Saturday, June 15, 2013

प्रीत

प्रीत के पावन बंधन में 
तुमने मुझको बाँधा प्रिये 
तुम हो मेरा जीवन धन 
मैंने आज माना प्रिये 
मन के सूने आँगन में 
जब तुम धीरे से आ जाती हो 
मेरे नयनों के बंद कपाटों में
जब तुम चुपके से मुस्काती हो
सुनहरे भविष्य के सपनों में
तब मैं भी खो जाता हूँ
तुमसे मिलन की आस में
विरह गीत गाता हूँ मैं
रात जब धीरे धीरे गहराती है
जब तारों को भी निद्रा आती है
तब मैं भी थोडा डर जाता हूँ
तुमसे विछोह की कल्पना में
स्वप्न में ही अकुलाता हूँ
क्या तुम बिन संभव होगा जीवन
क्यों नहीं हो सकता हमारा मिलन
प्रश्न अपने आप से कर जाता हूँ .
(पुरानी कविताओं को सहेजने की कोशिश जारी है .......)

3 comments:

Unknown said...

really the sweetness of love is shown in this poem.....
awesum lyns sir...i would lyk to dedicate these lyns if i got sum1 who deserve these lyns....
fabulous creation..... <3 <3

Unknown said...

love is a part of life and it gives you a energy to live free.

Pranjul gaur said...

'jo mai aisa jaanta preet kre dukh hoe...nagar dhindora pitata preet na kriyo koi'
viraha ka dard prem ki paraksta...bhauth khoob sir...

पसंद आया हो तो