Tuesday, April 16, 2024

इंटरनेट विज्ञापनों की दुनिया में निजता

 भारत में टीवी और रेडियो की शुरुआत सुचना और मनोरंजन से हुई थी लेकिन जल्दी ही विज्ञापनों के जरिये इन दोनों माध्यमों का आर्थिक दोहन शुरू हो गया |धीरे –धीरे विज्ञापन रेडियो और टीवी का अभिन्न अंग बन गए |जिनके बगैर इन माध्यमों की कल्पना करना भी मुश्किल हो गया |कुछ ऐसी कहानी इंटरनेट के साथ भी हुई लेकिन यहां विज्ञापनों के साथ कुछ अलग तरह के खतरे भी आये |इंटरनेट का इस्तेमाल सिर्फ सूचनाओं और मनोरंजन तक सीमित नहीं रहा बल्कि यह बहुत निजी माध्यम बन गया और उसमें सबसे बड़ा मुद्दा उपभोक्ताओं की निजता का भी है |इंटरनेट की किसी सेवा तक अपनी पहुँच बनाने के लिए वेब ब्राउजर की जरुरत होती है |वेब ब्राउजर पर आप क्या कर रहे होते हैं इसका पता उन्हें रहता है |यहीं से डाटा महत्वपूर्ण हो जाता है |अगर किसी विज्ञापन दाता को यह पता पड़ जाए कि आप क्या चीज खोज रहे हैं तो उसे अपने उत्पाद को बेचना आसान हो जाएगा | इस वक्त गूगल का क्रोम ब्राउजर सबसे बड़ा ब्राउजर है |लेकिन उपभोक्ताओं की निजता के बढ़ते दबाव के चलते गूगल ने एक सीमित परीक्षण शुरू किया है |जिसमें वह अपने क्रोम ब्राउज़र का उपयोग करने वाले एक प्रतिशत लोगों के लिए थर्ड पार्टी कुकीज़ को प्रतिबंधित करेगाक्रोम ब्राउजर  दुनिया भर में सबसे ज्यादा लोकप्रिय ब्राउजर  है। इस वर्ष के अंत तकगूगल का इरादा है कि वह सभी क्रोम उपयोगकर्ताओं के लिए थर्ड पार्टी कुकीज़ को समाप्त कर देगा |विश्व के 600 अरब डॉलर वार्षिक  ऑनलाइन विज्ञापन उद्योग के इतिहास में यह सबसे बड़े बदलावों में से एक होगा|नब्बे के दशक में कंप्यूटर इंटरनेट की दुनिया में एक छोटी सी पहल ने लोगों के वेबसाइट इस्तेमाल के अनुभव को उल्लेखनीय तरीके से बदल दिया और इसका श्रेय जाता है नेटवर्क इंजीनियर लू मोंटुल्ली को जिन्होंने  एच टी टी पी  कुकी का आविष्कार किया इसी कुकी के द्वारा ही हमारा वेबसाइट अनुभव नियंत्रित्र होता है कुकीज  को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है  जैसे अतिआवश्यक कुकीज वर्किंग कुकीज फर्स्ट पार्टी कुकीजसेकंड पार्टी कुकीज़ तथा थर्ड पार्टी कुकीज़ आदि |

वर्तमान समय मे गूगल द्वारा थर्ड पार्टी कूकीज का सपोर्ट बंद किया जा रहा जिससे ऑनलाईन विज्ञापन के  बाजार मे बड़ी हलचल मची हुई है इस हलचल को समझने के लिये ये समझना होगा कि इन कुकीज कि उपयोगिता क्या है प्रमुखता कुकीज अनलाइन वेबसाईट पर हमारी गतिविधियां ट्रैक करती हैं और उन गतिविधियों  को कुकीज़ देने वाली वेबसाईट को अवगत कराती हैं |मान लीजिये  मुझे हिन्दी मे वेबसाईट देखनी है तो मैने भाषा हिन्दी चुनी तो ये गतिविधि वेबसाईट प्रदाता कंपनी को कुकीज़ के माध्यम से पता चल जाती है और अगली बार जब हम उस वेबसाईट पर आते हैं तो हमे भाषा का चुनाव नहीं करना पड़ता इससे हमारा अनुभव अच्छा रहता हैं क्योंकि कुकीज के माध्यम से अमुक वेबसाईट हमारी रुचियाँ जान जाती है |हमारे व्यवहार को समझते हुए |महत्वपूर्ण है कि ऑनलाईन विज्ञापन का बड़ा बाजार इसी बात पर टिका है कि उपभोक्ता क्या चाहता है और यहीं से उपभोक्ता का ब्राउजिंग  डाटा महत्वपूर्ण हो जाता है  |  अब प्रश्न ये है कि फिर थर्ड पार्टी कूकीज बंद होने पर इतना हंगामा क्यूँ हो रहा तो उसका कारण ये हैं कि थर्ड पार्टी कूकीज प्रायः वेबसाईट सेवा प्रदाता के अनुबंध के कारण किसी अन्य सेवा प्रदाता के द्वारा  प्रदान की जाती है जो हमारे अनुभव से इतर ये रिकार्ड करती हैं कि हम वेबसाईट या ऑन लाइन क्या कर रहे हैं |अगर इसको ऐसे समझे कि हमने गूगल पर कपड़े सर्च किये और उसके बाद हम जब किसी अन्यत्र वेबसाईट पर जाते हैं तो वहाँ हमे कपड़े  के विज्ञापन दिखने लगते हैं जो कि थर्ड पार्टी कुकीज द्वारा दी गई सूचना के कारण  होता हैं |

