Thursday, December 30, 2010

For happier times

प्रिय मित्र साल २०११
आखिर तुम आ ही गए और मेरे जाने का वक्त आ ही गया पर चलने से पहले कुछ बातें तुम से बाँट लूँ वैसे तुम आते ही व्यस्त हो जाओगे खुशियाँ मानाने में तो मैंने सोचा चलने से पहले एक चिट्ठी तुम्हारे लिए लिख दूँ मित्र मैंने एक साल में जीवन के कई रंग देखे कुछ अच्छे थे कुछ बुरे कई जगह मुझे इस बात का पछतावा हुआ कि मैं बेहतर कर सकता था पर चीजें देर से समझ में आयीं अब देखो न ये ३ जी स्पेक्ट्रम अगर आ गया होता तो कमुनिकेसन कितना फास्ट हो गया होता लेकिन मेरे रहते तो ये हो न सका वैसे जब भी हम कोई नया काम सम्हालते हैं तो लोगों से हमें बहुत उम्मीदें रहती हैं और हमें लगता है कि ये खुशियाँ ऐसी ही रहेंगी पर वास्तव में ऐसा होता नहीं जब मैं आया था तो लोगों ने खूब खुशियाँ मनाई और मैंने भी इनका खूब आनंद लिया लेकिन धीरे धीरे खुशियाँ कम हुईं और लोगों की अपेक्षाएं बढ़ने लगीं मैं कुछ पूरी कर पाया और कुछ नहीं शिक्षा और बुनियादी ढाँचे पर काम हुआ लोग डेवलपमेंट इस्सुएस पर अवेयर हुए .महिला आरक्षण पर हम लोग एक कदम आगे बढे पर अभी मंजिल नहीं मिली .जो काम मैंने शुरू किया उसे तुम्हें आगे बढ़ाना है हमारा देश यूथ के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है आज का यूथ ज्यादा स्मार्ट और अवेयर है पर उसकी एनर्जी को सही डायरेक्सन देने की जरुरत है इसका अगर ख्याल रहोगे तो परेशानी कम होगी .
तुम जब आओगे तो खूब खुशियाँ मनाओगे ठीक भी है पर ये मत भूल जाना कि ये साल तुम्हारे लिए अवसर भी लाएगा और चुनोतियाँ भी अगर चुनोतियों को अवसर में बदल लोगे तो तुम्हारी जय  होगी फ़ूड सिक्यूरिटी और हेल्थ इन्सुरेंस पर लोगों को तुमसे बहुत उम्मीदें हैं अगर ऐसा हो पाया तो देश में कोई भूख से नहीं मरेगा और बीमार होने पर अच्छी देखभाल होगी .जब मैं छोटा था तो मुझे लगता था कि मैं सही हूँ और जो बड़े लोग कहते हैं वो सही नहीं है  या शायद वे  मुझे समझते नहीं पर उम्र के इस मुकाम पर आकार मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं गलत था जो भी मुझसे बड़े मेरे लिए कहते थे वो सही थे पर मेरे पास अनुभवों को वो खजाना नहीं था कि मैं उनकी बातों को समझ सकूँ हो सकता तुम्हें मेरी बातें समझ में न आ रही हों या बुरी लग रही  हों पर दोस्त जब जिंदगी सिखाती है तो अच्छा ही सिखाती है अब ये तुम्हारे ऊपर है तुम मेरी बात को ठोकर खा कर  समझो या पहले से ही जान लो कहाँ सम्हल कर चलना है ,मैंने अपनी जिंदगी में यही सीखा है लोगों को साथ ले कर चलो सुनो सबकी इस छोटे से जीवन में मुझे लगता है कमसे कम ये काम तो हम कर ही सकते हैं खुशियों को सर पर न चढ़ने दें आखिर एक दिन तुम्हें भी जाना है तो सकारात्मक सोच के साथ काम करोगे तो ठीक रहेगा इस बार अयोध्या का फैसला मेरे लिए बड़े तनाव का वक्त था पर मैंने सोचा कि इस बार बहुत से चीजें बदल चुकी हैं हम आगे बढ़ चुके हैं बस इस सोच के साथ मैं आगे बढ़ता रहा और सब शांति से बीत गया दुनिया तो बहुत तेजी से बदल रही है कल मैं नया था आज पुराना हो गया हूँ ऐसा तुम्हारे साथ भी होगा इस लिए ये अपने आने वाले कल को सोच कर अपना आज मत खराब मत कर लेना अगर कुछ गलत हो भी जाए तो उसे इस सोच के साथ एक्स्सेपट करना कि चलो कुछ तजुर्बा ही हुआ जिसे तुम आगे आने वाली पीढ़ी को बता सको .हमारी सभ्यता इसी तरह विकसित हुई है और आगे भी होती रहेगी .तुम आ रहे हो और मैं जारहा हूँ मैं इस आने जाने के प्रोसेस को नोर्मल्ली ले रहा हूँ तुम अगर आने वाले वक्त को इस तरह लोगे तो अपनी एनर्जी का सही इस्तेमाल कर पाओगे.तुम्हें ये पत्र लिखना तो सिर्फ एक बहाना था जिसे मैं तुमसे अपनी बात कह सकूँ क्योंकि बात से बात चलती है तो अंत में इस बात को हमेशा ध्यान रखना लोगों की बात सुनते रहना और अपनी बात रखते चलना ये प्रोसेस बन्द मत करना मैं थोडा बहुत अगर सफल रहा तो यही कारण था कि मैंने हमेशा लोगों को सुना.इस उम्मीद के साथ मैं चलता हूँ कि आने वाले साल में तुम खुद भी खुश रहोगे और लोगों को खुश रखोगे
अलविदा
बहुत सारी शुभकामनाओं के साथ
तुम्हारा दोस्त
२०१०
आई नेक्स्ट में ३० दिसंबर २०१० को प्रकाशित 

