Saturday, January 31, 2009

बसंत का आना ठहर जाना




डीयर पापा

आज जब बसंत ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मन ढेरों उमंगों से भर आया . जीवन के सारे बसंत याद आ गए .पापा ,आपने जिन्दगी को जीने का नजरिया दिया वह मेरी सबसे बड़ी अमानत है .उसी की वज़ह से आज मैं बसंत को बसंत की तरह देख सुन समझ और महसूस कर सकता हूँ .बसंत ही क्यों वे सारे मौसम जिन्हें लोग यूँ ही गुज़र जाने देते हैं मैं उन्हें अपने पास रोक पाने में कुछ हद तक कामयाब हो पाता हूँ लेकिन आपके पिछले मेल ने मुझे निराश किया .वहां बसंत की खुशबू नहीं उदासियों का मौसम नज़र आ रहा था. ऐसा लगा की दुनिया में भले ही बसंत आ गया हो लेकिन आपसे उसे डपट दिया है , वो आप तक पहुँच ही नहीं पाया .जो भी होगा वो अच्छा ही होगा भूल गए बचपने से आपकी ये बात मेरे मन में बैठी हुई है. लाइफ के बारे में ऐसी थिंकिंग क्यों ?आप को कुछ समझाना मेरे लिए बहुत मुश्किल है क्योंकि ये आर्ट ऑफ़ लिविंग मैंने आप से ही सीखी है .मैं आपको सीख तो नहीं दे सकता लेकिन कुछ पुरानी बातों को याद जरूर करा सकता हूँ . आप हमेशा कहा करते थे कि इंसान अपनी लाइफ में सारे मौसम देखता है लेकिन जब भी किसी से उसकी उमर पूछी जाती है तो ये पूछा जाता है आपने कितने बसंत देखे ये लाइफ के टुवर्ड्स पोसेटिव नजरिया है क्योंकि स्प्रिंग सीज़न में न तो बहुत ठण्ड होती है और न ही गर्मी ,इसलिए लाइफ में जो अच्छा है उसे याद रखो हाँ लेकिन जैसे स्प्रिंग हमेशा नहीं रहता वैसे ही जीवन हमेशा एक सा नहीं रहता सो होप फॉर दा बेस्ट एंड रेडी फॉर वोर्स्ट .आप के मेल से ऐसा लग रहा है कि आप अपनी ही बात को भूल रहें हैं अब आप अपनी लाइफ को ज्यादा बेहतर तरीके से एन्जॉय कर सकते हैं इसे और बसन्ती बना सकते हैं .लाइफ में इतने अप्स एंड डाउन्स देखने के बाद आपको खुशियाँ मनाते वक्त ये सोचकर डरने की जरूरत नहीं कि कुछ बुरा हो गया तो क्या होगा ? आपने बार बार वापसी की है .दुखों को जाते देखा है तो खुशियों को आते भी . घर में हुई बड़ी चोरी के बाद आप टूट से गए थे लेकीन आपने अपने चेहरे पर शिकन नहीं आने दी और आपने एक बार फ़िर वापसी की हम लोगों के लिए नया मकान बनाया जिससे उस चोरी की बुरी यादें हमें न सताएं हम सबकी जिन्दगी में फ़िर से बसंत लौटा , वो बसंत था खुशियों का उमंगों का सपनों का .
आपने बहुतों के जीवन में बसन्ती रंग भरा है, आपने अपना काम किया और हमें सिखाया बिलीव इन योर सेल्फ जमाना तुम्हारे पीछे होगा अब आपका भरोसा क्यों टूट रहा है आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं अगर आप का अपने ऊपर भरोसा है क्योंकि मैं भी तो आप का ही हिस्सा हूँ . आपको अगर याद हो तो आप बसंती रंग को उम्मीदों आशाओं और सपने का कलर मानते थे सुबह सन राएस के पहले और शाम को सन सेट के बाद आसमान का रंग एक जैसा होता है बसंती .सुबह मौसम ठंडा होता है फ़िर धूप आ जाती है शाम को फ़िर मौसम ठंडा हो जाता है. बसंत के आने से पहले सर्दी होती है और उसके बाद गर्मियां शुरू हो जाती है . बसंत थक कर रेअलाक्स और एन्जॉय करने का मौका देता है क्योंकि अभी बहुत काम करने बाकी हैं बसंत लाइफ के एक्सामिनाशन का रिजल्ट है लेकिन जिन्दगी की पढ़ाई अभी ख़तम नहीं हुई है. मुझे पता है दूसरो को जीवन में रंग भरने की कोशिश में आप अपनी खुशिया भूलते गए अब उन खुशियों को याद करने का टाइम है . आपने सर्विस से रिताएर्मेंट लिया है जिन्दगी से नहीं इसलिए कुछ रेलक्स कर लीजिये. अगर गौर से देखिये यही तो वक्त है जब आप बिना किसी चिंता के जिन्दगी के उन सारे लम्हों को जी भर कर जी सकते हैं जिनके लिए कभी वक्त ही नहीं मिला .मम्मी के साथ घूमना ,फिल्में देखना ,पढ़ना और क्या क्या था जो आप हम सबकी चिंता करने के कारण कभी कर ही नहीं पाये .मैंने आपके पसंद की किताबें भेज दी हैं आपके पास पहुँचती होंगी .अगले महीने छुटियाँ मिलते ही मैं आ रहा हूँ तब तक जी भर के एन्जॉय कीजिये बसंत .
आपका बेटा
आई नेक्स्ट मैं ३१ जनवरी को प्रकाशित

