Wednesday, March 20, 2013

यादों में तुम



यादों में तुम 
हाँ तुम 
हिस्सा हो उन पलों का 
जो अब नहीं आयेंगे 
और बीतने को तो दिन बीत जायेंगे 
कभी बैठूँगा 
उस तन्हाई में 
जहाँ मिले थे तुम कभी 
पर मिलन  के वो दौर 
अब सुहाने नहीं आयेंगे 
कभी सोचा था 
मिल कर चलेंगे साथ 
पर साथ चलने के वो  बहाने नहीं आयेंगे 
ये मान लूँगा कि मिलना तुमसे 
बस तकदीर का खेल था 
पर इस खेल को समझने के 
मौके अब नहीं आयेंगे 
बैठा हूँ उदास ये जानकर 
कि जा चुके हो तुम 
और हैरान हूँ मैं कि 
इस बेमकसद जीवन में 
मेरे होंटों पर  तुम्हारे नाम के 
वो खूबसूरत तराने अब 
कभी नहीं गाये जायेंगे 
कभी नहीं गाये जायेंगे 

Monday, March 18, 2013

साईबर हमलों से निपटने को कितने तैयार हैं हम


प्रसिद्ध होलीवुड फिल्म डाई हार्ड फॉर के कथानक में एक ऐसी काल्पनिक समस्या का जिक्र किया गया है जब अमेरिका के इंटरनेट पर एक अपराधी समूह का कब्ज़ा होता है और पूरे देश में अराजकता की स्थिति उत्पान हो जाती है पर इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता और साइबर हमलों से निपटने में हमारी तैयारी कभी भी इस फ़िल्मी कल्पना को हकीकत का जामा पहना सकती है|इंटरनेट ने दुनिया को एक स्क्रीन  में समेट दिया है, समय स्थान अब कोई सीमा नहीं है बस इंटरनेट होना चाहिए, हमारे कार्य व्यवहार से लेकर भाषा तक हर क्षेत्र में इसका असर पड़ा है और भारत भी इस का अपवाद नहीं है|वैश्विक  परामर्श संस्था मैकिन्सी कम्पनी का एक नया अध्ययन बताता है कि इंटरनेट  साल 2015 तक  भारत की जी डी पी (सकल घरेलू उत्पाद )में १०० बिलियन डॉलर का योगदान देगा जो कि वर्ष 2011 के 30 बिलियन डॉलर के योगदान से तीन गुने से भी ज्यादा होगा अध्ययन यह भी बताता है कि अगले तीन साल में भारत दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा इंटरनेट उपभोक्ताओं को जोड़ेगा और देश की कुल जनसंख्या का 28 प्रतिशत इंटरनेट से जुड़ा होगा जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा जनसँख्या समूह होगा पर गाँवों के मामले में यह सिर्फ नौ प्रतिशत की जनसँख्या ही इसका लाभ उठा रही होगी जिससे 22 मिलियन  रोजगार का सृजन होगा यह आंकड़ा अभी 6० लाख के करीब है|इंटरनेट के इस  विस्तार में स्मार्टफोन एक बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं|हर क्षेत्र में इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता ने कुछ सवाल भी खड़े किये हैं| इंटरनेट के बढते विस्तार ने  सायबर हमले की सम्भावना को बढ़ाया है. अभी तक देश को सायबर हमले से बचाने की जिम्मेदारी साल 2004 में बनी इन्डियन कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पोंस टीम (सी ई आर टी -इन )के जिम्मे थी |साल 2004 से 2011 तक आधिकारिक तौर पर सायबर हमलों की संख्या 23 से बढ़कर 13,301तक पहुँच गयी और वास्तविक संख्या इन आंकड़ों से कई गुना ज्यादा हो सकती है| पिछले वर्ष सरकार ने सी ई आर टी को दो भागों में बाँट दिया अब ज्यादा  महत्वपूर्ण मामलों के लिए नेशनल क्रिटीकल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर की एक नयी इकाई बना दी गयी है  जो रक्षा ,दूरसंचार,परिवहन ,बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है |साईबर सुरक्षा के लिए 2012-13 के लिए  मात्र 42.2 करोड रुपैये ही आवंटित किये गए जो कि काफी कम है | साईबर हमलों के लिए चीन भारत के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है |एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले महीने में दुनिया में हुए बड़े सायबर हमलों के लिए चीन सरकार समर्थित पीपुल्स लिबरेशन आर्मी जिम्मेदार है जिसके हमलों में प्रमुख सोशल नेटवकिंग साइट्स फेसबक और ट्वीटर भी थीं|पिछले कई वर्षों से चीन को साइबर  सेंधमारी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है जिसके निशाने पर ज्यादातर अमेरिकी सरकार और कंपनियां रहा करती हैं पर इंटरनेट के बढते विस्तार से भारत में साइबर हमले का खतरा बढ़ा है पर हमारी तैयारी उस अनुपात में नहीं है आवयश्कता समय की मांग के अनुरूप कार्यवाही करने की है|
हिन्दुस्तान में 18/03/13 को प्रकाशित 