Sunday, December 26, 2010

उम्मीदें बढ़ाने वाले वर्ष का खबरनामा


साल २०१० जा रहा है लेकिन मीडिया के लिए ये वर्ष कई मायनों में अनोखा रहा कई मुद्दों पर मीडिया को अपनी पीठ थपथपाने का मौका भी मिला तो कुछ मौकों पर उसकी विश्वसनीयता पर संकट भी उठता दिखा एक तरफ राष्ट्र मंडल खेल , आदर्श सोसायटी भूआवंटन घोटालों को सबकी नज़र में लाने का श्रेय उसे मिला वहीं साल के अंत में २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीरा राडिया के साथ लोब्ब्यिंग के खेल में कई दिग्गज मीडिया हस्तियों के सामने आने के बाद मीडिया को भी शर्मसार होना पड़ा लेकिन तथ्य यह भी है कि मीडिया से जुड़े कई लोगों के नाम होने के बावजूद इतने बड़े घोटाले को बेनकाब करने का श्रेय भी मीडिया को ही जाता है इस व्यवसाय में बढ़ती प्रर्तिस्पर्धा का उजला पक्ष यही रहा कि खबर दबाई नहीं जा सकती .अयोध्या विवाद में समाचार पत्रों और चैनलों ने जिस जिम्मेदारी का परिचय दिया वो ये बताता है कि हमारा मीडिया धीरे धीरे ही सही पर परिपक्व हो रहा है .मीडिया एक विषय के रूप में लोगों के बीच चर्चा का केंद्र बिंदु बना और हर समस्या में मीडिया की भूमिका को भी देखा जाने लग गया शायद यही कारण रहा कि पहली बार भारतीय सिनेमा में मीडियाको केंद्र में रखते हुए फिल्मों का निर्माण पहली बार  हुआ
 की  को केंद्र बिंदु रखते हुए फ़िल्में बनीं ,रण जहाँ मीडिया के परदे के पीछे की हलचलों और मीडिया के पूंजी उन्मुखी होते रुख की बात करती है वहीं पीपली लाइव किसान और पत्रकार दोनों के दर्द को सामने लाती है विज्ञापनों की बात करें तो वर्ष २०१० को इंडियन रेलवे और आईडिया जैसे नवाचारी विज्ञापनों के लिए याद किया जाएगा .भारतीय  रेल का विज्ञापन जिसमे कई लोग एक कड़ी के रूप में जुड़ते है काफी प्रभावशाली रहा देश का मेल इंडियन रेल जैसी टैग लाइन के साथ इंडियन रेलवे के नेटवर्क को बखूबी दिखाया गया कैडबरी का शुभ् आरम्भ भी लोगों द्वारा खूब पसंद किया गया .एक नयी प्रवर्ति जो तेजी से उभर कर सामने आयी है वो मीडिया पर नज़र रखने वाले वेब पोर्टल का सामने आना इनके कामों को फेसबुक और ट्विट र जैसी सोसल नेट वर्किंग साईट की सहायता से और तेजी मिली यानी दुनिया भर के ऊपर नज़र रखने वाले लोगों के ऊपर भी एक नए मीडिया का उदय हुआ .मीडिया पर सेंसर शिप के लिए उठती आवाजों के बाद आखिर मीडिया के ही कुछ लोगों ने आगे आकर इसके नीति निर्देशक सिद्धांत निर्धारित किये .वहीं इंटर नेट और ब्लोग्स ने मुख्या धारा की मीडिया पर लगातार कोड बरसाने का काम किए .संतोषजनक बात यह रही कि इस कोड़े की फटकार का प्रतिकार न करके सुधार के प्रयास किये गए .
