Tuesday, June 2, 2009

मन ये बावरा नहीं


यूँ तो मै हर बार आपके सामने जिन्दगी के एक नए रंग के साथ आता हूँ पर आज की बात कुछ अलग है गर्मी अपने पूरे शबाब पर है बारिश बस आने को है और ऐसे ही मौसम की एक शाम को जब मै कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था अचानक जिन्दगी के कुछ खट्टे मीठे पल दिल के किसी कोने से निकल पड़े और मुझे बीती यादों मे ले गए और मेरा मन उड़ चला बिन पंखों के... जी हाँ ये मन ही तो है जो कभी ज्यादा का इरादा करता है तो कभी कहता है जी लो जी भर के, ये आवाज़ हमारे अन्दर से आती हैहमसे बहुत कुछ कहती है और बस मैंने सोचा क्यों न आज मन की बातें मन से की जाएँ .मन है तभी सोच है और आज का यंगिस्तानी  जो सोचता है वही बोलता है और यहीं थोड़ी सी प्रॉब्लम होती है जिसे हम जेनरेशन गैप कहते हैं वो गाना है न मैं करता रहा औरों की कही मेरे बात मेरे मन मे ही रही . वो वक्त दूसरा था जब लोग अपनी खुशियों को मार कर अपने घर परिवार के लिए सब कुछ किया करते थे इतने पर तो ठीक था लेकिन समय बीत जाने के बाद उन्हें अपने किये गए सेकरीफाइसेस पर स्ट्रेस ज्यादा होता था क्योंकि वो लोग कहीं आगे निकल चुके होते थे जिनकी मदद की गयी थी .आज टाइम बदल गया है लोग ३० साल में घर और गाडी के मालिक बन जाते हैं. अवसर भी है और उन्हें पाने का मौका भी ऐसे में अगर खुशियाँ मनाने का मौका है तो बिलकुल उन खुशियों के लिए अपने मन के दरवाजे खोल, दीजिये मत परवाह कीजिये लोक लाज और समाज की बंदिशों की आज के युवाओं की यही सोच है.इंसान जितना बड़ा प्लाट खरीदता है उस पर उतना बड़ा मकान नहीं बनाता ,कुछ जगह बागीचे के लिए छोड़ देता है जितना बड़ा मकान बनाता है उस पर उतना बड़ा दरवाजा नहीं बनाता ,जितना बड़ा दरवाज़ा लगाता है उसका ताला उतना बड़ा नहीं होता और जितना बड़ा ताला होता है उसकी उतनी बड़ी चाभी नहीं होती लेकिन मकान का कण्ट्रोल चाभी पर ही होता है बात सीधी है अब सोचिये न इस छोटे से मन पर कितना ज्यादा बोझ होता है रिश्तों का समाज का और न जाने क्या -क्या . तो इस पर बंदिश लगा कर क्यों हम इसे बाँधने की कोशिश करते हैं . और यही प्रॉब्लम है जेनरेशन गैप से होने वाले कंफ्लिक्ट की परेंट्स अपने बच्चों को अपने टाइम के हिसाब से बनाना चाहते हैं लेकिन मोबाइल और इन्टरनेट के इस युग में जहाँ दुनिया हर पल बदल रही है हम अपने मन की सोच अपने बच्चों पर थोप नहीं सकते हैं आखिर उनके पास भी एक प्यारा सा मन है जो उड़ना चाहता है कुछ करना चाहता है . ऐसे में हम अगर चीज पर बंदिश लगायें कि तुम ये करो ये न करो नहीं तो बिगड़ जाओगे ये ठीक नहीं होगा जिस चीज को जितना दबाया जाता है वो उतने ही वेग से ऊपर उठती है कहीं बचपन में पढ़ा था लेकिन बात थी एकदम सोलह आने सच . रोग को छुपायेंगे तो वो और फैलेगा तो बेहतरी इसमें है कि हम अच्छे और बुरे का फर्क उन्हें समझा दें और फैसला उन पर छोड़ दें क्योंकि जिन्दगी उनकी है और इसका फैसला भी उन्हें पर छोड़ दें अगर ऐसा हो गया तो किसी को भी अपने मन को नहीं मरना पड़ेगा और जेनरेशन गैप की प्रॉब्लम सोल्व हो जायेगी. जरा सोचिये अगर साहित्यकार , फिल्मकार ,कलाकार जैसे लोग अपने मन की न सुन रहे होते तो क्या आज हम यहाँ होते क्योंकि सोसाइटी किसी भी चेंज को आसानी से एक्सेप्ट  नहीं करती. मन की बातें मन ही जानता है और इन बातों को समझने के लिए जरूरी है कि अपने मन को और अपने आस पास के लोगों को ऐसा एत्मोस्फीर दिया जाए कि उनका मन उड़ सके सोच सके.मन की बातें मन ही जानता है और इन बातों को समझने के लिए जरूरी है कि अपने मन को और अपने आस पास के लोगों को ऐसा एटमोस्फीयर दिया जाए कि उनका मन उड़ सके सोच सके .मेरे पिता जी कहा करते हैं शरीर को जितना कष्ट दोगे वो उतना ही स्वस्थ रहेगा नहीं तो आलसी हो जाएगा यही फलसफा हमारे मन पर भी लागू होती है अगर वो सोचेगा नहीं तो हम काम करने के लिए न तो खुद मोटिवेट होंगे और न दूसरों को कर पायेंगे यानि दूसरों के मन को भी उड़ने दीजिये और फिर देखिये दुनिया होगी मुट्ठी में।
आई नेक्स्ट में २ जून को प्रकाशित

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