Tuesday, October 9, 2012

जानलेवा बीमारियों से लड़ते बच्चे

स्वास्थ्य किसी भी देश की महत्वपूर्ण प्राथमिकता का क्षेत्र होता है पर आंकड़ों के हिसाब से भारत की तस्वीर  इस मायने में बहुत साफ़ नहीं है बाल स्वास्थ्य इसका कोई अपवाद नहीं है बच्चे देश का भविष्य हैं पर उन बच्चों का क्या जो भविष्य में बढ़ने की बजाय अतीत का हिस्सा बन जाते हैं | साल 2011 मेंदुनिया के अन्य देशों की मुकाबले भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सबसे ज्यादा मौतें हुईं।ये आंकड़ा समस्या की गंभीरता को बताता है जिसके अनुसार भारत में  प्रतिदिन 4,650 से ज्यादा पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु होती है|संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ की नई रिपोर्ट यह बताती है कि बच्चों के स्वास्थ्य के मामले में अभी कितना कुछ किया जाना है |संयुक्त राष्ट्र का यह  अध्ययन यह आंकलन करता  है कि भारत में जन्म लेने वाले प्रत्येक 1,000 बच्चों में से 61 बच्चे अपना  पांचवा जन्मदिन नहीं मना पाते हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि ये संख्या रवांडा (54 बच्चों की मृत्यु) नेपाल (48 बच्चों की मृत्यु) और कंबोडिया (43 बच्चों की मृत्यु) जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े देशों के मुकाबले ज्यादा है|सियेरा लियोन में बच्चों के जीवित रहने की संभावनाएं सबसे कम रहती हैं,जहां प्रत्येक 1,000 बच्चों में मृत्यु दर 185 है।दुनिया भर में बच्चों की मृत्यु की सबसे बड़ी वजह न्यूमोनिया है जिनसे १८ प्रतिशत मौतें होती हैं और दूसरी वजह डायरिया है जिससे ११ प्रतिशत मौतें होती हैं भारत डायरिया से होने वाली मौतों के मामले में सबसे आगे  है। 2010 में जितने बच्चों की मृत्यु हुईउनमें 13 प्रतिशत की मृत्यु वजह की डायरिया ही था  दुनिया में डायरिया से होने वाली मौतों में अफगानिस्तान के बाद भारत का ही स्थान  है।रिपोर्ट के मुताबिक भारत जैसे देशों में डायरिया की मुख्य वजह साफ़ पानी की कमी, और निवास के स्थान के आस पास गंदगी का होना है जिसकी एक वजह खुले में मल त्याग भी है |गंदगी ,कुपोषण और मूल भूत स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव मिलकर एक ऐसा दुष्चक्र रचते हैं जिनका शिकार ज्यादातर गरीब घर के बच्चे होते हैं |तथ्य यह भी है आर्थिक आंकड़ों और निवेश के नजरिये से भारत तरक्की करता दिखता है पर इस आर्थिक विकास का असर समाज के आर्थिक रूप कमजोर तबके पर नहीं हो रहा है जिसका परिणाम पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की ज्यादा मृत्यु ,वह भी डायरिया जैसी बीमारी से जिसका बचाव थोड़ी सावधानी और जागरूकता से किया जा सकता है | बढते शहरीकरण ने शहरो में जनसँख्या के घनत्व को बढ़ाया है| निम्न आयवर्ग के लोग रोजगार की तलाश में उन शहरों का रुख कर रहे हैं जो पहले से ही जनसँख्या के बोझ से दबे हैं नतीजा शहरों में निम्न स्तर की जीवन दशाओं के रूप में सामने आता है |गाँव जहाँ जनसंख्या का दबाव कम हैं वहां स्वास्थ्य सेवाओं की हालत दयनीय है और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर जागरूकता का पर्याप्त अभाव है|
 विकास संचार के मामले में अभी हमें एक लंबा रास्ता तय करना है जिससे लोगों में जागरूकता जल्दी लाई जाए विशेषकर देश के ग्रामीण इलाकों में| इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिसका प्रभाव ज्यादा है पर वह अपने मनोरंजन एवं सूचना में संतुलन बना पाने में असफल रहा है जिसका नतीजा संचार संदेशों में कोरे मनोरंजन की अधिकता के रूप में सामने आता है |सरकार का रवैया इस दिशा में कोई खास उत्साह बढ़ाने वाला नहीं रहा है देश के सकल घरेलु उत्पाद (जी डी पी ) का 1.4 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं  पर खर्च किया जाता है जो कि काफी कम है सरकार ने इसे बढ़ाने का वायदा तो किया पर ये कभी पूरा हो नहीं पाया | भारत सरकार के सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य के अनुसार वह साल 2015 तक शिशु मृत्यु दर को प्रति 1,000 बच्चों पर 38 की संख्या  तक ले आयेगी |बढ़ती शिशु मृत्यु दर का एक और कारण कुपोषण भी है 'सेव द चिल्ड्रन'संस्था  का एक अध्ययन बताता  है कि भारत बच्चों को पूरा पोषण मुहैया कराने के मामले में बांग्लादेश और बेहद पिछड़े माने जाने वाले अफ्रीकी देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो से भी पिछड़ा हुआ है| हालांकिभारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 1990 के मुकाबले  46 प्रतिशत कम हुई है पर इस आंकड़े पर गर्व नहीं किया जा सकता|सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य को तभी प्राप्त किया जा सकता है  जब गरीबों में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता पैदा की जाए  और उनकी जीवन दशाओं को बेहतर किया जाए. इस दिशा में सरकार को सार्थक पहल करनी होगी  पर यूनिसेफ की यह रिपोर्ट बताती है कि यह आंकड़ा प्राप्त करना आसान नहीं होगा| 
अमरउजाला में 09/10/12 को प्रकाशित 

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