अब  लोग अपनी निजता   के प्रति बहुत जागरूक हुए हैं और इसी को ध्यान मे रखते हुए और उपभोक्ताओं कि मांग का सम्मान करते हुए गूगल के थर्ड पार्टी कुकीज का प्रयोग चरणबद्ध तरीके से बंद करना शुरू कर दिया है जिसका असर बहुत सारी कम्पनियों पर पड़ रहा है जो उपभोक्ता सूचना और विज्ञापन के क्षेत्र मे काम कर रही हैं गूगल की इस नीति के कारण  उनका खर्च बढ़ने कि संभावना है|हालाँकि गूगल का यह प्रयास पहले केवल क्रोम उपयोगकर्ताओं के एक हिस्से  को प्रभावित करेंगेलेकिन अंततः इसका नतीजा  यह हो सकता है कि अरबों इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को कम विज्ञापन दिखाई देंगे जो उनकी ऑनलाइन ब्राउज़िंग आदतों से काफी मेल खाते हैं। पिछले दशक के अंत मेंमोज़िला के फ़ायरफ़ॉक्स और ऐप्पल के सफ़ारी ब्राउज़र ने लोगों की निजता और गोपनीयता चिंताओं के कारण कुकीज़ को ट्रैक करने पर सीमाएं लगानी शुरू कर दीं थी ।

 गूगल  ने 2020 में उन्हें क्रोम से हटाने की योजना बनाईलेकिन विज्ञापन उद्योग और गोपनीयता के समर्थकों  की चिंताओं  को दूर करने के लिए इस प्रक्रिया में कई बार देरी हुई। और गेट एप की एक रिपोर्ट के अनुसार इकतालीस प्रतिशत  सेवा प्रदाताओं कि सबसे बड़ी चुनौती सही डेटा को ट्रैक करना होगा वहीं चौवालीस प्रतिशत  सेवा प्रदाताओं को लगता हैं कि  उन्हे अपने व्यसाययिक  लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपनी लागत को को पांच  प्रतिशत से पच्चीस प्रतिशत तक बढ़ाना पड़ सकता है हालांकि उपभोक्ताओं  की निजता के लिये यह  कोई बहुत बड़ी राहत नहीं है क्योंकि अधिकतर सेवा प्रदाता अब एप का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैंजिससे उन्हे ज्यादा सटीक और ज्यादा  व्यक्तिगत सूचनाएं प्राप्त होंगी दुनिया भर के देश गोपनीयता कानून अब कुकी प्रयोग और उस पर सहमति संबंधी प्रावधान जोड़ रहे हैं ताकि बिना सहमति के सूचनाएं साझा न हो और गोपनीयता बरकरार रहे गूगल का ये प्रयास निजी सूचना आधारित व्ययसायों पर न केवल दूरगामी प्रभाव डालेगा बल्कि ऑनलाईन विज्ञापन के नये नए तरीकों को भी जन्म देगा |