संचार माध्यमों में आयी क्रांति से इंटर नेट मीडिया की आवक तेज हुई .इस वर्ष के बड़े खुलासों में इस ऑनलाइन मीडिया की बड़ी भूमिका रही .वैश्विक स्तर पर विकिलिक्स के खुलासों ने तो बवंडर ही मचा डाला .विकिलीक्स के खुलासों ने दुनिया के दादा अमेरिका को बहुत शर्मसार किया .विकिलीक्स के इस पर्दाफास से एक नया परिद्रश्य भी उभरा और वेब मीडिया की अपनी पहचान भी बननी शरू हुई .ऐसा पहली बार हुआ जब किसी वेब साईट की खबर को अखबारों ने प्रमुखता से छापा और इलेक्टोनिक मीडिया ने भी उसे खूब तवज्जो दी.
भारतीय मीडिया से सीधे तौर पर कोई ताल्लुक न रखने वाली नीरा राडिया मीडिया के बदनुमा चेहरे के रूप में सामने आयी और मीडिया के कई स्वनामधन्य स्तंभों की नींव हिला दी.इस बवंडर में यू पी ए गठबंधन सरकार में मंत्री रहे ए राजा को अपनी कुर्सी छोडनी पडी .बिहार विधान सभा चुनावों में पैड न्यूज़ को लेकर इस बार भी हो हल्ला मचा पर समाचार पत्रों ने अपनी विश्वसनीयता बरक़रार रखने के लिए बाकायदा अपने समाचार पत्रों में विज्ञापन छाप कर पेड न्यूज़ से परहेज़ करने की घोषणा की .
ऑन लाइन मीडिया पर लोगों के बढते रुझान के कारण कई समाचार पत्रों ने अपने ऑन लाइन संस्करण लांच किये ब्लोगिंग ने भारतीय मीडिया के क्षेत्र में जो बड़ा परिवर्तन किया उसने सिटिज़न जर्नलिस्म की अवधारणा को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया इसमें एक बड़ा हाथ तेजी से सस्ते होते मल्टी मीडिया मोबाईल का भी है जिसकी सहायता से कोई भी स्टिंग कर सकता है .अगर आप कुछ कहना चाह रहे तो दुनिया में बहुत से लोग आपकी बात सुनने को तैयार हैं इसका एहसास इस साल लोगों को शिद्दत से हुआ .फिल्मों के मामले में छोटे बजट की और लीक से हटकर बेहतर फिल्मों में लव सेक्स और धोखा इश्किया वेलडन अब्बा तेरे बिन लादेन फंस गया रे ओबामा आशाएं ने अपनी पहचान स्थापित की वहीं काएट्स गुज़ारिश और रावण जैसी फिल्मों को बड़े नामों के बावजूद नकार दिया गया .साल के चर्चित गानों में मंहगाई डायन मुन्नी बदनाम शीला की जवानी और धन्नों जैसे
 गाने लोगों की जबान पर चढ़े .रिअलिटी टीवी पर बिग बॉस और कौन बनेगा करोड पति का जलवा रहा ,रहा करोड पति में अमिताभ ने अपना पुराना जादू चलाया बिग बॉस पर अश्लीलता फ़ैलाने के आरोप भी लगे .कलर्स चैनल ने एक अभिनव प्रयोग करते हुए समाज की हर कुरीतियों को अपने सीरिअल का विषय बनाया .बालिका वधु से शुरू हुआ ये सफर प्रथा  तक जारी रहा. साल का तो अंत हो रहा है पर भारतीय मीडिया में एक नए युग का सूत्र पात हो रहा है सूचना प्रौधिगिकी के बढते कदम से आज का मीडिया ज्यादा इंटर एक्टिव हुआ आने वाले साल में ३जी तकनीक से मीडिया का चेहरा और भी बदल जाने की उम्मीद है
डॉ. मुकुल श्रीवास्तव

