतरना दो अलग अलग बातें हैं. जब आप सोशल नेट्वर्किंग साईट्स पर समझदारी दिखाते हैं तो जब बात देश और गवर्नेन्स की हो तो आपको समझदार होना ही पड़ेगा.तो अब फैसला आप कीजिये कि आप कैसे वोटर हैं वैसे अब जब आप फेसबुक पर लोग इन करें तो ध्यान रखियेगा कि हर एक लाईक कितना कीमती है.
आईनेक्स्ट में 11/03/14 को प्रकाशित 

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