दैनिक जागरण में 16/04/2024 को प्रकाशित 

Wednesday, April 3, 2024

टाईम पास बन गया है सोशल मीडिया

 
साल 2010 में जो सोशल मीडिया आशाओं उम्मीदों का प्रतीक बन कर उभर रहा थावो साल 2020 तक आते –आते फेक न्यूज और लोगों की राजनीतिक विचारों को प्रभावित करने जैसे आरोपों का शिकार  हो चुका था सोशल मीडिया की आंधी आये हुए महज दस साल में ही लोग अपनी राय पोस्ट करने में अब कम लोग ही सक्रिय हैं|पोस्ट करने से आशय टेक्स्टइमेजफॉर्म में अपने आपको व्यक्त करने से है |सोशल  मीडिया पर रोज  बहुत सारे लोग लॉग इन करते हैंपर  वास्तव में बहुत कम लोग ही पोस्ट कर रहे हैं।हम  प्रतिदिन लगभग दो घंटे इंस्टाग्राम फेसबुक या ट्विटर  पर स्क्रॉल करते हुए समय बिताते हैंलेकिन उनके मुख्य फ़ीड पर उनकी आखिरी पोस्ट एक साल पहले की थी। कभी कभी लोग सोशल मीडिया स्टोरीज जरुर शेयर करते हैं ,जो चौबीस  घंटों के बाद गायब हो जाती हैं। सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल ने लोगों को अब यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अब जीवन में और अधिक झगड़े जोड़ने की जरूरत नहीं है और लोगों को इस बात पर झगड़ने की ज़रूरत नहीं है कि मैंने किसे वोट दिया या मैं क्या सोचता हूँ।अब वह वह आमने-सामने और समूह चैट को प्राथमिकता देता है—जिसे अब  "निजी नेटवर्किंग" कहा जा रहा है। 
उपयोगकर्ताओं के सर्वेक्षण और डेटा-एनालिटिक्स फर्मों के शोध के अनुसारअरबों लोग मासिक रूप से सोशल मीडिया का उपयोग करते हैंलेकिन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता कम पोस्ट कर रहे हैं और अधिक निष्क्रिय अनुभव का आनंद  ले रहे हैं।इसे दूसरे शब्दों में यूँ समझा जा सकता है कि ऐसा नहीं है लोगों का सोशल मीडिया से मोह  भंग हो रहा है वे अभी भी लोगों की सोशल मीडिया फीड देखने या राष्ट्रीय समय पास करना बन चुका शगल ,रील देखने में समय बिता रहे हैंपर वे अब अपनी राय रखने में उतने सक्रिय नहीं रहे हैं |डेटा-इंटेलिजेंस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट की अक्टूबर रिपोर्ट में,सोशल-मीडिया अकाउंट वाले 61 प्रतिशत अमेरिकी वयस्क उत्तरदाताओं ने कहा कि वे जो पोस्ट करते हैं उसके बारे में वे अधिक चयनात्मक हो गए हैं यनि अब लोग क्या पोस्ट करना है उसके बारे में सोचने लग गए है ।भारत भी अपवाद नहीं है|भले ही अपने विशाल सोशल मीडिया यूजर बेस के कारण यहाँ ऐसा नहीं दिखता पर अब लोग सोशल मीडिया पर कम पोस्ट शेयर कर रहे हैं इसके कई कारण हैं इस शोध के हिसाब से लोग ये मानने लगे हैं  कि वे जो सामग्री देखते हैं उसे नियंत्रित नहीं कर सकते। वेअपने जीवन को ऑनलाइन साझा करने को लेकर अधिक सुरक्षात्मक हो गए हैं और अब उन्हें अपनी निजता की भी चिंता होने लग गयी हैं ।सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स की बढ़ती संख्या के कारण लोगों का मजा किरकिरा भी हुआ है |सारे मेटा प्लेटफोर्म  (इन्स्टाग्राम और फेसबुक )में यह गुप्त प्रवृत्ति जिसमें टिकटोक और एक्स(ट्विटर ) इन सभी के व्यवसाय के लिए ख़तरा है। उपयोगकर्ताओं के ज्यादा से  ज्यादा शेयर करने के कारण वे दुनिया की सबसे शक्तिशाली कंपनियों और प्लेटफार्मों में से बन गए हैं।मजेदार तथ्य यह है कि इनमें से कोई भी कम्पनी  कोई उत्पाद नहीं बनाती है,फिर भी ये  नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|
 सिर्फ यूजर जेनरेटेड कंटेंट जाहिर है लोगों की कहने की आदत के कारण|भारत अभी अमेरिका जैसी गंभीर स्थिति में नहीं है पर यह साफ़ तौर पर अब देखा जा सकता है कि लोग अपनी निजता और सब कुछ सोशल मीडिया पर डालने की मानसिकता से किनारा  कर रहे हैं |इसका एक बड़ा कारण सोशल मीडिया अकाउंट का उपयोग मार्केटिंग और ब्रांडिग के लिए किया जाना इसके अलावा मीडिया लिट्रेसी का प्रचार प्रसार भी है वैसे  भी सोशल मीडिया पर आते ही उपभोक्ता डाटा में तब्दील हो जाता हैफिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है यूजर जेनरेटेड कंटेंट से चलने वाली इन कम्पनियों की कमाई का बड़ा फायदा उपभोक्ताओं को नहीं होता |
आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया से भारत मे  कितने रोजगार पैदा हुए इसका विशेष उल्लेख नही मिलता क्योंकि ये सारी कम्पनियां इन से सम्बन्धित आंकड़े सार्वजनिक रूप से नहीं जारी करतीं । साथ ही प्रत्यक्ष रोजगार के काफी कम होने का संकेत इन कम्पनीज के एम्प्लाइज की कम संख्या से प्रमाणित होता  है । ऐसा भी नहीं कि ये सोशल मीडिया कंपनियां इस तथ्य से अनजान हैं |अब वे सोशल मीडिया के उपभोक्ताओं को ज्यादा पर्सनलाइज्ड अनुभव देने की ओर अग्रसर हैं |वे मैसेजिंग जैसे अधिक निजी उपयोगकर्ता अनुभवों में निवेश कर रहे हैं और बातचीत को अधिक सुरक्षित बना रहे हैं। जिसमें  लोगों को अधिक अंतरंग साथियों के लिए पोस्ट करने के लिए प्रोत्साहित करना भी शामिल है  - जैसा कि इंस्टाग्राम के हाल ही में जारी किये गए  क्लोज फ्रेंड्स फीचर के साथ हुआ है।इन सबके बावजूद सोशल मीडिया से लोगों की बढ़ती अरुचि किसी नए माध्यम के विकास का बहाना बनेगी या नए यूजर  की बढ़ती संख्या इस प्रक्रिया को चलायमान रखेगी यह देखना दिलचस्प होगा |
अमर उजाला में 03/04/2024 को प्रकाशित 