 दैनिक हिन्दुस्तान के संपादकीय पृष्ठ पर २६ दिसंबर को प्रकाशित 

Monday, December 6, 2010

अरे ये खुशबू कहाँ से आयी ......

जाड़ों का मौसम मुझे हमेशा पसंद  रहा है उसके पीछे मेरे पास ज्यादा कारण नहीं वैसे आप चाहे तो कई कारण बता सकते हैं जैसे इस मौसम में काम करने की क्षमता बढ़ जाती है ,साग सब्जियों की ज्यादा वैरायटी उपलब्ध होती है ,ठण्ड में क्राईम कम हो जाता है अब आप इसे यूँ समझे जितने मुंह उतनी बातें पर मेरे पास ठण्ड को पसंद करने का एक अनोखा कारण है मुझे अपने बचपन से ही फूलों पत्तियों पर गिरी ओस बहुत अच्छी लगती है और इस द्रश्य को देखने और महसूस करने का सबसे अच्छा मौसम है जाड़ा कुहरे में फूलों पर गिरी ओस न  जाने कितने क्रियटिव लोगों का इन्स्पीरेसअन बनी है और मुझे भी इन्स्पैएर किया है बचपन में जब हम जाड़े की शामों में  सैर पर निकलते थे तो चारों ओर फूल ही फूल दिखते  थे   फूल अपने आप में इस दुनियाकी सबसे खूबसूरत कृतियों  में से एक हैं प्रकृति के इस अनोखे रूप को महसूस करने हिंदी फिल्म के गीतकारों ने अपने अपने तरीके से महसूस किया है अब जब बात फूलों की छिड़ ही गयी है तो कुछ याद आया अरे नहीं याद आया तो सुनिए ये गाना फिर छिड़ी रात, बात फूलों की,रात है या बारात फूलों की (बाजार )कुदरत का अनमोल तोहफा हैं फूल। फूल न होते, तो दुनिया इतनी रंगीन नहीं होती। फूल ही हैं, जो हमें करवाते हैं नजाकत और नफासत का एहसास। जितने कोमल फूल होते हैं उतनी ही कोमल होती हैं हमारी भावनाएं देखिये एक भाई अपनी बहन के लिए प्यार जताने के लिए क्या गा रहा है फूलों का तारों का सबका कहना है एक हजारों में मेरी बहना है” (हरे राम हरे कृष्णा) .जरा सोचिए फूलों से हमारा कितना गहरा रिश्ता है इंसान के पैदा होने से लेकर उसके मरने तक हर खुशी हर गम में फूल हमारा साथ देते हैं इस सीख के साथ जिंदगी कैसी भी हो खूबसूरत तो हैं न खुशबू दिखती नहीं पर महसूस की जा सकती है पर उसके लिए नाक का होना जरूरी है उसी तरह जिंदगी में खुशियाँ हर मोड पर  बिखरी है पर क्या हम उन खुशियों को खोजना जानते हैं  .