Wednesday, January 14, 2009

अँधेरा भर नहीं होती रात

रात खूबसूरत होती है या दिन कहना मुश्किल है लेकिन रात अपने आप में एक एहसास है हाँ एक बात जरूर तो जरूर है कि रात में जो अलग किस्म का अपनापन होता है एक दुलार होता है शान्ति होती है .सारे दिन की थकान, बैचैनी जब रात के हवाले होती है तो शरीर ही नहीं मन को भी राहत मिलती है .रात का मतलब अँधेरा , सन्नाटा ,अकेलापन , नींद घर ,आराम और न जाने क्या क्या होता है लेकिन रात इनके अलावा भी बहुत कुछ है .रात होते ही  न जाने कितनी यादें मन के कोने से निकल कर सामने आ जाती हैं .सुबह का इंतज़ार करते हुए रात काटना और बात है लेकिन रात को जीते हुए रात काटना बिल्कुल अलग एहसास है . गीत कार ने यूँ ही नहीं लिखा की "बात होती है शुरू आधी रात को , बेला महका रे महका आधी रात को' (फ़िल्म : उत्सव ) न जाने कितने हिसाब किताब रात के अंधेरे में अनजाने अनचाहे खुलकर बिखर जाते हैं . नींद भर नहीं होती रात हर रात अपने आप में आशा का एक सिम्बल  है .
"रात भर का मेहमान है अँधेरा किसके रोके रुका है सवेरा" (फ़िल्म :सोने की चिडिया), सही है सवेरा तो आएगा लेकिन जब तक रात है हमें पेशेंस नहीं खोना है बस रात के बीत जाने का इंतज़ार करना है और इसके लिए पेशेंस की जरूरत है आज की इस भागती दौड़ती जिन्दगी में अगर हम थोड़ा सा पेशेंस रख लें तो असफलता की रात जाते देर नहीं लगेगी ..उसके बाद एक भरा पूरा  दिन हमारा इंतज़ार  कर ही रहा है . ये रात तो ख़ुद को रीचार्ज करने के लिए भी तो आती है .हर दिन के लिए नए सिरे से अपने आपको तैयार करने के लिए , नयी प्लानिंग और अपने क़दमों के निशाँ छोड़ते हुए आगे के सफर पर निकलना .मुझे याद है जब बचपन में मैं जब भी परेशान होता था पापा कहते थे अँधेरा बस छंटने को है और सचमुच रौशनी की किरणे मन में फूंटने लगती थी . हर रात आने वाले दिन का आने वाली उमीदों का संदेशा लेकर आती है . नेचर का अपना एक अनुशासन है आप भी जीवन में अनुशासन का पालन कीजिये रात कटेगी और सूरज का उजियारा आप के भी जीवन में आएगा लेकिन क्या आप इतना वेट कर पायेंगे . वो कहते हैं न कि हर गलती कुछ न कुछ सिखा ही देते है वैसे ही रात भी हमें मौका देती है हमें अपने आप से बात करने का , अपने आप के अन्दर झाँकने का ,हमने क्या सही किया क्या ग़लत किया.
जिस तरह सारे दिन एक जैसे नहीं होते हैं और उसी तरह से सारी रातें भी एक जैसी नहीं होती हैं किसी रात आप अपने किसी अज़ीज़ दोस्त की पार्टी में नाच गा रहे होतें तो किसी रात आप बिस्तर पर स्ट्रेस के कारण जगते हुए काट देते हैं और किसी रात आप ऐसा मस्त सपना देखते हैं कि आप सुबह होने ही नहीं देना चाहते हैं यही कहानी हर रात कहती है "ये रातें नयी पुरानी कहती है कोई कहानी" (जूली ) है ।जिन्दगी भी तो हमें यही कहानी सुनाती है वो चाहे दिन हो या रात सब एक जैसा नहीं होता लेकिन रात के बाद आप दिन का वेट इसलिए करते हैं क्योंकि दिन एनर्जी, फ्लो का सिम्बल है और ये इसलिए है कि आप को पता है कि कोई दिन आपका होने वाला है इसलियी आप उस दिन का वेट कर रहे हैं.हम उम्मीदों  भरे दिन का इन्तिज़ार हँसते हुए गाते हुए झूमते हुए करना है दोस्तों से पूछते हुए वेयर इस दा पार्टी टुनाईट  .सपने उम्मीदों यादों इन्तिज़ार भरी रात और इसके बाद आनेवाले हर चमकते हुए दिन के साथ आपको छोड़कर मैं विदा लेता हूँ . फ़िर मुलाकात होगे जिन्दगी के किसी नए रंग के साथ
आई नेक्स्ट मैं १४ जनवरी २००९ को प्रकाशित