Tuesday, April 2, 2024

जीवन के एग्जाम के टॉपर


 प्रिय बेटा

तुम्हारा गुस्से भरा ई मेल मिला,जिसमें तुमने इस बात पर नाराजगी जताई कि जब सारे पास हुए बच्चों के पेरेंट्स अपने बच्चों के मार्क्स के साथ उनके फोटो सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं तो मैंने तुम्हारी फोटो क्यों नहीं लगाई. तुम जानते हो मैंने तुम्हें नम्बर गेम से हमेशा बचने की सलाह दी है. मैं तुमसे हमेशा कहता था एक सम्मानजनक तरीके से पास हो जाओ .बेटे मेरे लिए पढ़ाई के एक्जाम में पास होना उतना मायने नहीं रहता जितना जिन्दगी के इम्तिहान में पास होना .चूँकि अब तुम बड़े हो गए हो तो सोचा अपनी लाईफ के कुछ अनुभव  शेयर कर लूँ .तुम्हे याद होगा जब तुम छोटे थे और अक्सर चोट लगाकर रोते हुए घर आ जाया करते थे तो मैं तुमसे एक ही बात कहता था बेटा चोट तुम्हे लगी है और इसका दर्द तो तुम्हे ही झेलना पड़ेगा. हम ज्यादा से ज्यादा  इसको कम करने की कोशिश कर सकते हैं और जिन्दगी भी ऐसी ही है.

मुझे आज भी याद है दसवीं से पहले तक तुम्हारे कभी भी सिक्सटी परसेंट से उपर नम्बर नहीं आये .मैं ये भी मानता हूँ कभी –कभी मैं भी थोड़ा दुखी हो जाता था पर एक चीज मुझे हमेशा हौसला देती थी .तुम हमेशा एक अच्छे बेटे की तरह बढ़ते रहे ,दादी –बाबा का ख्याल रखने वाले .भले कितनी परेशानी मन में हो हमेशा खुश रहने वाले और सबको हंसाने वाले .तुम्हारी सम्वेदनशीलता देख कर लगता है कितुम अपने आस –पास के लोगों से जुड़े रहोगे क्योंकि रोड पर अगर कोई आवारा जानवर बीमार दिखता है तो तुम मुझे फोन कर के तंग करते रहे अपनी पॉकेट मनी से रोड पर पैदा हुए कुत्ते के बच्चों को दूध चुपचाप पिलाना और कई दिन बाद धीरे से मम्मी को बता देना .तुमने कभी कोई बात नहीं छिपाई .

तुम खुशनसीब हो कड़ी धूप में पतंग उड़ाने का लुत्फ़ क्या होता है ये जानते हो ,बारिश में छत पर घंटों नहाने  का क्या मतलब होता ये तुमसे बेहतर कौन जानता है .गर्मी की शाम छत को स्वीमिंग पूल बनाने की नासमझ कोशिश तुमने न जाने कितनी बार की है . तोड़ देने का दुःख भी झेला है .तुम हारना क्या होता है ये बेहतर तरीके से जानते हो. तो कभी जिन्दगी में जीतोगे तो तुम्हारे पैर हमेशा जमीन पर रहेंगे . बेटा पढाई के एक्जाम  से ज्यादा मुश्किल है जिन्दगी का इम्तिहान जिसकी अभी शुरुवात हो रही है .मैं चाहता हूँ तुम जिन्दगी के एक्जाम  में टॉप करो मैंने कभी नहीं चाहा कि तुम क्लास में टॉप करो जरा सोचो एक्साम्स के टॉपर्स को हम लोग कितनी जल्दी भूलते हैं जिन्दगी में एक वक्त के बाद हम लोगों को उनके काम और उनकी पर्सनाल्टी  की वजह से याद करते हैं न कि उनके मार्क्स की वजह से .जिन्दगी के टॉपर्स हिस्ट्री  बनाते हैं. तुम्हे फिल्म और क्रिकेट का बहुत शौक है. विराट  एक महान खिलाड़ी है क्या वो कभी जीरो पर नहीं आउट हुआ हर मैच उसके लिए एक एक्जाम  ही होता है. अमिताभ बच्चन क्या बगैर फ्लॉप फ़िल्में दिए बगैर सदी के सितारे बन गए. सफल होने के लिए असफल होना ही पड़ता है. जिन्दगी में आप लगातार सफल नहीं हो सकते ये निश्चित है और असफलता का स्वाद जिन्दगी में जितनी जल्दी मिल जाए उतना अच्छा है. मां तुमको अपना प्यार दे रही है .

प्यार

तुम्हारा

पॉप्स

प्रभात खबर में 02/04/2024 को प्रकाशित 

Thursday, March 7, 2024

जिम्मेदारी निभाने का समय

 

मेरे जीवन के कई बसंत सिर्फ यह सुनते सुनते बीत गए कि देश का युवा जागरूक नहीं है  पर क्या ऐसा वास्तव में है|  मस्ती की पाठशाला में बिंदास जीवन का पाठ पढ़ रहे युवाओं ने देश ही  क्या सारी दुनिया में दिखा दिया कि ना तो वो गैर जिम्मेदार हैं और ना ही अपने आस पास के परिवेश से कटे हुए| वास्तव ऐसा है नहीं |यही युवा है जो दुनिया भर की सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर कई मुद्दों पर लोगों को जागरूक करने में लगे हुए है |वो एक गाना है “ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा” कोई ध्वनि प्रदूषण नहीं हुआ पर सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर जो कुछ लिखा पढ़ा गया उसका असर सारे देश ने देखा और सुना भी |निर्भया काण्ड के बाद युवाओं की इसी मुहिम ने लोगों को  अपने घरों से बाहर निकालाये एक सेल्फ मोटीवेटेड प्रयास था ना लाउडस्पीकर बजे ना लोग घरों घरों में जाकर घूमे यानि ना बिल आये ना दिल घबराये फिर भी कमाल का असर हुआ और महिलाओं के लिए एक नया कानून बना  |अब जब सिस्टम को सुधारने की बात की जायेगी तो उसका भारत में कम से कम एक ही तरीका है राजनीति  में अच्छे और नए लोग ज्यादा से ज्यादा चुनकर आयें और ये काम पांच साल में एक ही बार होता है 

