Tuesday, March 12, 2013

एन्जॉय करें,जरा संभल कर


तो मार्च आ गया हाँ मुझे पता है इसने कुछ नया नहीं पर क्या आपको पता है कि मार्च साल का सबसे इम्पोर्टेंट मंथ  होता है क्यों अरे भाई पैसा बोलता यह किसी भी फाइनेंसियल इअर का आख़िरी मंथ  होता है.अगले महीने से नए सिरे से पैसे का बंटवारा होगा कि सरकार हमारे ऊपर कैसे और कितना खर्च करेगी.बजट से याद आया आपको इसमें ज्यादा इन्ट्रेस्ट नहीं है आप तो बस ये जानना चाहते हैं कि क्या सस्ता हुआ और क्या महंगा,क्यों मैं सही कह रहा हूँ तो पहले तो मैं आपको अपनी इस्टाईल में बताता हूँ कि अगले महीने से कैसा होगा हमारा जीवन.
अगर किसी ख़ास दोस्त के साथ बाहर लंच का प्रोग्राम बनाना है तो बेशक जाइये, कुछ ऐसे ही लम्हें होते हैं जिनकी लज्ज़त ताउम्र जीभ पर रहती है पर अगर किसी एयर कंडीशंड रेस्तरां में अब तक जाते रहे हैं तो जरा सा चौकन्ने हो जाइये, क्योंकि अब खाने की मेज पर आपका ध्यान व्यंजनों के साथ साथ जेब पर भी रहने की उम्मीद है. कोई बड़ी कामयाबी हाथ लगी है या गर्लफ्रेंड से फिर से ब्रेकअप हो गया है और आप अपनी फिक्र को इस वैधानिक चेतावनी के साथ धुंएँ में उड़ाना चाहते हैं कि सिगरेट से कैंसर हो सकता है तो सिगरेट और सिगार की १८ फीसद बढ़ी हुई एक्साईज ड्यूटी धुंए के छल्लों की संख्या कम कर सकती है. यूथ है तो बाईक से लगाव तो होगा ही ८०० सीसी  से अधिक क्षमता वाली विदेशी मोटर सायकिलों से खतरनाक स्टंट्स को अंजाम देने की आपकी सनक को इस बार का आर्थिक बजट कम कर सकता है. सब जानते हैं और जो नहीं जानते है वो जान रहे हैं कि मोबाईल फ़ोन अब आपका फैमिली मेंबर बन चुका है. उससे कुछ ज्यादा इंच भर की दूरी आपको बेचैन कर देती है. इसके नए नए एप्स और टेक्नोलॉजी के आप दीवाने हैं. लेकिन मंहगाई इस पर भी हावी हो चुकी है. पर बहुत कुछ है जो सस्ता हुआ है.म्यूजिक लवर्स के लिए अच्छी खबर ये है कि सरकार 294 नए एफ एम् स्टेशन शुरू करेगी और अगर आपके शहर में अब तक एफ एम् की आवाज नहीं पहुँची है तो जल्दी ही आप भी इसका लुत्फ़ उठा पायेंगे.सवाल अभी भी आपके दिमाग में कौंध रहा होगा कि सरकार क्यों चीजें महंगी और सस्ती करती है जवाब हमारे आस पास ही है कभी आपने सोचा कि बचपने में आप टोफ़ी चौकलेट से बहल जाते थे पर अब बढ़िया मोबाईल और ब्रांडेड कपडे आपको लुभाते हैं मतलब आपकी लाईफ आगे बढ़ चली है और उसी के साथ आपकी प्रायरिटीस भी पर जिस हिसाब से चीजों की कीमत बढ़ती है उसके मुकाबले सैलरी नहीं तो कहीं न कहीं हमें समझौता करना पड़ता है और वही काम सरकार करती है. हम आप भी तो पॉकेट  देखकर ही चीजों पर खर्च करते हैं जो अपनी इनकम से ज्यादा खर्च कर देते हैं और तब उन्हें दूसरों से उधार लेना पड़ता है और उनका बजट में घाटा होता है.खैर ये रही बजट की बात पर ज़रा याद कीजिए कि कैसे जब पॉकेट मनी ख़त्म हो जाती है तो आप सब कुछ मैनेज कर लेते हैं. या फिर किसी यार दोस्तों से उधार ले देकर सब ठीक कर लेते हैं. हो सकता है आप में से बहुतों ने कोई ख़ास तोहफा अपनी संडे पार्टी को फिर कभी पर टाल कर खरीदा हो. कहने की बात सिर्फ इतनी सी है कि हम सब अपनी जरूरतों को बैलेंस करना जानते हैं. बजट तो बस एक बहाना भर है. अगर यही बजट भावना  हम अपनी रोज़मर्रा कि जिंदगी पर लागू करके देखें तो लाईफ के आधे से ज्यादा मसले यूं ही आसान हो जायेंगे. वक़्त का टाइम टेबल फिर से बनाने बैठिये, भावनाओं का इज़हार चाहे वो ख़ुशी हो या गम उनमें बैलेंस  बनाने  की कोशिश कीजिये , लगे हाथ दोस्तों की लिस्ट को भी  वरीयता के क्रम में री राईट कर ही डालिए, कहाँ संतुलन बनाकर चलना है और किस बात पर बस अपने मन की चलानी है इसका ख्याल रखिये और इसे कुछ दिन फॉलो  करिये फिर देखिएगा  ज़िन्दगी वाकई खुबसूरत लगने लगेगी.
आईनेक्स्ट में 12/03/13 को प्रकाशित 

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