Thursday, July 12, 2012

घर ना लौट पाने वाले बच्चों की दुनिया


किसी खोये या अपह्रत बच्चे का मिल जाना करुणा जगाता है और सनसनी खेज खबर भी पर उन बच्चों का क्या जो दुबारा कभी अपने घर नहीं लौटते.जो नहीं लौटते उनमे से ज्यादातर बाल तस्करी का शिकार हो जाते हैं.बाल तस्करी के कारणों में प्रमुख हैं बंधुआ मजदूरी,अवैध रूप से बच्चा गोद देना,भीख मांगना,पॉकेट मारी और वैश्यावृति आदि इसके अतिरिक्त वे बच्चे भी बाल तस्करी का शिकार होते हैं जो घर से भागे होते हैं या किन्हीं कारणों से अपने घर वालों से बिछड जाते हैं.स्थिति की भयावहता की तसदीक बचपन बचाओ संस्था के शोध द्वारा जुटाये गए वह  आंकड़े करते हैं जिनके अनुसार वर्ष 2008 से 2010 के मध्य 1,17,480 बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज़ कराई गयी. इनमें से 74,209 बच्चों को तो ढूंढ लिया गया पर 41,546 का आज तक कोई सुराग नहीं लग सका है. खाए पिए अघाए  लोगों के लिए ये महज आंकड़े हो सकते हैं पर जिन परिवारों ने अपने बच्चों को खोया है उनकी आवाज़ महज़ एक सिसकी बनकर रह जाती है.2006 में निठारी कांड में देश यह जानकर स्तब्ध रह गया था कि किस तरह  तीस बच्चों का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गयी और पुलिस को कुछ पता ही नहीं चला.बचपन बचाओ शोध में जिन 20 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल किया गया उनमें से बच्चों के लापता होने की सर्वाधिक घटनाएँ एक अपेक्षाकृत विकसित राज्य महाराष्ट्र से सामने आयीं जहां वर्ष 2008 से 10 के मध्य 26,211 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई हालांकि सबसे ज्यादा बच्चों के वापस मिलने के आंकड़े (18,706) भी महाराष्ट्र के ही हैं.आज भी गुम हुए 1,17,480 बच्चों में से लगभग 45 प्रतिशत यानि कि 41,546 के बारे में आज तक कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है.पश्चिम बंगाल जहां महाराष्ट्र के पश्चात सर्वाधिक बच्चों के गुम होने के मामले सामने आए, जिनमे से अधिकतर आज भी लापता हैं, के सीमावर्ती इलाकों इस प्रकार की  वारदातें सबसे ज्यादा रिपोर्ट की गईं। इससे ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है कि गुमशुदा बच्चों में से कईयों  सीमा पार ले जाया गया होगा. देश के पाँच मेट्रो दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु और मुंबई में सबसे चिंताजनक स्थिति दिल्ली और कोलकाता की है जहां से इन शहरों से गायब होने वाले 24,744 बच्चों मे से लगभग 89 प्रतिशत बच्चे  गायब हुए. जब ये हाल देश के सबसे आधुनिक एवं विकसित समझे जाने वाले शहरों का है तो बाकी शहरों की स्थिति के बारे में कुछ बेहतर सोचना ही बेमानी होगा. दिल्ली पुलिस के आकड़ों के अनुसार, राजधानी में प्रतिदिन औसतन 14 बच्चे गायब हो जाते है.आंकड़ों के अनुसार विगत दो वर्षों के दौरान १,१७,४८० बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गयी.यदि हम इन आंकड़ों को आधार मानकर सभी जिलों के आंकड़ों का अनुमान लगाएँ तो भारत मे प्रतिवर्ष लापता होने वाले बच्चों की संख्या लगभग ९६००० आएगी अर्थात प्रतिदिन अनुमानतः २६३ बच्चे लापता होते हैं.चिंताजनक बात यह है कि ये आंकड़े सिर्फ लिखित अभिलेखों पर आधारित हैं. ऐसे जाने कितने ही मामले होते हैं जो भिन्न-भिन्न कारणो से प्रकाश में ही नहीं आते हैं. हमारे देश मे इस संबंध में किसी निश्चित कानून का न होना भी बाल-तस्करी से जुड़े वास्तविक आंकड़े जुटाने में बाधक होता है.सरकार भी इस बेहद संवेदनशील मसले को आंकड़ों में उलझाकर अपनी ज़िम्मेदारी से बचती रहती है.पुलिस भी इस तरह के अपराधों के प्रति संवेदनशील रवैया नहीं अपनाती.इन  गायब होते बच्चों के लिए हमारा सामजिक आर्थिक ढांचा जिम्मेदार है गरीबी ,बीमारी,अशिक्षा और ज्यादा बच्चे एक ऐसा दुष्चक्र रचते हैं कि कुछ लोगों के लिए बच्चे बोझ हो जाते हैं और इससे बच्चे अपने परिवारों में ही बेगाने हो जाते हैं ऐसे में बच्चों का गायब होना वे नियति का फैसला माँ लेते हैं .एक तथ्य और भी उल्लेखनीय है कि ज्यादातर गायब होने वाले बच्चे ऐसे परिवारों से आते हैं जो सामजिक और आर्थिक रूप से समाज के निचले पायदान पर हैं .सड़कों पर भीख मांग रहे बच्चे किसके हैं ,कहाँ से आते हैं साल दरसाल इनकी संख्या क्यों बढ़ रही है. ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके जवाब अभी नहीं मिले हैं.
 दैनिक हिंदुस्तान में 12/07/12 को प्रकाशित 

2 comments:

संगीता पुरी said...

बच्‍चों के लिए माता पिता सर्वस्‍व न्‍यौच्‍छावर करने को तैयार रहते हैं .. पर उसी के साथ कोई अप्रिय घटना हो जाए तो उसे स्‍वीकारना कितना कठिन होता होगा .. इसे समझा जा सकता है !!

deepakkibaten said...

घुट रहा है बचपन

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