एक बार अगर हमने गलती कर दी तो पांच साल का इन्तिज़ार करना पड़ेगा .अमूमन यूथ चुनाव  के समय वोट ये सोचकर नहीं जाता कि हमारे एक वोट से क्या होगा और वही एक कम  वोट सही  कैन्डीडेट को हरा देता है . अब  देश का यूथ पोलिटकली एक्टिव हो रहा है |हम जैसा सिस्टम चाहते हैं उसको बनाने की जिम्मेदारी हम किसको सौपने जा रहे हैं और इसके लिए हमें वोट देने जाना जरूरी है .वोटिंग डे को होलिडे मत समझिए ये सबसे बड़े काम का दिन है .मेरी बात पढकर शायद आप मान जाएँ पर वो जिसने ये लेख नहीं पढ़ा या चुनाव जिसकी  प्राथमिकता में नहीं है उनका क्या करें ? चलिए एक कोशिश कर के देखते हैं हम सभी टेक्सेवी तो हैं ही ना तो तकनीक को हम  अपना माध्यम बनाते हैं .आज से सोशल नेटवर्किंग साईट्स का इस्तेमाल लोगो को इस बात को मोटिवेट करने के लिए कीजिये कि लोग वोट देने जरुर जाएँ और वोट सही उम्मीदवार को दें .

वोट देने के बाद तुरंत अपना स्टेटस अपडेट कीजिये जिससे आपका वो फ्रैंड जो थोडा सुस्त है उसे भी याद आ जाए कि जैसे हर एक फ्रैंड जरूरी होता है वैसे ही हर एक वोट भी .ब्लॉग लिखिए ,ग्रुप्स बनाइये लोगों को याद दिलाइए कि वोट डालने के लिए उन्होंने अपना नाम रजिस्टर्ड कराया या नहीं और ये काम हमें इसलिए करना है कि   ये हमारा देश है पर इसकी ज्यादा जिम्मेदारी हर यांगिस्तानी की है ध्यान रखियेगा भारत में 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ऐसे युवाओं की हैजिनकी उम्र 35 वर्ष से कम है तो आपकी जिम्मेदारी ज्यादा है .सोच क्या रहे हैं जल्दी से लग जाइए काम पर ये गाते हुए हर एक वोट जरूरी होता है.

--प्रभात खबर में 07/03/2024 को प्रकाशित लेख 

'मीम' संवाद की भाषा भाषा बदल रहे हैं

 इंटरनेट ने लोक व लोकाचार के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहत सारे रिवाज अब अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया बहुत जल्दी पुराना हो जा रहा है। अब शब्द नहीं भाव और परिवेश बोल रहे हैं|जहाँ संचार के लिए न तो किसी भाषा विशेष को जानने की अनिवार्यता है और न ही  वर्तनी और व्याकरण की बंदिशें|तस्वीरें एक सार्वभौमिक भाषा बनकर उभर रही हैं दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला व्यक्ति तस्वीरों और वीडियो  के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक पहुंचा पा रहा है|जाहिर है इंटरनेट के कारण हम एक ऐसे युग के साक्षी बन रहे हैं जो अपने आप में अनूठा है |संवाद के इसी माध्यम के रूप में जेन जी में तेजी से लोकप्रिय होती शैली है “मीम” | पिछले कई वर्षों मेंइंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने नए शॉर्टहैंड बनाकर तेजी से संवाद करने के तरीके विकसित किए हैं। BTW और LOL जैसे संक्षिप्त रूप इंटरनेट उपयोगकर्ताओं द्वारा बनाए गए एक पूरी तरह से नए शब्दकोष का हिस्सा हैं। इमोटिकॉन्सया टेक्स्ट-आधारित एक्सप्रेशनजैसे =) और :-भी लोकप्रिय मीम बन गए हैं। इंटरनेट मीम  भी विषय हो सकते हैंजैसे ब्लॉग या अन्य वेबसाइटों द्वारा लोकप्रिय हुए  लोग स्थान या जानवर। उदाहरण के लिएएक सार्वजनिक घोटाले में शामिल एक राजनेता या सेलिब्रिटी कई ब्लॉगर्स के लिए इंटरनेट मीम  बन सकता है|