Tuesday, March 12, 2013

एन्जॉय करें,जरा संभल कर


तो मार्च आ गया हाँ मुझे पता है इसने कुछ नया नहीं पर क्या आपको पता है कि मार्च साल का सबसे इम्पोर्टेंट मंथ  होता है क्यों अरे भाई पैसा बोलता यह किसी भी फाइनेंसियल इअर का आख़िरी मंथ  होता है.अगले महीने से नए सिरे से पैसे का बंटवारा होगा कि सरकार हमारे ऊपर कैसे और कितना खर्च करेगी.बजट से याद आया आपको इसमें ज्यादा इन्ट्रेस्ट नहीं है आप तो बस ये जानना चाहते हैं कि क्या सस्ता हुआ और क्या महंगा,क्यों मैं सही कह रहा हूँ तो पहले तो मैं आपको अपनी इस्टाईल में बताता हूँ कि अगले महीने से कैसा होगा हमारा जीवन.
अगर किसी ख़ास दोस्त के साथ बाहर लंच का प्रोग्राम बनाना है तो बेशक जाइये, कुछ ऐसे ही लम्हें होते हैं जिनकी लज्ज़त ताउम्र जीभ पर रहती है पर अगर किसी एयर कंडीशंड रेस्तरां में अब तक जाते रहे हैं तो जरा सा चौकन्ने हो जाइये, क्योंकि अब खाने की मेज पर आपका ध्यान व्यंजनों के साथ साथ जेब पर भी रहने की उम्मीद है. कोई बड़ी कामयाबी हाथ लगी है या गर्लफ्रेंड से फिर से ब्रेकअप हो गया है और आप अपनी फिक्र को इस वैधानिक चेतावनी के साथ धुंएँ में उड़ाना चाहते हैं कि सिगरेट से कैंसर हो सकता है तो सिगरेट और सिगार की १८ फीसद बढ़ी हुई एक्साईज ड्यूटी धुंए के छल्लों की संख्या कम कर सकती है. यूथ है तो बाईक से लगाव तो होगा ही ८०० सीसी  से अधिक क्षमता वाली विदेशी मोटर सायकिलों से खतरनाक स्टंट्स को अंजाम देने की आपकी सनक को इस बार का आर्थिक बजट कम कर सकता है. सब जानते हैं और जो नहीं जानते है वो जान रहे हैं कि मोबाईल फ़ोन अब आपका फैमिली मेंबर बन चुका है. उससे कुछ ज्यादा इंच भर की दूरी आपको बेचैन कर देती है. इसके नए नए एप्स और टेक्नोलॉजी के आप दीवाने हैं. लेकिन मंहगाई इस पर भी हावी हो चुकी है. पर बहुत कुछ है जो सस्ता हुआ है.म्यूजिक लवर्स के लिए अच्छी खबर ये है कि सरकार 294 नए एफ एम् स्टेशन शुरू करेगी और अगर आपके शहर में अब तक एफ एम् की आवाज नहीं पहुँची है तो जल्दी ही आप भी इसका लुत्फ़ उठा पायेंगे.सवाल अभी भी आपके दिमाग में कौंध रहा होगा कि सरकार क्यों चीजें महंगी और सस्ती करती है जवाब हमारे आस पास ही है कभी आपने सोचा कि बचपने में आप टोफ़ी चौकलेट से बहल जाते थे पर अब बढ़िया मोबाईल और ब्रांडेड कपडे आपको लुभाते हैं मतलब आपकी लाईफ आगे बढ़ चली है और उसी के साथ आपकी प्रायरिटीस भी पर जिस हिसाब से चीजों की कीमत बढ़ती है उसके मुकाबले सैलरी नहीं तो कहीं न कहीं हमें समझौता करना पड़ता है और वही काम सरकार करती है. हम आप भी तो पॉकेट  देखकर ही चीजों पर खर्च करते हैं जो अपनी इनकम से ज्यादा खर्च कर देते हैं और तब उन्हें दूसरों से उधार लेना पड़ता है और उनका बजट में घाटा होता है.खैर ये रही बजट की बात पर ज़रा याद कीजिए कि कैसे जब पॉकेट मनी ख़त्म हो जाती है तो आप सब कुछ मैनेज कर लेते हैं. या फिर किसी यार दोस्तों से उधार ले देकर सब ठीक कर लेते हैं. हो सकता है आप में से बहुतों ने कोई ख़ास तोहफा अपनी संडे पार्टी को फिर कभी पर टाल कर खरीदा हो. कहने की बात सिर्फ इतनी सी है कि हम सब अपनी जरूरतों को बैलेंस करना जानते हैं. बजट तो बस एक बहाना भर है. अगर यही बजट भावना  हम अपनी रोज़मर्रा कि जिंदगी पर लागू करके देखें तो लाईफ के आधे से ज्यादा मसले यूं ही आसान हो जायेंगे. वक़्त का टाइम टेबल फिर से बनाने बैठिये, भावनाओं का इज़हार चाहे वो ख़ुशी हो या गम उनमें बैलेंस  बनाने  की कोशिश कीजिये , लगे हाथ दोस्तों की लिस्ट को भी  वरीयता के क्रम में री राईट कर ही डालिए, कहाँ संतुलन बनाकर चलना है और किस बात पर बस अपने मन की चलानी है इसका ख्याल रखिये और इसे कुछ दिन फॉलो  करिये फिर देखिएगा  ज़िन्दगी वाकई खुबसूरत लगने लगेगी.
आईनेक्स्ट में 12/03/13 को प्रकाशित 