Friday, January 9, 2009

युवा युवा और युवा


युवा शब्द सुनते ही हमारे मानस पटल पर एक ऐसी तस्वीर उभर कर सामने आती है जो उत्साह, दृढ़ संकल्प व कुछ कर गुजरने की चाह से परिपूर्ण होती है। स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा है युवा वह है जिसमें उत्साह हो, कर्मठता हो, जो मिट जाए पर झुके नहीं, जो जिन्दगी को नई दिशाओं, नए आयामों तक ले जाए, जिसमें परिवर्तन करने की तीव्र आकांक्षा हो।
राष्ट्र, जितना व्यापक शब्द है, उससे भी अधिक व्यापक है यह सवाल कि राष्ट्र कौन बनाता है ? नेता, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, मजदूर, वरिष्ठ नागरिक, साधारण नागरिक.... आखिर कौन ? शायद ये सब मिलकर देश बनाते होंगे... लेकिन फ़िर भी एक और प्रश्न है कि इनमें से सर्वाधिक भागीदारी किसकी ? तब तत्काल दिमाग में विचार आता है कि इनमें से कोई नहीं, बल्कि वह समूह जिसकी देश में सबसे ज्यादा भागीदारी... जी हाँ... आप सही समझे.. बात हो रही है युवाओं की... देश बनाने की जिम्मेदारी सर्वाधिक युवाओं पर है और वे बनाते भी हैं, अच्छा या बुरा, यह तो वक्त की बात होती है । इसलिये जहाँ भारत के लिये खुशी की बात यह है कि हमारी जनसंख्या का पचास प्रतिशत से अधिक हिस्सा पच्चीस से चालीस वर्ष आयु वर्ग का है.. जिसे हम "युवा" कह सकते हैं, जो वर्ग सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सभी रूपों में सर्वाधिक सक्रिय रहता है, रहना चाहिये भी... क्योंकि यह तो उम्र का तकाजा है. हमारे देश में युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है। युवा ऊर्जा के प्रतीक होते हैं। इस ऊर्जा के सार्थक उपयोग से देश का बहुमुखी विकास हो सकता है। वहीं उनका गलत इस्तेमाल किये जाने की संभावना भी बनी रहती है। नये उमर के लोगों के लिये सही-गलत की पहचान के खतरे हमेशा रहते हैं।
प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी इस समस्या के बारे में कहते हैं:-
नयी उम्रों की खुदमुख्तारियों को कौन समझाये,कहां से बच के चलना है कहां जाना जरूरी है।
लेकिन फ़िर भी आज का युवा समझदार है आज जिंदगी का स्वरूप बदल गया है। इस हाईटेक जमाने में, जहां पल भर में हर खबर विश्व के हर कोने में पहुंच जाती है, कुछ वैसी ही गति युवाओं की भी है। आज की युवा पीढी आत्मविश्वास भरपूर है। वह अनुशासित और वक्त की पाबंद है, तभी तो वह किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पूरे जोशोखरोश से प्रयासरत रहती है। आज बहुत कम युवाओं में भाग्य के भरोसे रहने का स्वभाव पाया जाता है। आज का युवा वर्ग अपनी तर्कशक्ति से किसी भी विषय वस्तु को परखने के बाद ही उसे स्वीकारता है।
बीते कुछ सालों के राष्ट्रीय परिदृश्य पर नज़र डालें तो आसानी से यह बात समझ आ जाती है की भारतीय युवा शक्ति सार्थकता के पथ पर अग्रसर है की नहीं। चाहे ओलम्पिक में स्वर्ण जीतने की 'अभिनव' शुरुआत हो या शह और मात से मिला विश्वविजय का 'आनंद'। चाहे मुष्टि प्रहारों से हासिल 'बिजय' हो या फौलादी बाजुओं की 'सुशील' जीत। हरी गेंदों पर करा प्रहार कर 'सनसनी' बनी सानिया हो या अपनी एकादश के साथ जग जीतने वाले 'महेंद्र' , हर कहीं बही एक ही हवा..युवा युवा युवा...। न सिर्फ़ खेलों में बल्कि राजनीति में भी युवाओं ने दर्शा दिया है की वे 'नवीन' विचारधारा के पोषक हैं अपनी महात्वाकांक्षी युवा आबादी के जरिए भारत उत्पादकता के बेहतर स्तर प्राप्त कर सकता है।
आज देश जिन विषम व नाजुक परिस्थितियों से गुजर रहा है, ऐसे में सभी युवाओं का यह कर्तव्य बनता है कि देश के गौरवमयी इतिहास की रक्षा की जाए तथा युवा शक्ति का केन्द्रीयकरण करते हुए समाज की भलाई के लिए उनका सदुपयोग किया जाए। वहीं युवाओं को अपने भीतर छिपी रचनात्मक शक्ति को यथार्थता के धरातल पर इस तरह परोसना चाहिए जो पथ से भटके लोगों के लिए भी संजीवनी बूटी का कार्य कर सके।

A Journey Inside......


















आई नेक्स्ट में 9जनवरी 2009 को प्रकाशित 

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