मीम  की |आधुनिक परिभाषा एक विनोदी छवि, वीडियो, किसी टेक्स्ट ( पाठ) का टुकड़ा या एनीमेटेड तस्वीर( जीआईएफ) है जो सोशल मीडिया पर अक्सर थोड़े बदलाव के साथ प्रसारितहै, मीम्स कोई भी बना सकता है और किसी भी चीज़ के बारे में हो सकता है, वर्तमान घटनाओं से लेकर किसी भी सांसारिक कार्यों तक, जिसमें राजनीतिक सांस्कृतिक और फिल्म के सन्दर्भ शामिल होते हैं |मीम की लंबाई अलग-अलग होती है. क्योंकि वे छवियों, प्रतीकों , पाठ, वीडियो या जीआईएफ का रूप ले सकते हैं , वे एक छवि या वाक्यांश जितने छोटे हो सकते हैं और एक विस्तृत कथा के साथ कई मिनट के वीडियो जितने लंबे हो सकते हैं। कुछ मीम्स की सोशल मीडिया पर लोकप्रियता क्षणिक  होती है, जबकि कुछ  वर्षों तक टिके रहते हैं।मीम्स की अवधारणा की जड़ें जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिन्स की 1976 में प्रकाशित  किताब, द सेल्फिश जीन से मिलती हैं । डॉकिन्स ने मीम  को एक सांस्कृतिक इकाई के रूप में परिभाषित किया है | जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है, जैसे कि जीन प्रजनन के माध्यम से फैलते हैं। मीम  शब्द स्वयं ग्रीक शब्द माइमेमा  से आया है , जिसका अर्थ है "जिसकी नकल की जाती है।"डॉकिन्स की किताब से पता चलता है कि मीम्स के उदाहरण सदियों पुराने हैं। लेकिन इन दिनों, जब हम मीम्स के बारे में सोचते हैं, तो आमतौर पर इंटरनेट मीम्स ही दिमाग में आते हैं। पहला इंटरनेट मीम व्यापक रूप से " डांसिंग बेबी " माना जाता है, जिसमें एक 3डी एनिमेटेड बच्चा जो चा-चा नृत्य कर रहा था, यह 1990 के दशक के अंत में लोकप्रिय हुआ।इंटरनेट कंसल्टिंग फर्म रेड्शीर की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में भारतीय स्मार्टफोन उपयोगकर्ता प्रतिदिन तीस  मिनट का समय मीम्स देखने में बिता रहे हैं |

साल 2021 के मुकाबले भारत में मीम्स  खपत में  अस्सी प्रतिशत की वृद्धि हुई है |इसी शोध के अनुसार मीम लोगों का तनाव दूर करने का एक अच्छा माध्यम बन कर उभरा है |2021 के इंस्टाग्राम के आंकड़ों  से पता चलता है कि सारी दुनिया में मीम शेयरिंग में दोगुनी वृद्धि हुई है, आज रोज लगभग  एक मिलियन मीम शेयर किए जाते हैंजो 2018 में 500,000 से अधिक है| ये आंकड़े मीम की बढ़ती लोकप्रियता को उजागर करते  है। फोर्ब्स के एक शोध के  अनुसार  मीम विज्ञापन  अभियान ईमेल मार्केटिंग की तुलना में चौदह प्रतिशत  अधिक क्लिक-थ्रू दर प्राप्त करते हैंजो उनकी शक्तिशाली वायरल अपील और व्यापक पहुंच को प्रदर्शित करता है।हालाँकि मीम का एक अवधारणा के रूप में अभी आंकलन होना बाकी है लेकिन पर्याप्त इंटरनेट जागरूकता के अभाव में मीम चरित्र हनन का भी एक बड़ा जरिया बन रहे हैं |जिसके लिए लोगों को सचेत होने की जरुरत है |मनोरंजन के लिए किसी का मजाक किस हद तक उड़ाया जाए |दूसरी समस्या सामान्य लोगों की निजता की भी है जिनके चेहरे इंटरनेट पर किसी वजह से वायरल हो जाते हैं फिर वे तरह तरह के मीम का हिस्सा बन जाते हैं |संवाद और मनोरंजन का यह नया रूप भविष्य में कैसे जिम्मेदारी से विकसित होगा |इसका फैसला होने में अभी वक्त है |

अमर उजाला में 07/03/2024 को प्रकाशित 

Saturday, March 2, 2024

इन्फ़्लुएन्सर मार्केटिंग पर नकेल

 बात ज्यादा पुरानी नहीं है |आज से पांच साल पहले किसी ने नहीं सोचा था कि एक ऐसा वक्त भी आएगा जब आप कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करेंगे और पैसे भी कमाएंगे |बात चाहे यात्राओं की हो या खान –पान की या फिर फैशन की देश विदेश की बड़ी कम्पनिया ऐसे लोगों को जो इंटरनेट पर ज्यादा फोलोवर रखते हैं अपने प्रोडक्ट के विज्ञापन के लिए पैसे दे रही हैं और उनके खर्चे भी उठा रही हैं इंटरनेट की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसकी गतिशीलता नया बहुत जल्दी पुराना हो जाता है और नई संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं |सोशल मीडिया प्लेटफोर्म नित नए रूप बदल रहे हैं उसमें नए –नए फीचर्स जोड़े जा रहे हैं |इस सारी कवायद का मतलब ऑडिएंस को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक अपने प्लेटफोर्म से जोड़े रखना |इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय भी है |अब सोशल मीडिया इतना तेज़ और जन-सामान्य का संचार माध्यम बन गया कि इसने हर उस व्यक्ति को जिसके पास स्मार्ट फोन है और सोशल मीडिया पर उसकी एक बड़ी फैन फोलोविंग  वह एक चलता फिरता मीडिया हाउस बन गया  है अब वह वक्त जा चुका है जब सेलेब्रेटी स्टेट्स माने के लिए किसी को सालों इन्तजार करना पड़ता था |सोशल मीडिया रातों रात लोगों को सेलिब्रटी बना दे रहा है जिसमें बड़ी भूमिका ,फेसबुक ,इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब जैसी साईट्स निभा रही हैं |