Monday, March 4, 2013

सिंवई को भूलकर नूडल्स को दिल दे बैठे हम

 गाँव की चिंता सबको है आखिर भारत गाँवों का देश है पर क्या सचमुच गाँव तो  जिन्दा हैं पर गाँव की संस्कृति मर रही है गाँव शहर  जा रहा है और शहर का बाजार गाँव में आ रहा है पर उस बाजार में गाँव की बनी हुई कोई चीज नहीं है.सिरका,बुकनू(नमक और विशेष मसालों का मिश्रण)पापड जैसी चीजों से सुपर मार्केट भरे हैं पर उनमें न तो गाँवों की खुशबू है न वो भदेसपन जिसके लिए ये चीजें हमारे आपके जेहन में आजतक जिन्दा हैं .सच ये है कि भारत के गाँव आज एक दोराहे पर खड़े हैं एक तरफ शहरों की चकाचौंध दूसरी तरफ अपनी मौलिकता को बचाए रखने की जदोजहद.विकास और प्रगति के इस खेल में आंकड़े महत्वपूर्ण हैं भावनाएं संवेदनाओं की कोई कीमत नहीं .वैश्वीकरण का कीड़ा और उदारीकरण की आंधी में बहुत कुछ बदला है और गाँव भी बदलाव की इस बयार में बदले हैं .गाँव की पहचान उसके खेत और खलिहानों और स्वच्छ पर्यावरण से है पर खेत अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं भारत के विकास मोडल की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह गाँवों को आत्मनिर्भर बनाये रखते हुए उनकी विशिष्टता को बचा पाने मे असमर्थ रहा है यहाँ विकास का मतलब गाँवों को आत्मनिर्भर न बना कर उनका शहरीकरण कर देना भर रहा है.विकास की इस आपाधापी में सबसे बड़ा नुक्सान खेती को हुआ है .भारत के गाँव हरितक्रांति और वैश्वीकरण से मिले अवसरों के बावजूद खेती को एक सम्मानजनक व्यवसाय के रूप में स्थापित नहीं कर पाए.इस धारणा का परिणाम यह हुआ कि छोटी जोतों में उधमशीलता और नवाचारी प्रयोगों के लिए कोई जगह नहीं बची और खेती एक बोरिंग प्रोफेशन का हिस्सा बन भर रह गयी.गाँव खाली होते गए और शहर भरते गए.इस तथ्य को समझने के लिए किसी शोध को उद्घृत करने की जरुरत नहीं है गाँव में वही युवा बचे हैं जो पढ़ने शहर नहीं जा पाए या जिनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं है, दूसरा ये मान लिया गया कि खेती एक लो प्रोफाईल प्रोफेशन है जिसमे कोई ग्लैमर नहीं है फिर क्या गाँव धीरे धीरे हमारी यादों का हिस्सा भर हो गए जो एक दो दिन पिकनिक मनाने के लिए ठीक है पर गाँव में रहना बहुत बोरिंग है फिर क्या था गाँव पहले फिल्मों से गायब हुआ फिर गानों से धीरे धीरे साहित्य से भी दूर हो गया.