फूल कोमलता ,शांति और प्यार का प्रतीक होते हैं जहाँ प्यार शांति , का जिक्र होगा वहां फूलों का जिक्र होना लाजिमी है फिर हम भी तो ये ही चाहते हैं एक ऐसी दुनिया हो जहाँ चारों ओर शांति हो प्यार हो तो जब फूल खिलते हैं तो दिल भी खिल जाता है , एक प्यारा सा गाना रोटी फिल्म का जो मेरी ही बात की तस्दीक कर रहा है फूलों के साथ दिल भी खिल जाते बाबूजब फूलों की बात चली है तो गुलाब का जिक्र होगा ही उसे फूलों का राजा यूँ ही तो नहीं कहा जाता और गानों में सबसे ज्यादा इसी फूल का जिक्र हुआ है लाल गुलाब जहाँ प्यार का प्रतीक है वहीं सफ़ेद गुलाब मैत्री और शांति का . प्यार की कोमल भावनाओं को व्यक्त करता हुआ  कुछ ऐसी कहानी बयान कर रहा है ये गाना  फूल गुलाब का लाखों हजारों में एक चेहरा जनाब का (बीवी हो तो ऐसी ) बचपन की शरारतों के बाद जब हम जवान होते हैं तो हमारे जेहन में कुछ सपने होते हैं कुछ उम्मीदें होती हैं इन्ही सपनों में एक सपना अपने घर का भी होता और घर जब फूलों के शहर में हो तो क्या कहना देखो मैंने देखा है एक सपना फूलों के शहर में है घर अपना” (लव स्टोरी ) पर अगर आपको सपने में फूल ही फूल दिखें तो ऐसे ख्वाब को क्या कहेंगे चलिए मैं आपको गाना ही बता देता हूँ देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए दूर तक निगाह में गुल खिले हुए” (सिलसिला ) पर फूल सिर्फ कोमल ही नहीं होता अगर आपकी इस कोमलता का सम्मान नहीं करेंगे तो ये अंगारा भी बन सकता है फूल कभी जब बन जाए अंगारा” (फूल बने अंगारे ) जिंदगी में हर चीज़ की अपनी अहमियत होती है और ये बात रिश्तों पर भी लागू होती है फूल को बढ़ने के लिए खाद पानी की जरुरत होती है रिश्तों को संबंधों की गर्मी और अपनेपन के एहसास की तो जाड़ों  के इस मौसम मे गर्मी का एहसास करने के लिए गर्म कपडे पहनने के अलावा  कुछ फूलों के पेड़ लगाइए, नए रिश्ते बनाइये पुराने रिश्तों पर जम गयी गर्द को झाडिये क्योंकि रिश्ते भी फूलों की तरह नाजुक होते हैं .आइये महसूस करते हैं अपने आसपास बिखरी हुई फूलों की खुशबू रिश्तों में बसी अपने पन  की महक और जाड़े के मौसम में इठलाते फूलों की सरगोशियाँ हमारी राह तक रही हैं .जाड़े का स्वागत अगर महकते हुए और महकाते हुए किया जाए तो इससे अच्छा भला और क्या हो सकता है .
आई नेक्स्ट में ६ दिसंबर को प्रकाशित 

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