मूल्यांकन सलाहकार फर्म (Valuation Advisory firm  Kroll) क्रोल  की एक नवीन रिपोर्ट के अनुसार एक साल में भारतीय ब्रांड्स ने अपनी इन्फ़्लुएन्सर मार्केटिंग पर खर्च दोगुना कर दिया |पिछले एक साल में एक तिहाई भारतीय ब्रांड्स ने सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सेर्स पर अपना खर्च दो गुना कर दिया है कोरोना महामारी ने बड़ी मात्रा में डिजिटलीकरण को प्रेरित किया भारत में सोशल मीडिया की कंटेंट क्रियेटर इंडस्ट्री पच्चीस प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ रही है और जिसके साल 2025 में 290|3 मिलीयन डालर हो जाने की उम्मीद है |  सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सेर्स   अब ब्रांड को एक बड़े दर्शक वर्ग पर कम खर्च में पहुंचने का एक सुलभ तरीका बन रहा है आज भारत में लगभग 80 मिलियन कॉन्टेंट क्रिएटर हैंजिनमें वीडियो स्ट्रीमर्स,   इन्फ़्लुएन्सेर्स    और ब्लॉगर्स शामिल हैं। डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी आई क्यूब्स वायर के  एक शोध से पता चलता है कि लगभग 35 प्रतिशत  ग्राहकों के खरीदारी निर्णय सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर पोस्टरील्स और वीडियो देखकर लिए जा रहे हैं | affable|ai नामक एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित इंफ्लुएंसर मार्केटिंग प्लेटफोर्म के आंकड़ों के अनुसार नैनो- इंफ्लुएंसरजिनके पास 10,000 से कम फॉलोअर हैंने 2022 में इंस्टाग्राम पर सबसे अधिक इंगेजमेंट अर्जित की है |जबकि माइक्रो इंफ्लुएंसर जिनके दस हजार से पचास हजार के बीच फॉलोअर ने इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब पर ज्यादा दर्शक मिले पर उनकी इंगेजमेंट दर कम थी |

सोशल मीडिया यूजर्स अपनी बड़ी फैन फोलोइंग का फ़ायदा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर  के तौर पर उठा रहें और यह एक विज्ञापन के नए माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा हैसोशल मीडिया अब आम इंटरनेट यूजर्स को सितारा बना रहा है |

 देश  में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरव्यक्ति और ब्रांड प्रमोशन का बड़ा औजार  बनकर सामने आया है |  सोशल मीडिया विज्ञापन का एक अपरंपरागत माध्यम  है जो बाकी सारे मीडिया (प्रिंटइलेक्ट्रॉनिक और समानांतर मीडिया) से अलग है |यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया के किसी प्लेटफॉर्म (फेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम) आदि का इंटरनेट के माध्यम से  उपयोग कर किसी भी नेट कनेक्टेड व्यक्ति तक पहुंच बना सकता है |

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर वह आम व्यक्ति होता है जिसकी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर काफी सारे फोलोवर होते हैं और वह अपनी इस लोकप्रियता का इस्तेमाल  विभिन्न तरह के उत्पाद बेचने में करता है इसमें रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट दूसरे विज्ञापन  माध्यमों के मुक़ाबले अधिक हैदेश के लाखों युवा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को एक करियर के अच्छे विकल्प के रूप में देख रहे हैं सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर जहाँ विज्ञापनों की दुनिया में एक नया आयाम गढ़ रहा है वहीं विज्ञापनों की दुनिया में सेलिब्रेटी स्टेट्स को खत्म भी कर रहा है |जहाँ हमारे आपके बीच के लोग ही स्टार बन रहे है |

भारत में चूँकि अभी इंटरनेट बाजार में पर्याप्त संभावनाएं हैं इसलिए अभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर का यह दौर चलेगा पर कुछ चिंताएं भी है भारत के इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग उद्योग को विनियमन की आवश्यकता है ताकि तथ्यों के गलत प्रस्तुतीकरण  से बचा जा सके। जनवरी मेंभारत के उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने घोषणा की कि ऐसे में ये गाइडलाइंस ग्राहक हितों की रक्षा के लिए जरूरी हैंसोशल मीडिया पर ऐड्स करने वाले सेलेब्रिटीज़ भी इसके दायरे में होंगेकिसी भी भ्रामक विज्ञापन व  इन्हें नहीं मानने पर इंफ्लूएंसर्स को 10 लाख तक का जुर्माना देना होगालगातार अवमानना पर 50 लाख तक जुर्माना देना होगासाथ ही एंडोर्स करने वाले को से महीने तक किसी भी एंडोर्समेंट करने  से रोका जा सकता हैउस प्लेटफॉर्म को ब्लॉक करने की कार्रवाई भी सम्भव है|