समाचार मीडिया में वैसे भी गाँव सिर्फ अपराध की ख़बरों तक सीमित और इस स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है.पंजाब हरित क्रांति से फायदा उठाने वाले राज्यों में सबसे आगे है वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार के बहुत से मजदूर अपने खेतों को छोड़कर पंजाब में दूसरे के खेतों में मजदूरी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी खेती से वो सम्मान नहीं मिलता जो परदेश में नौकरी करने के झूठे  दंभ में मिलता है समस्या की जड़ यही है.वैश्वीकरण का रोना छोड़कर हमें उससे मिले अवसरों का फायदा उठाना था जिसमे हम असफल रहे हमारे खेत और गाँव के उत्पाद अपनी ब्रांडिंग करने में असफल रहे.खेती में नवचारिता वही किसान कर पाए जिनकी जोतें बड़ी थीं और आय के अन्य स्रोत थे ऐसे लोग आज भी सफल हैं और अक्सर मीडिया की प्रेरक कहानियों का हिस्सा बनते हैं किन्तु  ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है.सहकारी आंदोलन की मिसाल लिज्जत पापड और अमूल दूध जैसे कुछ गिने चुने प्रयोगों को छोड़कर ऐसी सफलता कहानियां दुहराई नहीं जा सकीं.जिसका परिणाम ये हुआ कि गाँवों को शहर लुभाने लग गए और गाँव शहर बनने चल पड़े गाँव शहरों की संस्कृति को अपना नहीं पाए पर अपनी मौलिकता को भी नहीं बचा पाए जिसका परिणाम ये हुआ कि अपनी चिप्स और सिरका दोयम दर्जे के लगने लग गए पर यही ब्रांडेड चीजें अच्छी पैकिंग में हमें लुभाने लग गयीं हम अपनी सिवईं को भूल कर नूडल्स को दिल दे बैठे आखिर इनके विज्ञापन टीवी से लेकर रेडियो तक हर जगह हैं पर अपना चियुड़ा,गट्टा किसी और देश का लगता है .सारी दुनिया की निगाह आज भारत पर इसलिए है क्योंकि हमारे पास दुनिया का एक बड़ा बाजार है पर उस बाजार में हमारी अपनी बनाई चीजों के लिए कोई जगह नहीं है.गाँव के ऐसे उत्पाद और कुटीर उद्योग गाँव के आर्थिक स्वावलंबन का सहारा बन सकते थे जिनसे हमारी शहरों और शहरी चीजों पर निर्भरता कम होती पर ऐसा हुआ नहीं.सरकार के ग्रामीण विकास के मॉडल इस समस्या को समझने में असमर्थ रहे कि चुनौती कितनी बड़ी .ब्रांडिंग के इस युग में भारत के गाँव और उनके उत्पादों को जब तक ब्रांडिंग का सहारा नहीं मिलेगा हम अपनी विरासत को यूँ ही नष्ट होते देखते रहेंगे .   
गाँव कनेक्शन साप्ताहिक के 2 मार्च अंक में प्रकशित

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