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को आत्म-नियंत्रित करने की आवश्यकता है जिससे वे  नीति निर्माण में भाग ले सकें ताकि इस उद्योग पर सकारात्मक प्रभाव होपरम्परागत विज्ञापनों में शामिल खिलाड़ियों और सिने कलाकारों के प्रति लोगों का मोह एकदम से कम तो नहीं हुआ है पर इसकी शुरुआत जरुर हो गयी है |इन दोनों की लड़ाई में कौन जीतेगा इसका फैसला वक्त को करना है|


दैनिक जागरण में 02/03/2024 को प्रकाशित 

Wednesday, February 14, 2024

अंगदान में आगे हैं महिलायें

 

दुनिया की बड़ी आबादी वाले देशों में से एक भारत में प्रतिवर्ष लगभग 3,00,000 लोग वक़्त पर अंग न मिल पाने के कारण अपनी जान गंवा देते हैं .औसतन  कम से कम 20 व्यक्तियों की रोज़ाना मौत अंगदान की कमी से हो जाती है .लेकिन उम्मीद की एक किरण देश की आधी आबादी से नजर आ रही है .2021 में एक्सपेरिमेंटल एंड क्लिनिकल ट्रांसप्लांटेशन जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र  में जीवित अंग प्रत्यारोपण के मामले में देश में भारी लैंगिक असमानता पाई गई । आंकड़ों के अनुसार 2019 में अंग प्रत्यारोपण का विश्लेषण किया और पाया कि अस्सी प्रतिशत  जीवित अंग दाता महिलाएं हैंमुख्य रूप से पत्नी या मां जबकि अस्सी प्रतिशत  प्राप्तकर्ता पुरुष हैं।देश में अंग प्राप्त करने वाली प्रत्येक महिला के मुकाबले चार पुरुषों का अंग प्रत्यारोपण हुआ है. 1995 से 2021 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि 36,640 अंग प्रत्यारोपण किए गएजिनमें से 29,000 से अधिक पुरुषों के लिए और 6,945 महिलाओं के लिए थेअध्ययन में यह भी पाया गया कि अंग दान करने के लिए अधिकांश महिलाओं का प्राथमिक कारण उन पर परिवार में देखभाल करने वाला होने और देने वाला होने का सामाजिक-आर्थिक दबाव है और चूंकि ज्यादातर मामलों में पुरुष कमाने वाले होते हैंइसलिए वे किसी भी सर्जरी से गुजरने से झिझकते हैं.

हालांकि अंगदान को लेकर लिंगभेद के दूसरे मोर्चे भी हैंपुरुषों  के मुक़ाबले महिलायें  ज़्यादा अंगदान क्यों करती हैंइसकी कई वजहें हो सकती हैं .माना जाता है कि महिलाएंपुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा सम्वेदनशील  होती हैंउन्हें अपने रिश्तेदारों  से ज़्यादा हमदर्दी होती है.लेकिन इसका बड़ा कारण आर्थिक ही है और यह अंगदान महिलाओं द्वारा किये जाने इसकी बड़ी वजह आर्थिक बताई जाती हैघर में नियमित आमदनी का स्रोत  का उद्गम  पुरुषों से ही होता  हैबीमारी या ट्रांसप्लांट के दौरानदान देने वाले को अक्सर महीने-दो महीने के लिए घर बैठना पड़ता हैइससे दोहरा आर्थिक नुक़सान होता हैइस परिस्थिति में  अक्सर महिलाओं को ये लगता है कि वे  अंग दान कर के घर को होने वाला आर्थिक नुक़सान को कम कर सकती हैं.

यदि महिलायें आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर होंगी तो यह आंकड़ा बराबरी का हो सकता है पर फिलहाल जीवन के हर क्षेत्र में महिलायें पितृसत्ता के दंश का शिकार होते हुए भी त्याग के ऐसे प्रतिमान गढ़ रही हैं जिसकी कहीं चर्चा नहीं हो रही है .महिलाओं का वित्तीय रूप से आत्म निर्भर न होने के कारण वे खुद भी कई समस्याओं का सामना कर रही होती है.जैसे प्राकृतिक आपदाओं के दौरान पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता  है। वर्ष  2007 में लंदन स्कूल ऑफ इक्नोमिक्स और एसेक्स विश्वविद्यालया के शोधकर्ताओं द्वारा किए १४१ देशों में किए गए गए एक अध्ययन के अनुसार वर्ष १९८१ से लेकर वर्ष २००२ तक हुई प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मरने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों की संख्या से काफी अधिक थी। साथ ही इस शोध में यह तथ्य भी सामने आया कि जैसे-जैसे प्राकृतिक आपदा की विभीषिका बढ़ती गयी वैसे-वैसे पुरुष और महिला मृत्यु-दर के बीच का फासला भी बढ़ता गया। अब इस पुरुषवादी समाज को भी सोचना होगा कि हम आर्थिक रूप से उन्हें स्वावलंबी बनाने में न केवल  मदद करें बल्कि उन्हें  इस बात का एहसास भी कराएं कि समाज की गाड़ी को चलाने के लिए जितनी जरुरत पुरुषों की है उतनी ही महिलाओं की भी .

 प्रभात खबर में 14/02/2024 को प्रकाशित 

 

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